बसंत पंचमी पर ज्ञान की देवी की यह वंदना कर उन्हें ऐसे करें प्रसन्न
हर साल माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन बसंत पंचमी को मां सरस्वती के प्राकट्य दिवस के तौर पर मनाया जाता है.
जनता से रिश्ता बेवङेस्क | हर साल माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन बसंत पंचमी को मां सरस्वती के प्राकट्य दिवस के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन माता सरस्वती की पूजा कर उनसे बुद्धि और विवेक बनाए रखने की प्रार्थना की जाती है. इस बार बसंत पंचमी 16 फरवरी को है. संगीत प्रेमी और विद्यार्थी खासतौर पर इस दिन का इंतजार करते हैं ताकि मां सरस्वती के आशीर्वाद से जीवन में सफलता प्राप्त कर सकें. बसंत पंचमी की पूजा के दौरान माता को पीले पुष्प चढ़ाए जाते हैं और पीले मीठे चावल का भोग लगाया जाता है. वहीं भक्त भी पीले वस्त्र पहनकर ही माता की पूजा करते हैं. ऐसा क्यों किया जाता है, जानिए इसके बारे में.
दरअसल धार्मिक रूप से पीले रंग को पीले रंग को शुभ, शुद्ध और सात्विक प्रवृत्ति का माना जाता है और ये सादगी व निर्मलता को प्रदर्शित करता है. मान्यता है कि पीला रंग माता सरस्वती का भी प्रिय रंग है. ये भी माना जाता है कि जब ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई थी तब तीन ही प्रकाश की आभा थी वो थी लाल, पीली और नीली. इनमें से पीली आभा सबसे पहले दिखी थी.
बसंत ऋतु में चारों ओर पीला रंग
वहीं बसंत को ऋतुओं का राजा माना जाता है. बसंत के मौसम में सरसों की पीले रंग से सजी फसलें खेतों में लहराती हैं. फसल पकती है और पेड़-पौधों में नई कपोलें फूटती हैं जो कि प्रकृति को पीले और सुनहरे रंगों से सजा देती है. इसकी वजह से धरती पीली सी नजर आती है. इस तरह देखा जाए तो बसंत ऋतु में चारों ओर प्रकृति ने पीला रंग बिखेरा है. वहीं मां सरस्वती का जन्म भी बसंत ऋतु में ही हुआ है. इन वजहों माता की पूजा के समय सिर्फ वस्त्र ही नहीं बल्कि उन्हें अर्पित किए जाने वाले वस्त्र भोग, फल, फूल भी पीले रंग के होते हैं. इस तरह सिर्फ मां सरस्वती को ही नहीं बल्कि प्रकृति के प्रति भी सम्मान और आभार प्रकट किया जाता है.
ये है शुभ मुहूर्त
इस बार बसंत पंचमी 16 फरवरी की सुबह 03 बजकर 36 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 17 फरवरी को सुबह 5 बजकर 46 मिनट तक रहेगी. यानी 16 फरवरी को पूरा दिन आप कोई भी शुभ काम कर सकते हैं. अति शुभ मुहूर्त सुबह 11ः30 से 12ः30 के बीच रहेगा.
ऐसे करें पूजन
एक चौकी या पाटे पर मां सरस्वती की प्रतिमा या मूर्ति रखें. उन्हें पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें. खुद भी पीले वस्त्र पहनें. अगर पीले वस्त्र न हों तो कलाई पर पीला रुमाल बांध लें. इसके बाद रोली, चंदन, हल्दी, केसर, चंदन, अक्षत पीले पुष्प अर्पित करें और पीले मीठे चावल का भोग लगाएं. पूजा के स्थान पर वाद्य यंत्र और किताबों को अर्पित करें और मां सरस्वती की वंदना करें.