क्या सूर्य के धब्बों की मददगार से होंगे सकते हैं बाहरी ग्रहों में जीवन की खोज...अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कही ये बात
पृथ्वी के बाहर जीवन और उसके संकेतों की तलाश के लिए वैज्ञानिक बहुत प्रकार से कोशिशें कर रहे हैं
क्या होते हैं ये धब्बे
हाल ही में एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित शोध ने बताया है कि कैसे सूर्य के धब्बे यानि वे इलाके जो सूर्य के आसपास की जगहों के मुकाबले ठंडे होते हैं और काले धब्बों की तरह दिखते हैं, हमें हमारे सौरमंडल के बाहर बाह्यग्रहों पर जीवन के स्थितियों को समझने में मददगार हो सकते हैं.
सौर ज्वाला के आने के संकेत
सूर्य के ये धब्बे सौर ज्वालाओं के पहले आते हैं. वास्तव में ये सौर ज्वाला के आने के ही संकेत होते हैं. इन पर निगरानी से हमें पता चल सकता है कि सौर ज्वालाएं कैसे और क्यों बनती हैं. युवा तारों में विशाल ज्वाला अमूमन रोज ही बनती हैं. जबकि हमारे सूर्य की तरह परिपक्व तारों में यह एक हजार सालों में एक बार बनती हैं. कुछ ज्वालाएं ग्रहों में RNA और DNA बनाने में मददगार हो सकती हैं जबकि बहुत ही शक्तिशाली ज्वालाएं वायुमंडल को बहुत नुकसान पहुंचा सकती हैं जिससे वह जीवन के अनुकूल नहीं रहा जाता है.
पृथ्वी (Earth) के बाहर जीवन (Life) और उसके संकेतों की तलाश के लिए वैज्ञानिक बहुत प्रकार से कोशिशें कर रहे हैं. इनमें मंगल, शुक्र, गुरू-शनि ग्रह के कुछ उपग्रहों का अवलोकन तो शामिल है ही, खगलोविद सुदूर तारों (Stars) के पास के बाह्यग्रहों (Exolanets) तक का अध्ययन कर रहे हैं. लेकिन ताजा अध्ययन का कहना है कि बाह्यग्रहों में जीवन के संकेतों के हालातों के बारे में जानकारी देने में हमारे सूर्य के धब्बे (Sunspots) मददगार हो सकते हैं.
क्या होते हैं ये धब्बे
हाल ही में एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित शोध ने बताया है कि कैसे सूर्य के धब्बे यानि वे इलाके जो सूर्य के आसपास की जगहों के मुकाबले ठंडे होते हैं और काले धब्बों की तरह दिखते हैं, हमें हमारे सौरमंडल के बाहर बाह्यग्रहों पर जीवन के स्थितियों को समझने में मददगार हो सकते हैं.
सौर ज्वाला के आने के संकेत
सूर्य के ये धब्बे सौर ज्वालाओं के पहले आते हैं. वास्तव में ये सौर ज्वाला के आने के ही संकेत होते हैं. इन पर निगरानी से हमें पता चल सकता है कि सौर ज्वालाएं कैसे और क्यों बनती हैं. युवा तारों में विशाल ज्वाला अमूमन रोज ही बनती हैं. जबकि हमारे सूर्य की तरह परिपक्व तारों में यह एक हजार सालों में एक बार बनती हैं. कुछ ज्वालाएं ग्रहों में RNA और DNA बनाने में मददगार हो सकती हैं जबकि बहुत ही शक्तिशाली ज्वालाएं वायुमंडल को बहुत नुकसान पहुंचा सकती हैं जिससे वह जीवन के अनुकूल नहीं रहा जाता है.
सूर्य से सुदूर तारों तक
इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और जापान एरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA) के इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस के वैज्ञानिक शिन तोरिउमी ने बताया, "हम जानना चाहते थे कि सूर्य के धब्बे वाले इलाके कैसे दिखेंगे अगर हम तस्वीर को बड़ा नहीं कर पाएं. इसके लिए हमें सूर्य के आंकड़ों का उपयोग किया और माना कि यह दूर के किसी तारे से आ रहा है जिससे हमें सौर भौतकी और तारकीय भौतिकी के बीच बेहतर संबंध मिल सके.
प्रकाश वक्र बनाया
सारे आंकड़ों का अध्ययन कर टीम ने प्रकाश वक्र (Light curve) बनाए जिससे पता चला कि सूर्य का धब्बा जब सूर्य के घूमने के दौरान सामने आता है तो प्रकाश में किस तरह के बदलाव आते हैं. इससे यह भी पता चला कि सूर्य के धब्बे तब कैसे लगेंगे जब वह बहुत से प्रकाशवर्ष दूर होंगे.
दूर के तारों के साथ समस्या
नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के एस्ट्रोफिजिसिस्ट और इस शोध के सहलेखक व्लादिमीर ऐरापेटियन ने बताया, "सूर्य हमारे सबसे नजदीक का तारा है. सूर्य का अवलोकन करने वाले सैटेलाइट के जरे हम 100 मील चौड़ी सतह के संकेत पढ़ सकते हैं. जबकि दूसरे तारों के मामलों में आपको यह सतह केवल एक ही पिक्सल में दिख सकती है. इसलिए हम पूरा एक टैमप्लेट ही बनाना चाहते थे जिससे कि हम दूसरे तारों की गतिविधि समझ सकें."
क्या समझा जा सकता है
इन तारों कि गतिविधि यह समझने में मदद कर सकती है कि 4 अरब साल पहले पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत कैसे हुई थी. बहुत से वैज्ञानिकों का मानना है कि उस समय सूर्य की प्रचंड गतिविधि ने ही जीवन की शुरुआत में योगदान दिया था.
तोरीउमी ने कहा कि अभी तक हमने सबसे बढ़िया हालातों पर काम किया है जहां केवल एक ही सूर्य का धब्बा दिखाई देता है, अब हम न्यूमेरिकल मॉडलिंग के तहत बहुत सारे सूर्य के धब्बों की स्थितियों का अध्ययन करेंगे."