धर्म अध्यात्म: हिंदू धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है। इसी तरह शनिवार का दिन कर्मफल दाता शनिदेव को समर्पित होता है। बता दें कि शनिवार की व्रत कथा का भी बहुत अधिक महत्व होता है। शनिवार के दिन जो भी व्यक्ति विधि-विधान से शनि देव की पूजा-अर्चना कर उनका व्रत करता है और कथा पढ़ता है। उस पर शनि देव प्रसन्न होते हैं। ऐसे व्यक्ति को शनि देव की कुदृष्टि और साढ़े साती के कष्टों से भी मुक्ति मिलती है। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको शनिवार व्रत कथा, पूजन विधि और आरती के बारे में बताने जा रहे हैं।
शनिवार व्रत कथा
बता दें कि एक बार सभी नौ ग्रहों में इस बात को लेकर बहस छिड़ गई कि उनमें से सबसे बड़ा और ताकतवर ग्रह कौन है। जब इस बात का निर्णय न हो सका तो सभी ग्रह आपकी सहमति से राजा विक्रमादित्य के पास जा पहुंचे। राजा विक्रमादित्य एक न्यायप्रिय राजा के तौर पर जाने जाते थे। राजा के दरबार में जाकर नौ ग्रहों ने अपनी बात सामने रखी। नौ ग्रहों की बात सुन राजा ने नौ सिंहासन का निर्माण करवाकर उन्हें क्रम से रखवा दिया। राजा द्वारा बनवाए गए यह सिंहासन सुवर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से निर्मित थे।
इसके बाद राजा ने कहा कि सभी ग्रह अपनी इच्छा से सिंहासन पर विराजमान हो जाएं। साथ ही जो सबसे छोटे और आखिरी सिंहासन पर बैठेगा, वह ग्रह सबसे छोटा माना जाएगा। इस शर्त के कारण शनि देव को सबसे आखिरी सिंहासन पर बैठना पड़ा और वह सबसे छोटे ग्रह माने गए। इस घटना से शनिदेव काफी ज्यादा क्रोधित हो गए और राजा विक्रमादित्य को सावधान होने की चेतावनी देकर नाराज होकर सभा से निकल गए।
शनि देव के दरबार से क्रोधित होकर जाते ही राजा की साढ़े साती शुरू हो गई। उनका बुरा समय शुरू होते ही वह जंगल में भूखे-प्यासे भटकने लगे। एक समय ऐसा भी आया जब राजा अपांग हो गए। तब शनिदेव ने उन्हें अपने दर्शन देते हुए अपने द्वारा दी गई चेतावनी याद दिलाए। जब राजा ने शनि देव से क्षमा याचना की तो शनि देव ने उनको साढ़े साती से मुक्ति का उपाय बताया। इसके बाद राजा विक्रमादित्य ने शनिवार का व्रत शुरू किया और चीटियों को आटा खिलाने लगे।
उनकी पूजा और भक्ति को देख धीरे-धीरे शनिदेव का क्रोध शांत हो गया। इस तरह से शनि देव राजा विक्रमादित्य पर प्रसन्न हुए और उनके सभी कष्टों को हर लिया। फिर शनि देव ने राजा को क्षमा कर उन्हें जीवन के सारे भौतिक सुखों का आनंद दिया। इस तरह से राजा विक्रमादित्य शनि देव की साढ़े साती से मुक्त हो गए।
शनिवार पूजा विधि
शनिवार के दिन सुबह सूर्योदय से पहले स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
इसके बाद शनि देव का ध्यान करते हुए मन में पूजा व व्रत का संकल्प लें।
शनिवार को पीपल के पेड़ को जल अर्पित कर धूप-दीप दिखाएं और शनि मंत्रों का जाप करें।
फिर शनिदेव को काला तिल, काला वस्त्र और सरसों का तेल चढ़ाएं।
अंत में शनिवार की व्रत कथा कहें और शाम को शनिदेव की आरती करें।
शनिवार आरती
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी। सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी।। जय जय श्री शनिदेव।।
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी। नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी।। जय जय श्री शनिदेव।।
क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी। मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी।। जय जय श्री शनिदेव।।
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी । लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी।। जय जय श्री शनिदेव।।
देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी। विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी।। जय जय श्री शनिदेव।।