चैत्र सप्तमी को शनि ग्रह की नियंत्रक कालरात्रि स्वरूप की पूजा,जानें पूजा विधि और मंत्र

नवरात्र के सातवें दिन देवी मां के सातवें रूप कालरात्रि के पूजन का विधान है।

Update: 2022-04-05 12:00 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। देवी मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा नवरात्र में विशेष मानी जाती है। ऐसे में नवरात्र के सातवें दिन देवी मां के सातवें रूप कालरात्रि के पूजन का विधान है। माता कालरात्रि को देवी पार्वती के समतुल्य माना गया है। माता कालरात्रि के नाम का शाब्दिक अर्थ अंधेरे को ख़त्म करने से है। ऐसे में इस बार चैत्र नवरात्र 2022 में चैत्र सप्तमी यानि माता कालरात्रि का शुक्रवार के दिन 08 अप्रैल को पूजन किया जाएगा।

मान्यता के अनुसार जब आप दुश्मनों से घिर जाएं और हर ओर विरोधी नजऱ आए, तो ऐसे में आपको माता कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से हर तरह की शत्रुबाधा से मुक्ति मिलती है।
शनि ग्रह की नियंत्रक देवी कालरात्रि
देवी कालरात्रि को ज्योतिषीय मान्यताओं में शनि ग्रह को नियंत्रित करने वाली माना जाता हैं। मान्यता के अनुसार देवी कालरात्रि की पूजा, शनि के बुरे प्रभाव को कम करती है।
माता कालरात्रि का स्वरूप
दरअसल देवी कालरात्रि को मां दुर्गाजी की सातवीं शक्ति के नाम से जाना जाता हैं। एक अंधकार की तरह मां कालरात्रि के पूरे शरीर का रंग है, इसी कारण इनका शरीर काला रहता है। इनके बाल हमेशा खुले रहते हैं। जबकि वे गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला पहने रहतीं हैं। देवी कालरात्रि के तीन नेत्र तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं।
इन नैत्रों से विद्युत के समान चमकीली किरणें निकलती रहती हैं। वहीं अग्नि की भयंकर ज्वालाएं मां की नासिका के श्वास-प्रश्वास से निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है। ये अपने दाहिने हाथ ( जो ऊपर की ओर उठा हुआ है) की वरमुद्रा से सभी को आाशीर्वाद प्रदान करती हैं। जबकि दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। इसके अलावा बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और बाईं तरफ के नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है।
मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही प्रदान करती हैं। इसी कारण इनका एक नाम 'शुभंकारी' भी है। ऐसे में जानकारों का मानना है कि भक्तों को इनसे भयभीत अथवा आतंकित नहीं होना चाहिए।
माता कालरात्रि की पौराणिक मान्यताएं
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शुंभ और निशुंभ नामक दो दानवों ने देवलोक में तबाही मचा रखी थी। इस युद्ध में देवताओं के राजा इंद्रदेव की हार के पश्चात देवलोक पर दानवों का राज हो गया। इस स्थिति में समस्त देव अपना लोक वापस पाने की इच्छा लिए मां पार्वती के पास गए। जिस समय देवताओं ने देवी को अपनी व्यथा सुनाई उस समय देवी अपने घर में स्नान कर रहीं थीं, इसलिए उन्होंने उनकी मदद के लिए चण्डी को भेजा।
जब देवी चण्डी दानवों से युद्ध के लिए गईं, तो दानवों ने उनसे लड़ने के लिए चण्ड-मुण्ड को भेजा। तब देवी ने मां कालरात्रि को उत्पन्न किया और देवी कालरात्रि ने उनका वध कर दिया इसी कारण उनका एक नाम चामुण्डा भी पड़ा। इसके बाद उनसे लड़ने के लिए रक्तबीज नामक राक्षस आया। जो अपने शरीर को विशालकाय बनाने में सक्षम था और उसके रक्त (खून) के जमीन पर गिरने से भी एक नया दानव (रक्तबीज) पैदा हो रहा था। तब देवी ने उसे मारकर उसका रक्त पीने का विचार किया, ताकि न उसका खून ज़मीन पर गिरे और न ही कोई दूसरा पैदा हो। धार्मिक पुस्तकों में माता कालरात्रि को लेकर बहुत सारे संदर्भ मिलते हैं।
कालरात्रि की पूजा विधि :
पंडित एके शुक्ला के अनुसार देवी कालरात्रि का यह रूप ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करने वाला है। ऐसे में नवरात्रि का सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए अति महत्वपूर्ण होता है। सप्तमी पूजा के दिन तंत्र साधना करने वाले साधक मध्य रात्रि में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं।
नवरात्रि में सप्तमी तिथि का काफी महत्व बताया गया है। इस दिन से भक्तों के लिए देवी मां का दरवाज़ा खुल जाता है और भक्त विभिन्न पूजा स्थलों पर देवी के दर्शन के लिए जुटने लगते हैं।
सप्तमी की पूजा सुबह अन्य दिनों की तरह ही की जाती है, परंतु इस दिन रात्रि में देवी की विशेष विधान के साथ पूजा की जाती है। इस दिन अनेक प्रकार के मिष्टान व कहीं-कहीं तांत्रिक विधि से भी पूजा की जाती है। सप्तमी की रात्रि को 'सिद्धियों' की रात भी कहा जाता है। इस दिन जो साधक कुण्डलिनी जागरण के लिए साधना में लगे होते हैं, वे इस दिन सहस्त्रसार चक्र का भेदन करते हैं। ध्यान रहें देवी की पूजा के बाद शिव और ब्रह्मा जी की पूजा भी अवश्य करनी चाहिए।
पूजा विधान के तहत शास्त्रों में जैसा वर्णित हैं उसके अनुसार पहले कलश की पूजा करनी चाहिए फिर नवग्रह, दशदिक्पाल, देवी के परिवार में उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए। इसके पश्चात मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए। देवी की पूजा से पहले उनका ध्यान करना चाहिए।
''देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्तया, निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूत्र्या तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां, भक्त नता: स्म विदाधातु शुभानि सा न:...
भोग : मां कालरात्रि को शहद का भोग लगाएं।


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