क्यों नहीं मिलाई जाती है शनिदेव से दृष्टि, क्या है पौराणिक कथा, जाने
मान्यता है कि शनिदेव की दृष्टि पड़ने की वजह से ही भगवान गणेश का सिर कटा था और वे गणेश से गजानन बने थे. जानिए शनिदेव की वक्र दृष्टि होने की रोचक कथा.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क शनिदेव को छाया और भगवान सूर्य का पुत्र माना जाता है. उनकी पूजा भी की जाती है, लेकिन कभी आपने गौर किया है कि शनिदेव की मूर्ति की पूजा हमेशा मंदिरों में ही होती है. कोई अपने घर में शनिदेव की मूर्ति लाकर नहीं रखता और न ही लोग पूजा करते समय उनसे दृष्टि मिलाते हैं. ऐसा क्यों होता है, आइए आपको बताते हैं.
दरअसल धार्मिक मान्यता है कि शनिदेव से दृष्टि नहीं मिलानी चाहिए क्योंकि शनिदेव को ये श्राप है कि वे जिसकी ओर भी अपनी दृष्टि डालेंगे, उसका अनिष्ट हो जाएगा. उनकी दृष्टि से बचे रहने के लिए लोग उनकी प्रतिमा को घर पर नहीं रखते हैं. यही वजह है कि लोग पूजा के दौरान शनिदेव से दृष्टि नहीं मिलाते हैं और न ही उनके एकदम सामने खड़े होकर पूजा करते हैं.
पत्नी से मिला था श्राप
पौराणिक कथा के अनुसार शनिदेव को श्राप उनकी पत्नी ने ही दिया था. एक बार शनिदेव भक्ति में लीन थे. तभी उनकी पत्नी शनिदेव के पास संतान प्राप्ति की इच्छा लेकर आयीं. लेकिन शनिदेव ध्यान में इतने मग्न थे कि उनकी तरफ देखा भी नहीं. इस बात पर उनकी पत्नी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने शनिदेव को श्राप दे दिया कि यदि तुम अपनी पत्नी को नहीं देख सकते तो तुम्हारी दृष्टि वक्री हो जाए. ये जिस पर भी पड़ेगी, उसका अनिष्ट हो जाएगा.
शनि की दृष्टि की वजह से कटा था भगवान गणेश का सिर
ये भी मान्यता है कि शनि की वक्र दृष्टि की वजह से ही गणेश जी का सिर धड़ से अलग हो गया था. इसके पीछे एक कथा है कि जब माता पार्वती ने अपनी उबटन से गणेश को बनाया तो शिवलोक में एक उत्सव हुआ. सभी देवगण उन्हें अपना आशीर्वाद देने आए. लेकिन उस समय शनिदेव उन्हें बिना देखे ही वहां से लौटने लगे. तब माता पार्वती ने कहा कि शनिदेव आप मेरे पुत्र को देखेंगे भी नहीं क्या. शनिदेव ने कहा कि मेरा देखना मंगलकारी नहीं है. तब माता पार्वती ने कहा आपको मेरे पुत्र होने से प्रसन्नता नहीं हुई है शायद, लेकिन मेरा आदेश है कि आप इसे देखें और अपना आशीर्वाद दें. तब शनिदेव ने माता की आज्ञा का पालन करते हुए गणेश पर अपनी दृष्टि डाली. कहा जाता है कि शनिदेव की दृष्टि के बाद ही गणेश जी का सिर कटने वाली घटना घटी और गणेश जी को हाथी का सिर लगाया गया. इसके बाद गणेश जी को गजानन कहा जाने लगा.