मां स्कंदमाता की पूजा विधि, आरती एवं महत्व

इन दिनों चैत्र नवरात्रि चल रही है. भक्त देव दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए विधि विधान से पूजा करते हैं

Update: 2021-04-17 02:10 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | इन दिनों चैत्र नवरात्रि चल रही है. भक्त देव दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए विधि विधान से पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं. आज नवरात्रि का पांचवां दिन है. इस दिन मां स्कंदमाता की पूजा अर्चना की जाती है. स्कंदमाता को देवी दुर्गा का मातृत्व स्वरूप कहा जाता हैं.

स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं. उनका वाहन शेर है. स्कंदमाता कमल के आसन पर विराजमान होती है. इसलिए उन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है. आइए जानते है स्कंदमाता की पूजा विधि, कथा, आरती और महत्व के बारे में.
पूजा की विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनकर मां स्कंदमाता की पूजा करें. सबसे पहले माता को गंगाजल अर्पित करें. इसके बाद फूल, अक्षत, सिंदूर चढ़ाएं. इसके बाद माता के आगे धूप- दीप जलाएं. स्कंदमाता को भोग में केले लगाएं. इस दिन दान पुण्य करने का खास महत्व होता है.
पूजा का महत्व
स्कंदमाता की विधि- विधान से पूजा अर्चना करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है. इसके अलावा स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से छुटकारा मिलता है. मां स्कंदमाता के आर्शीवाद से जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं.
स्कंदमाता का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
स्कंदमाता की आरती
जय तेरी हो स्कंद माता,
पांचवा नाम तुम्हारा आता,
सब के मन की जानन हारी,
जग जननी सब की महतारी.
तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं,
हरदम तुम्हे ध्याता रहूं मैं,
कई नामो से तुझे पुकारा,
मुझे एक है तेरा सहारा.
कहीं पहाड़ों पर है डेरा,
कई शहरों में तेरा बसेरा.
हर मंदिर में तेरे नजारे गुण गाये,
तेरे भगत प्यारे भगति.
अपन मुझे दिला दो शक्ति,
मेरी बिगड़ी बना दो.
इन्दर आदी देवता मिल सारे,
करे पुकार तुम्हारे द्वारे.
दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आये,
तुम ही खंडा हाथ उठाये
दासो को सदा बचाने आई,
चमन की आस पुजाने आई.
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, तारकासुर नाम के राक्षक ने घोर तप कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर अमर होने का वरदान मांगा था. ब्रह्मा जी ने तारकासुर को समझाया कि संसार में सबकी मृत्यु तय है. जो आया है उसे मरना भी पड़ेगा. इसके बाद तारकासुर ने ब्रह्मा जी से भगवान शिव के पुत्र से मृत्यु का वरदान मांग. उसने सोचा भगवान शिव कभी विवाह नहीं करेंगे तो उनका पुत्र कैसे मार सकता है. तारकासुर लोगों पर अत्याचार करने लगा. ये देख देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना कि वो तारकासुर को मुक्ति दिलाएं. इसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती से शादी की. उनका पुत्र कार्तिकेय ने बड़े होने के बाद तारकासुर का वध किया. स्कंदमाता कार्तियकेय की माता हैं.


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