बाप रे: डायनासोर से जुड़ी ये जानकारी हैरान करने वाली है, 15 करोड़ साल से है....
लंदन: आप यह जान लीजिए कि 'सर्दी-जुकाम-खांसी' (Cold-Cough-Sneezing) आधुनिक या नई बीमारी नहीं है. 15 करोड़ साल पहले डायनासोर भी इस बीमारी से परेशान रहते थे. उन्हें भी छींक-खांसी आती थी. बुखार होता था. यहां तक कई दिनों तक रेस्पिरेटरी संक्रमण यानी फेफड़ों के संक्रमण से परेशान रहते थे. पहली बार इस बात की पुष्टि करने वाले सबूत मिले हैं.
मोंटाना के माल्टा स्थित ग्रेट प्लेन्स डायनासोर म्यूजियम में पैलियोंटोलॉजी के निदेशक डॉ. कैरी वुडरफ ने कहा कि हमने जुरासिक काल के एक बेहद बड़े डायनासोर की गर्दन की हड्डियों की जांच की. इन्हें डिप्लोडोसिड (Diplodocid) कहते हैं. यह एक शाकाहारी डायनासोर की गर्दन थी. इस डायनासोर का नाम है डॉली (Dolly). इसे 30 साल पहले खोजा गया था. डॉ. कैरी और उनकी टीम ने स्टडी की शुरुआत तब की जब डॉली की गर्दन की हड्डियों में छोटे गोभी के आकार की आकृतियां दिखाई दीं.
डॉ. कैरी वुडरफ और उनकी टीम ने सॉरोपॉड (Sauropod) डॉली की हड्डियों की बारीकी से जांच शुरू की. उन्होंने बताया कि उन लोगों ने कभी ऐसी गोभी जैसी आकृतियां नहीं देखी थीं. वुडरफ ने सोशल मीडिया पर इन आकृतियों की तस्वीर डाली. लोगों से पूछने के लिए ये क्या है? तुरंत कई वैज्ञानिकों के जवाब आए. कई इस स्टडी में शामिल हुए. जिन्होंने जांच करके बताया कि यह सर्दी-जुकाम या रेस्पिरेटरी इंफेक्शन की वजह से होने वाला लक्षण है.
वैज्ञानिकों ने बताया कि आधुनिक पक्षियों की गर्दन का बारीक सीटी स्कैन अगर देखा जाए तो उनके अंदर भी ऐसी गोभी जैसी आकृतियां दिखती हैं. क्योंकि जिस जगह पर ये आकृतियां दिखाई दी, वह स्थान सांस लेने वाली प्रणाली के करीब थी. डायनासोर के फेफड़े की शुरुआत यहीं से होती थी. यानी उसके रेस्पिरेटरी सिस्टम की शुरुआत में ही गोभी जैसी आकृतियां हड्डियों पर पैदा हो गई थीं.
डॉ. कैरी वुडरफ ने कहा कि डॉली डायनासोर किसी बीमार इंसान की तरह ही खांस रहा होगा. छींक रहा होगा. उसे बुखार भी रहा होगा. हम सभी में आमतौर पर सर्दी जुकाम होने पर ऐसे ही लक्षण दिखते हैं. डॉ. कैरी को लगता है कि वो किसी अन्य जीवाश्म के साथ इतना अपनापन महसूस नहीं करते, जितना डॉली के साथ करते हैं. क्योंकि इसे सर्दी-जुकाम था, ऐसी बीमारी जो आजकल बेहद सामान्य सी बात है.
डॉ वुडरफ ने कहा कि उसे सर्दी जुकाम एसपरजिलोसिस (Aspergillosis) नाम के मोल्ड कणों को सूंघने की वजह से हो सकता है. आज कल के आधुनिक पक्षियों में अगर एसपरजिलोसिस का संक्रमण होता है, तो वह जानलेवा भी हो जाता है. क्योंकि अगर डॉली डायनासोर को एसपरजिलोसिस संक्रमण हुआ था, तो वह बेहद कमजोर होगा. अकेला होगा. या फिर इतना लाचार होगा कि शिकारियों के निशाने पर आ गया होगा. यह स्टडी हाल ही में Scientific Reports जर्नल में प्रकाशित हुई है.
वुडरफ और उनकी टीम की स्टडी से भविष्य में वैज्ञानिकों को यह पता चलेगा कि कैसे डायनासोरों को अलग-अलग तरह की बीमारियां होती थीं. क्योंकि डॉली जैसे सॉरोपॉड्स पक्षियों की तरह सांस लेते थे. उनके शरीर में पक्षियों की तरह एयर सैक सिस्टम था. यानी फेफड़ों तक तो हवा जाती ही थी. हवा एयर सैक के जरिए रीढ़ की हड्डियों तक भी जाती थी.
यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के वर्टिब्रेट पैलियोंटोलॉजी के प्रोफेसर माइकल बेंटन कहते हैं कि जब किसी हड्डी में चोट लगती रही होगी, तब ये एयर सैक फूट जाते होंगे. जिसकी वजह से हड्डियों में सूजन आती होगी. जैसी आकृति डॉली के गर्दन में दिखी है. मुर्गियों की गर्दन भी एयरसैक की वजह से मोटी और सूजी हुई दिखती है. ये भी छींकते रहेत हैं. नाक से पानी बहाते हैं. खांसते हैं. सोचिए 50 टन का डायनासोर जब छींकता या खांसता होगा तो उसके नाक-मुंह से कितना पदार्थ निकलता होगा.
यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग में पैलियोंटोलॉजी एंड इवोल्यूशन के प्रोफेसर स्टीव ब्रुसेट कहते हैं कि हमें डायनासोरों की बीमारियों के बारे में बहुत कम पता है. हमें तब तक कुछ पता नहीं चल सकता जब तक हड्डियों पर कोई निशान न मिले. डॉली की गर्दन पर निशान मिले. तब पता चल पाया कि उसे फेफड़े से संबंधित बीमारी थी. उसे सांल लेने में दिक्कत हो रही थी. सर्दी जुकाम और बुखार था. यह स्टोरी हाल ही में द गार्जियन में प्रकाशित हुई है.