द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश के इस स्वरुप की करें पूजा, दूर होंगे सारे कष्ट
फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी कहते हैं. इस दिन भगवान गणेश के छठे स्वरूप की पूजा का विधान है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान गणेश की पूजा से जीवन की सभी परेशानियों का अंत होता है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी कहते हैं. इस दिन भगवान गणेश के छठे स्वरूप की पूजा का विधान है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान गणेश की पूजा से जीवन की सभी परेशानियों का अंत होता है. इस बार द्वप्रिय संकष्टी चतुर्थी 20 फरवरी, रविवार के दिन है. आइए जानते हैं इस दिन भगवान गणेश की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त के बारे में.
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त (Dwijapriya Sankashti Chaturthi Shubh Muhurat)
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश के 32 स्वरुपों में से एक छठे स्वरुप की पूजा की जाती है. पंचांग के मुताबिक द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत 20 फरवरी, रविवार के दिन रखा जाएगा. चतुर्थी तिथि की शुरुआत 19 फरवरी की रात 9 बजकर 56 मिनट से होगी. जिसका समापन 20 फरवरी को रात्रि 9 बजकर 5 मिनट पर होगा. साथ ही संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रोदय रात्रि 9 बजकर 50 मिनट पर होगा.
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि (Dwijapriya Sankashti Chaturthi Puja Vidhi)
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा के लिए सुबह उठकर स्नान के बाद साफ-सुथरे कपड़े पहनें. घर के पूजा स्थल की साफ-सफाई करें. पूजन सामग्री को तौर पर तिल, गुड़, लड्डू, तांबे के कलश में पानी, चंदन, धूप, फूल और प्रसाद के लिए केला या नारियल इत्यादि की व्यवस्था कर लें. इससे बाद साफ आसन पर बैठकर उत्तर दिशा की ओर मुंह करके भगवान गणेश को रोली फूल और जल अर्पित करें. जल अर्पित करने से पहले उसमें तिल अवश्य मिला लें. भगवान गणेश को तिल के लड्डू और मोदक का भोग अवश्य लगाएं. दिन भर उपवास रखें. शाम को विधि-विधान से संकष्टी भगवान की पूजा और आरती करें. रात को चंद्र के अर्घ्य देने के बाद तिल या लड्डू खाकर व्रत का पारण करें.