जगन्नाथजी को क्यों लगाया जाता है खिचड़ी का भोग
हिन्दू धर्म में चार धामों का बहुत महत्त्व है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | हिन्दू धर्म में चार धामों का बहुत महत्त्व है। इन्हीं में से एक धाम जगन्नाथ पुरी भारत के पूर्वी हिस्से में स्थित है। भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का रूप हैं जगन्नाथ, यानी जगत के स्वामी। पुरी को 'पुरुषोत्तम क्षेत्र' व 'श्री क्षेत्र' के नाम से भी जाना जाता है।
पुरी में सबसे महत्त्वपूर्ण स्थल है भगवान जगन्नाथ का मंदिर, जहां वह अपने दाऊ बलभद्र जी और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं। कहते हैं कि सबसे पहले भगवान जगन्नाथ की पूजा आदिवासी विश्ववसु ने नीलमाधव के रूप में की थी। इस मंदिर का निर्माण राजा इंद्रद्युम्न ने कराया था। वर्तमान मंदिर का निर्माण राजा चोडगंग देव ने 12वीं शताब्दी में कराया था। मंदिर का स्थापत्य कलिंग शैली का है।
रथयात्रा: हर साल यहां आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से रथयात्रा का आयोजन होता है। श्री जगन्नाथजी, बलभद्रजी और सुभद्राजी रथ में बैठकर अपनी मौसी के घर, तीन किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। लाखों लोग रथ खींच कर तीनों को वहां ले जाते हैं। फिरआषाढ़ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को तीनों वापस अपने स्थान पर आते हैं। रथयात्रा को देखने के लिएलाखों लोग देश-विदेश से पुरी आते हैं।
खिचड़ी भोग: यहां के खिचड़ी भोग की बहुत महिमा है। इसकी एक रोचक कथा है। जगन्नाथ पुरी में एक भक्त महिला रहती थीं कर्माबाई, जो जगन्नाथजी की पूजा पुत्र रूप में करती थीं। एक दिन उसकी इच्छा भगवान को अपने हाथों से बनाकर कुछ खिलाने की हुई। अपनी भक्तिन माता की इच्छा जान भगवान उनके सामने प्रकट हो गए और बोले,'माता, बहुत भूख लगी है।' कर्माबाईने खिचड़ी बनाई थी। भगवान ने बहुत रुचि के साथ खिचड़ी खाई और कहा, 'मां, मेरे लिए रोज खिचड़ी बनाया करो।' एक दिन एक महात्मा कर्माबाई के पास आए। उन्होंने सुबह-सुबह कर्माबाई को बिना स्नान किए खिचड़ी बनाते देखा तो कहा कि पूजा-पाठ के नियम होते हैं।अगले दिन कर्माबाई ने ऐसे ही किया। इसमें देर हो गई। तभी भगवान खिचड़ी खाने पहुंच गए। बोले, 'शीघ्र करो मां, उधर मेरे मंदिर के पट खुल जाएंगे।' जब कर्माबाई ने खिचड़ी बनाकर परोसी, तो वह जल्दी-जल्दी खाकर मंदिर को भागे। उनके मुंह पर जूठन लगी रह गई थी।
मंदिर के पुजारी ने देखा, तो पूछा, 'यह क्या है भगवन्!' भगवान ने कर्माबाई के यहां रोज सुबह खिचड़ी खाने की बात बताई। यह क्रम चलता रहा। एक दिन कर्माबाई की मृत्यु हो गई। मंदिर के पुजारी ने देखा, भगवान की आंखों से अश्रुधारा बह रही है। पुजारी ने कारण पूछा तो भगवान ने बताया, 'मेरी मां परलोक चली गई, अब मुझे इतने स्नेह से खिचड़ी कौन खिलाएगा!' पुजारी ने कहा, 'प्रभु! यह काम हम करेंगे।' माना जाता है कि तब से प्रात:काल भगवान को खिचड़ी का भोग लगाने की परम्परा चली आ रही है।
कैसे पहुंचें: पुरी से नजदीकी एअरपोर्ट भुवनेश्वर है, जो करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर है।भुवनेश्वर से टैक्सी, बस से आसानी से पुरी पहुंच सकते हैं।