तीन महीने में ही 50 फीसदी तक घट गईं एंटीबॉडीज, क्या कोरोना वैक्सीन नहीं हैं असरदार, जानें अध्ययन में क्या पता चला

कोरोना की तीसरी लहर से सुरक्षा देने के लिए वैक्सीनेशन को सबसे कारगर हथियार के रूप में देखा जा रहा है

Update: 2021-07-28 14:21 GMT

कोरोना की तीसरी लहर से सुरक्षा देने के लिए वैक्सीनेशन को सबसे कारगर हथियार के रूप में देखा जा रहा है, हालांकि टीकों से बनी एंटीबॉडीज कितने दिनों तक प्रभावी रह सकती है, इसको लेकर लंबे समय से चर्चा की जा रही है। इसी संबंध में हाल ही में हुए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए हैं। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया है कि फाइजर और एस्ट्राजेनेका वैक्सीन से बनी एंटीबॉडीज का स्तर दूसरी डोज के छह सप्ताह बाद से ही कम होना शुरू हो जाता है। आश्चर्यजनक बात यह सामने आई है कि वैक्सीन ले चुके लोगों के शरीर में बनी एंटीबॉडीज का स्तर 3 महीने बाद 50 फीसदी तक कम पाया गया है।

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन के बाद से अब टीकाकरण की प्रभाविकता पर सवाल खड़े होने शरू हो गए हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे में तीसरी लहर में संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। जिस तरह से कोरोना के नए वैरिएंट्स लगातार कई देशों में कहर बरपा रहे हैं, अगर वैक्सीन से बनी एंटीबॉडीज इतनी जल्दी घट रही हैं तो यह निश्चित ही चिंता का विषय है। लोगों को सुरक्षित रखने के लिए तत्काल अतिरिक्त विकल्पों की ओर सोचना पड़ सकता है।
आइए आगे की स्लाइडों में इस अध्ययन के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं।
फाइजर वैक्सीन से बनीं एंटीबॉडीज अधिक
'द लैंसेट' जर्नल में प्रकाशित शोध में वैज्ञानिकों ने बताया कि अध्ययन के दौरान सभी उम्र, लिंग और बीमारियों से ग्रसित लोगों पर किए गए इस अध्ययन में वैक्सीन से बनीं एंटीबॉडीज का घटता हुआ प्रभाव देखने को मिला है। 600 लोगों पर किए गए इस अध्ययन के आधार पर शोधकर्ता इस परिणाम पर पहुंचे हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि प्रतिभागियों में फाइजर और एस्ट्राजेनेका वैक्सीन से बनीं एंटीबॉडीज के स्तर की भी तुलना की गई। इसमें एस्ट्राजेनेका के मुकाबले फाइडर की दो डोज के बाद बनीं एंटीबॉडीज की स्तर काफी अधिक पाया गया।
कितनी कम हो जा रही हैं एंटीबॉडीज?
अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि फाइजर वैक्सीन की दूसरी डोज के 21 से 41 दिनों के बाद एंटीबॉडीज का औसत स्तर 7506 यू/एमएल था जोकि करीब 70 दिनों बाद घटकर 3320 यू/एमएल रह गया। वहीं एस्ट्राजेनेका वैक्सनी की दूसरी डोज के 0-20 दिनों के बाद एंटीबॉडीज का औसत स्तर 1201 यू/एमएल था जोकि 70 दिनों बाद घटकर 190 यू/एमएल तक आ गया। इस आधार पर वैज्ञानिकों का कहना है कि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की तुलना में फाइजर से बनीं एंटीबॉडीज तो अधिक हैं, लेकिन इनके स्तर का घटना चिंता का विषय हो सकता है।
क्या संक्रमण से सुरक्षा देने में प्रभावी नहीं हैं वैक्सीन?
यूसीएल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ इंफॉर्मेटिक्स की प्रोफेसप मैडी सेरोत्री कहती हैं, एस्ट्राजेनेका या फाइजर वैक्सीन की दोनों खुराक के बाद एंटीबॉडी का स्तर शुरू में बहुत अधिक था, जिसे कि कोरोना के गंभीर संक्रमण के खिलाफ काफी सुरक्षात्मक माना जा सकता है, हालांकि दो-तीन महीने में इनका स्तर कम होता देखा जा रहा है। कोरोना के नए वैरिएंट्स के बढ़ते मामलों के बीच यह काफी चिंता का कारण हो सकती है। ऐसे में इस बात की आशंका जताई जा रही है कि नए वैरिएंट्स के खिलाफ टीकों के सुरक्षात्मक प्रभाव भी कम होने शुरू हो सकते हैं, हालांकि इस बारे में जानने के लिए हमें और अध्ययन की आवश्यकता है।
कितनी सरक्षित है वैक्सीन?
शोधकर्ताओं का कहना है कि अध्ययन का सैंपल छोटा है। अलग-अलग लोगों में उनके एंटीबॉडी के साथ-साथ टी-सेल प्रतिक्रियाएं भी भिन्न हो सकती हैं। फिलहाल वैक्सीन को कोरोना संक्रमण के खिलाफ असरदार मानकर ही चला जा रहा है। क्या गंभीर बीमारी से सुरक्षा के लिए आवश्यक एंटीबॉडी कम हो जा रही है, इस बारे में जानने के लिए हमें और बड़े स्तर पर अध्ययन की आवश्यकता है। संभव है कि आने वाले दिनों में लोगों को बूस्टर डोज के रूप में तीसरे खुराक देने की आवश्यकता हो सकती है।
स्रोत और संदर्भ:
अस्वीकरण नोट: यह लेख द लैंसेट में जर्नल में प्रकाशित शोध के आधार पर तैयार किया गया है। लेख में शामिल सूचना व तथ्य आपकी जागरूकता और जानकारी बढ़ाने के लिए साझा किए गए हैं। संबंधित विषय के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए अपने चिकित्सक से सलाह लें।
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