करवाचौथ पर छलनी से क्यों करते हैं चांद के दर्शन, क्या है महत्व, जाने

प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है।

Update: 2021-10-20 10:39 GMT

प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। इस बार करवा चौथ का व्रत 24 अक्टूबर 2021 दिन रविवार को किया जाएगा। सुहागिन महिलाओं के लिए करवा चौथ के व्रत का बहुत महत्व होता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना के लिए पूरे दिन निर्जला (बिना पानी के) उपवास करती हैं, इसलिए इस व्रत को बेहद कठिन माना जाता है। करवा चौथ पर महिलाएं पहले में छलनी से चंद्र दर्शन करती हैं इसके बाद अपने पति का चेहरा छलनी से देखती हैं। इसके साथ ही करवा चौथ पर मिट्टी के करवा का प्रयोग किया जाता है। करवा चौथ पर छलनी और मिट्टी का करवा, इन दोनों ही चीजों के प्रयोग करने का विशेष महत्व माना जाता है। तो चलिए जानते हैं इसके पीछे का कारण।

क्यों देखा जाता है छलनी से चांद

करवा चौथ की कथा के अनुसार, एक साहूकार के सात बेटे और वीरावती नाम की एक पुत्री थी। सातों भाई अपनी बहन को अत्यधिक प्रेम करते थे। विवाह के उपरांत वीरावती का पहला करवा चौथ व्रत था, संयोगवश वह उस समय अपने मायके में थी। संध्या होते-होते वीरावती भूख और प्यास से व्याकुल हो मूर्छित हो गई। भाईयों को अपनी बहन की ये हालत देखी न गई, उन्होंने अपनी बहन से भोजन करने का आग्रह किया परंतु उसने मना कर दिया। जिसके बाद वीरावती का एक भाई दूर पेड़ पर चढ़कर छलनी में दिया दिखाने लगा और उससे कहा कि देखो बहन चांद निकल आया है तुम अर्घ्य देकर व्रत का पारण करो। ये बात सुनकर वीरावती खुशी-खुशी उठी और दीपक की रोशनी को चांद समझकर अर्घ्य देने के बाद भोजन करने बैठ गई। जैसे ही वीरावती ने पहला कौर मुंह में डाला तो उसमें बाल आ गया, दूसरे कौर में उसे छींक आ गई और तीसरे कौर में ससुराल से बुलावा आ गया कि वीरावती के पति की मृत्यु हो गई है। इसके बाद वीरावती ने पूरे वर्ष चतुर्थी के व्रत किए और अगले वर्ष करवा चौथ पर पुनः व्रत करके चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया और मां करवा की कृपा से उसका पति पुनः जीवित हो उठा। माना जाता है कि कोई भी स्त्री के पतिव्रत से छल न कर सके इसलिए स्त्रियां स्वयं अपने हाथ में छलनी लेकर दीपक की रोशनी में चंद्र दर्शन करके व्रत का पारण करती हैं। 

करवाचौथ पर क्यों किया जाता है मिट्टी के करवा का प्रयोग

हिंदू धर्म में पूजा-अनुष्ठान के कार्यों में मिट्टी के पात्रों को जैसे कलश, मिट्टी का दीपक आदि का प्रयोग किया जाता है क्योंकि मिट्टी के पात्रों को शुद्ध माना जाता है। इसके अलावा प्रकृति में पांच मुख्य तत्वों के बारे में बताया गया है। धरती (मिट्टी), आकाश, जल, वायु, और अग्नि। करवा को मिट्टी से बनता है जिससे उसमें धरती तत्व आ जाता है और मिट्टी को गूंथने के लिए पानी का प्रयोग होता है जिससे उसमें जल तत्व का समावेश हो जाता है। इसके बाद करवा को धूप और हवा में सुखाते हैं जिससे उसमें वायु और आकाश तत्व का समावेश हो जाता है। सबसे अंत में करवा को आग में तपाकर पकाया जाता है जिससे उसमें अग्नि तत्व का अंश भी आ जाता है। इस तरह से करवाचौथ पर मिट्टी के करवा का प्रयोग करना बेहद ही शुभ माना जाता है।

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