रथ सप्तमी का व्रत क्यों रखा जाता हैंम,पढ़ें रोचक पौराणिक कथाएं
रथ सप्तमी (Rath Saptami 2022) का व्रत 7 फरवरी 2022 को है
जनता से रिश्ता वेबडेसक: रथ सप्तमी (Rath Saptami 2022) का व्रत 7 फरवरी 2022 को है. माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रथ सप्तमी का व्रत रखा जाता है. इस दिन सूर्य नारायण (Surya Narayan) की उपासना का विधान है. इससे घर में सुख-शांति आती है. साथ ही घर के सभी क्लेश खत्म हो जाते हैं. रथ सप्तमी को अचला सप्तमी, रथा सप्तमी, आरोग्य सप्तमी और सूर्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है. मान्यताओं के अनुसार इस दिन सूर्योदय से पहले पवित्र नदी में स्नान करने से सारे कष्टों से छुटकारा मिल जाता है. हिंदू धर्म (Hinduism) में हर व्रत और त्योहार के पीछे कोई न कोई पौराणिक आधार होता है, उसी तरह से रथ सप्तमी के व्रत के पीछे भी कई पौराणिक कथाएं हैं, तो चलिए जानते हैं अचला सप्तमी की कथाओं के बारे में.
पौराणिक कथा 1
भविष्य पुराण की कथा के अनुसार एक गणिका इन्दुमति ने अपने जीवन में कभी कोई दान-पुण्य नहीं किया था. उसने एक बार वशिष्ठ मुनि से मुक्ति पाने का उपाय पूछा. तो मुनि ने गणिका से कहा- माघ मास की सप्तमी को अचला सप्तमी व्रत का करते हैं. इसके लिए षष्ठी के दिन एक ही बार भोजन करना चाहिए. सप्तमी की सुबह आक के सात पत्ते सिर पर रखें और सूर्य देव का ध्यान करके स्नान करें. इसके बाद सूर्य देव की अष्टदली मूर्ति बनाएं और शिव-पार्वती को स्थापित करें. उनकी विधि विधान से पूजा कर तांबे के पात्र में चावल भर कर दान करें. गणिका इन्दुमति ने ऐसा ही किया और शरीर त्याग दिया. इसके बाद इन्द्र ने उसे अप्सराओं की नायिका बना दिया
पौराणिक कथा 2
एक बार की बात है भगवान श्री कृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने बल और शारीरिक सौंदर्य पर बहुत अभिमान था. एक दिन दुर्वासा ऋषि कृष्ण से मिलने उनके महल पहुंचे, ऋषि दुर्वासा कड़ी तपस्या में लीन होने के कारण उस समय अत्यंत दुबले हो गए थे. उन्हें देख कर कृष्ण पुत्र शाम्ब की हंसी छूट गई. यह देख ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो उठे और उन्होंने शाम्ब को कुष्ठ रोग होने का श्राप दे दिया. उनके श्राप का प्रभाव तुरंत ही हो गया. कई उपचार के बाद भी जब शाम्ब को आराम नहीं लगा तो भगवान कृष्ण ने उन्हें सूर्य उपासना की सलाह दी. जिससे शीघ्र ही शाम्ब को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिल गई.
पौराणिक कथा 3
कम्बोज साम्राज्य के राजा यशोवर्मा काफी महान राजा हुआ करते थे. उनके साम्राज्य को सम्भालने के लिए कोई उत्तराधिकारी नहीं था. उन्होंने संतान प्रप्ती के लिए अनेक देवी-देवताओं से मन्नत मांगी कि उनके राज्य के लिए एक वारिस मिल जाए. फलस्वरूप भगवान की कृपा से उनके घर में पुत्र का जन्म हुआ, लेकिन उनकी खुशी ज्यादा दिन नहीं चली, क्योंकि उनका पुत्र मानसिक रूप से बीमार था. उस समय उनके राज्य में एक साधु आए. राजा यशोवर्मा ने उनकी खूब खातिरदारी की जिससे प्रसन्न होकर साधु ने उनसे वर मांगने के लिए कहा. राजा ने अपने पुत्र की मानसिक बीमारी की बात बताई. इस पर साधु ने कहा कि यह तुम्हारे पिछले जन्म के कर्मों का फल है जिसके कारण तुम्हारे पुत्र की यह हालत है.
साधु ने इससे उबरने के लिए राजा को सूर्य रथ सप्तमी का व्रत सच्ची श्रद्धा और पूरी निष्ठा के साथ करने को कहा. राजा ने वैसा ही किया. परिणाम स्वरूप राजा का पुत्र धीरे-धीरे मानसिक लाभ प्राप्त करने लगा और पूरी तरह ठीक हो गया. उसके बाद राजा के इस उत्तराधिकारी पुत्र ने राज्य पर शासन किया और कीर्ति, यश प्राप्त किया. (Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं.जनता से रिश्ता इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)