कृषि वैज्ञानिक ने दी जानकारी, सेकेंडरी एग्रीकल्चर से किसानों को हो रहा ज्यादा मुनाफा
इसे कहते हैं प्राइमरी एग्रीकल्चर
देश के किसानों की आय को दोगुना करना केंद्र सरकार का लक्ष्य है. इसके लिए लगातार कई तरह के प्रयास किये जा रहे हैं. सरकार कई तरह की योजनाएं किसानों के लिए ला रही है. वहीं देश के वैज्ञानिक लगातार नयी तकनीक, उन्नत किस्म के बीज तैयार कर रहे हैं ताकि किसानों को विपरित परिस्थियों में भी बेहतर पैदावार हासिल हो सके और उनकी आय बढ़े. इन सबके अलावा कृषि के विकल्प भी तलाशे जा रहे हैं क्योंकि पारंपरिक खेती से भर आय बढ़ाना संभव नहीं है. किसानों की आय को बढ़ाने की एक ऐसी की विधि है द्वितीयक कृषि.
इसे कहते हैं प्राइमरी एग्रीकल्चर
राल एव गोंद संस्थान के निदेशक डॉ के के शर्मा ने बताया कि किसान जो भी खेती करते हैं, जैसे फल सब्जियां और अनाज उसे प्राइमरी एग्रीकल्चर कहा जाता है. फिर जब इसके बाद फसल तैयार हो जाती है तो किसान उसकी साफ सफाई करते हैं उसकी ग्रेडिंग करते हैं. उसे प्राइमरी प्रोसेसिंग कहा जाता है. इससे हमारा एक उत्पाद बनकर तैयार हो जाता है.
सेकेंडरी एग्रीकल्चर
फिर उस उत्पाद के बाद हम उसमें मूल्य संवर्धन (value Addition) हैं. उदाहरण के लिए अगर किसान गेंहू की खेती करते हैं. उसे काट कर अच्छे से सुखाकर साफ करेंगे तो वह प्राइमरी प्रोसेसिंग कहलाती है. पर अगर गेंहू से आटा बना लिया जाए, या उसे रोटी बनाकर बेचेंगे तो वह सेकेंडरी एग्रीकल्चर कहलाती है. इसका अर्थ यह है कि प्राइमरी एग्रीकल्चर के उत्पाद में मूल्य संवर्धर करके उससे क्या क्या उत्पाद बना सकते हैं यहा कार्य करना सेकेंडरी एग्रीकल्चर कहलाता है.
उदाहरण के साथ समझे क्या होता है सेकेंडरी एग्रीक्लचर
उन्होंने लाह का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर किसान लाह की खेती करते हैं जो सबसे पहले उसे तोड़ जाता है, फिर धोया जाता है फिर सुखाया जाता है. फिर उसे गलाया जाता है. जो प्राइमरी प्रोसेंगिग के अंतर्गत आती है. पर उसके बाद लाह से बहुत सी चीजें बनायी जाती है, जिससे लाह की कीमत बढ़ जाती है. जैसे लाह से वार्निंश बनाया जाता है, लाह से चुड़िया, पेंट और आलता भी बनता है, साथ ही इससे वैक्स बनाया जाता है. जिसे सेकेंडरी एग्रीकल्चर कहा जाता है.
सेकेंडरी एग्रीकल्चर के लिए क्या करें किसान
सेकेंडरी एग्रीकल्चर करके किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं. इसमे किसान सिर्फ प्राइमरी उत्पाद को बाजार में नहीं बेचें, वो इसका प्रसंस्करण करके सेकेंडरी उत्पाद बाजार में बेच सकते हैं. इसके लिए जरूरी नहीं है किसान भाई बड़े पैमाने पर शुरुआत करें. अपने गांव में वो छोटी शुरुआत भी कर सकते हैं. क्योंकि वैल्यू एडिशन करने के बाद उनके वही उत्पागद बाजार में 50 रुपये तक बिकेंगे जिन्हें कच्चा बेचकर किसान को सिर्फ 10 रुपए की कमाई होती. इससे किसान की आमदनी बढ़ेगी और गांव में रोजगार के विकल्प मिलेंगे.
पूंजी के लिए एमएसएमइ मंत्रालय से मिलता है लोन
छोटे उद्योग के लिए बहुत अधिक की पूंजी की जरूरत नहीं होती है. इसमें छोटे मशीन और मेहनत से काम चलाया जा सकता है. इसके साथ उद्योग मंत्रालय के एमएसएमई के तहत लोन दिये जाते हैं. जहां से उन्हें सब्सिडी मिलती है. यहां से किसान संपर्क करके लोन ले सकते हैं. बिजनेस शुरू करके पूरे गांव को रोजगार दे सकते हैं.
पानी की कमी हो तो वैक्लपिक खेती पर दें ध्यान
डॉ के के शर्मा ने कहा कि जिन राज्यों में बारिश कम होती है, वहां के किसान साल भर में एक खेती कर पाते हैं. तो वैसे राज्य के किसान मधुमक्खी पालन, तसर की खेती और लाह की खेती कर सकते हैं. इसमें उन्हें आय भी होगी और खाली समय में यह काम कर सकते हैं.