भगवान शिव को क्यों कहा गया अर्धनारीश्वर?

त्रिदेवों में शिव एक हैं. ब्रह्मदेव जहां सृष्टि के रचयिता माने गए हैं, वहीं विष्णु पालक और शिव संहारक माने गए हैं.

Update: 2022-08-11 10:13 GMT

त्रिदेवों में शिव एक हैं. ब्रह्मदेव जहां सृष्टि के रचयिता माने गए हैं, वहीं विष्णु पालक और शिव संहारक माने गए हैं. इनमें श्री विष्णु को हरि और शिव को हर कहा जाता है. भक्तजन दोनों के नाम को हरि-हर एक साथ बोलते हैं, तो एकेश्वर की संज्ञा दी जाती है. पुराणों के अनुसार, विष्णु के 24 अवतार हैं, जिनमें वे अपने मूल-स्वरूप से किसी और प्राणी की देह के रूप में धरती पर रहकर गए. उसी प्रकार शिवजी के भी कई अंशावतार हुए. उन्‍हीं का एक स्वरूप 'अर्धनारीश्वर' (Ardhanarishwara) हैं.

अर्धनारीश्वर का आशय- आधा नर और आधा नारी से है. इस बारे में पौराणिक कथा है. कथावाचक धीरेंद्राचार्य कहते हैं, 'ईश्‍वर के समक्ष नर-मादा के बीच कोई भेद नहीं है. जैसे श्री हरि (भगवान विष्‍णु) ने पुरुष के रूप में कई लीलाएं कीं, उसी प्रकार वे मोहिनी रूप में नारी भी बनकर आए.'
श्री हर (भगवान शिव) के भी कई अंशावतार हैं, उन्‍होंने भी नारी स्वरूप धरा था, जिसे अर्धनारीश्वर कहा गया. इसका अर्थ होता है- आधी स्त्री और आधा पुरुष. शिवजी के इस स्वरूप के आधे भाग में पुरुष और आधे भाग में स्त्री रूपी उमा यानी शक्ति नजर आईं. मान्यताएं हैं कि इसी रूप के फलस्‍वरूप संसार में सभी प्राणियों में नर-मादा हुए. सृष्टि की शुरुआत हुई.
अर्धनारीश्वर शिवजी ही माने गए हैं. ब्रह्मदेव के अनुरोध पर उन्होंने स्त्री-पुरुष दोनों की उत्पत्ति के लिए यह रूप धरा. इससे हमें यह अहसास होता है कि स्त्री और पुरुष दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं. पृथ्वी पर पहले पुरुष का नाम- मनु और स्त्री का नाम शतरूपा था.
मनु की संतान होने के कारण इंसान मानव कहलाये. उनसे प्रियव्रत, उत्तानपाद आदि 7 पुत्र और 3 कन्याएं उत्पन्न हुईं. इसी तरह ईश्‍वरीय माया से संसार के समस्त जीवों की उत्पत्ति हुई. शिवजी की कांतिमय शक्ति ही दक्ष प्रजापति की पुत्री हुईं. ब्रह्माजी के मानस पुत्रों ने उनसे विवाह किया


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