श्रावण मास में कर लें भोले की आराधना और इस मंत्र का जाप, सभी कष्टों होंगे दूर
श्रावण मास शुरू होने में अब कुछ दिन ही बचे हैं, इस माह में भगवान मृत्युंजय यानी भोले शंकर की आराधना की जाती है. शिव जी भक्तों पर बहुत कृपालु होते हैं इसलिए उनकी पूजा अर्चना करने के भी बहुत से तरीके हैं.
श्रावण मास शुरू होने में अब कुछ दिन ही बचे हैं, इस माह में भगवान मृत्युंजय यानी भोले शंकर की आराधना की जाती है. शिव जी भक्तों पर बहुत कृपालु होते हैं इसलिए उनकी पूजा अर्चना करने के भी बहुत से तरीके हैं. आज इस लेख में हम एक ऐसे महामंत्र के बारे में बताएंगे जिसका जाप करने से जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. भगवान शिव का महामंत्र महामृत्युंजय का जाप करने से रोग और भय से मुक्ति के साथ ही आयु में वृद्धि भी होती है. महामृत्युंजय मंत्र का जाप विपत्ति के समय दिव्य ऊर्जा के कवच की सुरक्षा प्रदान करता है.
इस मंत्र के कंपन यानी वाइब्रेशन से हीन शक्तियां समाप्त होती हैं.
मंत्र के बारे जानने के पहले हीन शक्तियों को समझना जरूरी है. हीन शक्तियां दो प्रकार की होती है, पहली वह जो मनुष्य स्वयं अपने भीतर विपरीत विचार धाराओं द्वारा निर्मित करता है और दूसरी वह जो दूसरों द्वारा निर्मित की जाती हैं. महामृत्युंजय महामंत्र का जब जाप किया जाता है तो एक विशिष्ट प्रकार का वाइब्रेशन पैदा होता है जो इन हीन शक्तियों के प्रभाव को खत्म कर देता है. इस मंत्र का पाठ बचपन से ही करना चाहिए ताकि इस दिव्य मंत्र का कवच सदैव साथ रहे.
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
आइए इस महामृत्युंजय मंत्र के एक-एक शब्द को समझते हैं-
त्र्यम्बकं: इसका अर्थ है तीन आंखों वाला, भगवान शिव की दो साधारण आंखें हैं पर तीसरी आंख दोनों भौंहों के मध्य में है. यह तीसरी आंख है विवेक और अंतर्ज्ञान की, ठीक उसी प्रकार जब मनुष्य विवेक की दृष्टि से देखता है तो उसका अनुभव कुछ और ही होता है. इसके जाप से विवेक की दृष्टि आने लगती है.
यजामहे: इसका अर्थ है हम पूछते हैं.. भगवान के प्रति जितना पवित्र भाव पाठ व जाप के दौरान रखा जाएगा उतना ही उसका प्रभाव बढ़ेगा. ईश्वर के प्रति सम्मान और विश्वास रखते ही प्रकृति की ओर देखने का नजरिया बदलने लगेगा. जब भी हम पूजा पाठ करते हैं तो कुछ विपरीत शक्तियां मन को हटाने की कोशिश करती हैं लेकिन यदि इन हीन शक्तियों के वेग को रोक लिया जाए तो ईश्वरीय कृपा प्राप्त होती है.
सुगन्धिं: भगवान शिव सुगंध के पुंज हैं, जो मंगलकारी है उनका नाम ही शिव है. उनकी ऊर्जा को ही यहां पर सुगंध कहा गया है. जब व्यक्ति अहंकारी, अभिमानी और ईष्यालु होता है तो उसके व्यक्तित्व से दुर्गंध आती है और इन अवगुणों के समाप्त होते ही व्यक्तित्व से सुगंध आने लगती है. कुछ लोगों का व्यक्तित्व इतना आकर्षक होता है कि उनके निकट बैठने पर पॉजिटिव वाइब्स आती हैं, उनकी बात करने का तरीका अच्छा लगता है, उनकी प्रसन्नता और उनका सकारात्मक से दूसरे चार्ज होते हैं. वहीं कुछ दुखी लोग मिलते ही अपनी समस्याओं का बखान करने लग जाते हैं जिससे मन नकारात्मक ओहरे में चला जाता है.
पुष्टिवर्धनम्: अर्थात आध्यात्मिक पोषण और विकास की ओर जाना, मौन अवस्था में रहते हुए आध्यात्मिक विकास अधिक रह सकता है. संसार में ईर्ष्या, घृणा, अहंकार आदि के कीचड़ में रहते हुए कमल की तरह खिलना होगा. आध्यात्मिक विकास से ही कमल की तरह खिला जा सकता है.
उर्वारुकमिवबंधनान्: इसका अर्थ है संसार में जुड़े रहते हुए भी भीतर से अपने को इस बंधन से छुड़ाना, भगवान शिव से प्रार्थना कि मुझे संसार में रहते हुए आध्यात्मिक परिपक्वता प्रदान करें. जिस तरह नौकरी करने वाले ऑफिस में इंक्रीमेंट और प्रमोशन तथा व्यापारी मुनाफे का हिसाब लगाते हैं उसी तरह आध्यात्मिक इंक्रीमेंट और प्रमोशन के बारे में भी चिंतन करना चाहिए.
मृर्त्योर्मुक्षीय मामृतात्: आध्यात्मिक परिपक्वता आने के बाद मृत्यु के भय से मुक्ति मिल जाती है. हे प्रभु, आपके अमृतत्व से कभी हम वंचित न हो.. जब यह भाव मजबूत हो जाएगा तब मृत्यु के भय से मुक्ति मिल जाएगी. भय वहीं तक रहता है जहां तक आपको लगता है कि आप कुछ कर सकते हैं लेकिन जो चीज आपकी पकड़ से बाहर है उसको लेकर चिंता कैसी. पजेसिव रहना ही मोह है.
कैसे करें जाप: भगवान शिव की मूर्ति या चित्र के सामने स्वच्छ आसन में पद्मासन की अवस्था में बैठ जाएं और रुद्राक्ष की माला से जाप करें. जाप करने से पहले सामने एक कटोरी में जल रख लें, जाप करने के बाद उस जल को पूरे घर में छिड़क दें, इससे हीन शक्तियों का दुष्प्रभाव नहीं होगा.