क्यों गणेश जी को कहा जाता है प्रथम पूज्य...जाने इसके पीछे का इतिहास
ष्ठ मास की संकष्टी चतुर्थी आज 29 मई को है. इसे एकदंत संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है
ज्येष्ठ मास की संकष्टी चतुर्थी आज 29 मई को है. इसे एकदंत संकष्टी चतुर्थी (Ekdant Sankashti Chaturthi) के नाम से भी जाना जाता है. शास्त्रों में हर महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष दोनों की चतुर्थी को गणपति महाराज को समर्पित माना गया है. मान्यता है कि इस दिन व्रत करने वाले के सारे विघ्न और कष्ट दूर होते हैं और घर में समृद्धि और शुभता आती है.
भगवान गणेश को बुद्धि दाता और प्रथम पूज्य माना जाता है. सनातन धर्म में कोई भी शुभ काम शुरू करते समय सबसे पहले गणपति की पूजा का ही विधान है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि महादेव और माता पार्वती के लाडले पुत्र गणेश कैसे बने प्रथम पूज्य ? आइए आज एकदंत संकष्टी चतुर्थी के मौके पर जानते हैं इस बारे में.
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार सभी देवताओं के बीच इस बात पर बहस छिड़ गई कि कौन सबसे ज्यादा श्रेष्ठ है और किसकी पूजा पृथ्वी पर सबसे पहले की जानी चाहिए. तब नारद जी ने इस गुत्थी को सुलझाने के लिए सभी देवगणों को भगवान शिव की शरण में जाने की सलाह दी.
इसके बाद सभी देवी-देवता महादेव के पास पहुंचे और उन्हें समस्या बताई. तब महादेव ने उन सभी देवी-देवताओं के लिए एक प्रतियोगिता आयोजित की. इसमें सभी देवगणों से कहा कि वे सभी अपने वाहनों पर बैठकर पूरे ब्रह्माण्ड के सात चक्कर लगाकर आएं. जो इसमें सबसे पहले सफल होगा, उसे ही प्रथम पूज्य माना जाएगा.
इसके बाद सभी देवता अपने-अपने वाहनों को लेकर परिक्रमा के लिए निकल पड़े. ऐसे में गणपति ने सोचा कि अगर वे अपने वाहन मूषक पर बैठकर ब्रह्माण्ड के चक्कर लगाएंगे तो उन्हें बहुत समय लग जाएगा. इसलिए उन्होंने मूषक पर बैठकर अपने माता-पिता शिव और माता पार्वती की सात परिक्रमा लगाईं और उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए.
ये देखकर माता गौरी और महादेव अत्यंत प्रसन्न हुए. जब सभी देवी-देवता ब्रह्माण्ड की परिक्रमा करके वहां लौटे तो भगवान शिव ने गणपति को प्रथम पूज्य घोषित कर दिया. सभी देवताओं ने भगवान से इसकी वजह जाननी चाही तो शिवजी ने कहा कि माता-पिता को समस्त ब्रह्माण्ड ही नहीं बल्कि सभी लोकों में सर्वोच्च स्थान दिया गया है. गणेश ने अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए उन माता-पिता की परिक्रमा की और आप सबसे पहले उपस्थित हुए. इसलिए वो प्रथम पूज्य हुए. सभी देवतागण शिवजी के इस कथन से सहमत हुए और तभी से उन्हें प्रथम पूज्य कहा जाने लगा.