एस्ट्रोनोमर्स का दावा- अरबों सालों में धीरे-धीरे लिया आकार, दो Galaxies की टक्कर से नहीं बना Milky way

Galaxies की टक्कर से नहीं बना Milky way

Update: 2021-05-25 15:46 GMT

एस्ट्रोनोमर्स ने दावा किया है कि हमारी आकाशगंगा 'मिल्की वे' (Milky Way) धीरे-धीरे और चुपचाप बनी है. अभी तक माना जाता रहा है कि ये अन्य आकाशगंगाओं के साथ टकराने से बनी है. हमारी अपनी आकाशगंगा जैसे दिखने वाली एक आकाशगंगा के क्रॉस सेक्शन बनाने पर ऑस्ट्रेलिया के ARC सेंटर ऑफ एक्सिलेंस और यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी (University of Sydney) के एस्ट्रोनोमर्स को आकाशगंगा को लेकर ज्यादा जानकारी मिली है. इसके जरिए उन्हें ये भी पता चला है कि कैसे मिल्की वे अरबों सालों पहले निर्मित हुआ.


टीम ने चिली (Chile) में लगे यूरोपियन सदर्न ऑब्जर्वेटरी के 'वेरी लार्ज टेलिस्कोप' (VLT) का प्रयोग किया. इसके जरिए उन्होंने UGC 10738 आकाशगंगा के क्रास-सेक्शन को ऑब्जर्व किया. इससे पता चला कि मिल्की वे की तरह इस आकाशगंगा में दो डिस्क मौजूद हैं. इसमें एक 'मोटी' और दूसरी डिस्क 'पतली' है. वहीं, मोटी डिस्क में पुराने तारे मौजूद हैं, तो पतली डिस्क में छोटे और युवा तारे स्थित हैं. ये पहले के सिद्धांतों के उलट है, जिसमें कहा गया कि ऐसी संरचनाएं एक छोटी आकाशगंगा के साथ हुई टक्कर का नतीजा नहीं है, बल्कि शांतिपूर्ण परिवर्तन ही वजह से इनका निर्माण हुआ है.
मिल्की वे में भी मौजूद है एक मोटी डिस्क
इस स्टडी के लेखकों का कहना है कि यह खोज एक 'गेम-चेंजर' साबित होने वाली है, क्योंकि इसका मतलब है कि मिल्की वे एक टक्कर का परिणाम नहीं है. UGC 10738 आकाशगंगा दो लाख प्रकाशवर्ष चौड़ी है, ठीक मिल्की वे की तरह. मिल्की वे में भी एक मोटी डिस्क है, जिसमें प्राचीन तारे मौजूद हैं. इस प्रोजेक्ट के प्रमुख डॉ निकोलस स्कॉट ने कहा, हमारे ऑब्जर्वेशन से पता चलता है कि मिल्की वे की पतली और मोटी डिस्क एक विशाल टक्कर की वजह नहीं बनी है, बल्कि ये आकाशगंगा के गठन और विकास के एक डिफॉल्ट सिस्टम की वजह से निर्मित हुईं. उन्होंने कहा कि इन नतीजों से पता चलता है कि मिल्की वे की तरह दिखने वाली आकाशगंगाओं को सामान्य के तौर पर परिभाषित किया जा सकता है.

दूर मौजूद आकाशगंगाओं के बारे में भी जुटाई जा सकती है जानकारी
डॉ स्कॉट ने बताया कि यह माना जा रहा था कि मिल्की वे की पतली और मोटी डिस्क एक हिंसक टक्कर के बाद बनी हैं और इसलिए शायद अन्य स्पाइरल आकाशगंगाओं में नहीं पाई जाएंगी. लेकिन हमारी रिसर्च ने बताया कि ऐसा गलत है. उन्होंने बताया कि रिसर्च से पता चला कि ऐसा प्राकृतिक रूप से हुआ होगा. इसका मतलब ये है कि मिल्की वे जैसी आकाशगंगाएं काफी समान हैं. इसके जरिए हम हमारी आकाशगंगा से दूर मौजूद आकाशगंगाओं के बारे में भी अब ज्यादा विस्तृत रूप से जानकारी हासिल कर पाएंगे. इन नतीजों को एस्ट्रोफिस्कल जर्नल लेटर्स में प्रकाशित किया गया है.


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