जिस भाई ने दिया 14 साल के वनवास में साथ, आखिर क्यों उसे भगवान राम ने सुनाई मृत्युदंड की सजा
आखिर क्यों उसे भगवान राम ने सुनाई मृत्युदंड की सजा
यह बात सुनकर आपको भी काफी हैरानी हो रही होगी कि भगवान राम ने अपने ही भाई को मृत्युदंड की सजा सुनाई थी। वह भाई जिसने उनका हर पल साथ निभाया, जो अपने बड़े भाई के लिए सब कुछ छोड़कर 14 वर्षों के वनवास के लिए निकल पड़ा, आखिर उस भाई को भगवान राम ने क्यों मृत्युदंड की सजा दी।
भगवान राम से मिलने आए थे यमराज
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब श्री राम माता सीता को वापस अयोध्या लेकर आए, तो एक दिन भगवान राम से मिलने अचानक यमराज पहुंच गए। यमराज को महल में आता देखकर लक्ष्मण जी हैरान रह गए, उन्होंने यमराज को वहीं द्वार पर ही रोक लिया और पूछा प्रभु आप यहां कैसे, भला आपका हमारे महल में क्या काम है।
लक्ष्मण को परेशान देखकर यमराज समझ गए कि वह घबरा गए हैं। उनकी परेशानी को शांत करने के लिए यमराज थोड़ा मुस्कुराये और बोले, मैं यहां प्रभु राम से मिलने आया हूं। यमराज के मुंह से अपने बड़े भाई का नाम सुनकर लक्ष्मण और भी ज्यादा घबरा गए।
उन्होंने घबराते हुए यमराज से कहा कि आपको जो भी महत्वपूर्ण कार्य है, आप मुझे बता दीजिए, मैं आपकी बात बड़े भैया तक पहुंचा दूंगा। लेकिन यमराज लक्ष्मण कि बातों को मानने के लिए तैयार नहीं थे। यमराज ने कहा कि उन्हे जो भी बात करनी है, वह केवल प्रभु राम से ही हो सकती है।
यमराज को मिलने से रोक रहे थे लक्ष्मण
यमराज के बार-बार आग्रह करने पर भी लक्ष्मण ने यमराज को द्वार पर ही रोक कर रखा। उनकी चिंता इतनी ज्यादा बढ़ गई कि वह फौरन प्रभु राम के पास भागते हुए पहुंचे और यमराज के आने की सूचना दी।
लक्ष्मण कि ऐसी हालत देखकर प्रभु राम हंसने लगे, क्योंकि वह तो सब जानते थे। उन्होंने अपने छोटे भाई से कहा कि तुम घबराओ मत, यमराज को मिलने के लिए कक्ष में भेज दो। प्रभु राम की बात सुनकर लक्ष्मण जी की जैसे सांस में सांस आई, उन्होंने यमरान को श्री राम से मिलने की आज्ञा दे दी।
कक्ष में प्रवेश करते ही यमराज ने पहले प्रभु राम से कहा कि मैं आपसे कुछ खास बात करना चाहता हूँ, लेकिन ये बात किसी को पता नहीं चलनी चाहिए। ये बात बस आपके और मेरे बीच ही रहनी चाहिए। (मां लक्ष्मी की पूजा के नियम)
यमराज की बातें सुनकर श्री राम ने लक्ष्मण से कहा कि सभी सेनापति को मेरे कक्ष के बाहर से हटा दो और स्वयं पहरा दो। जब तक मैं नहीं चाहता, तब तक किसी अन्य व्यक्ति को कक्ष में नहीं आने देना।
अगर किसी ने हमारी बात सुनी या हमें बात करते हुए देखा भी, तो अवश्य ही मैं उसे मृत्युदंड मिलेगा। अपने बड़े भ्राता की आज्ञा अनुसार लक्षमण जी उनके कक्ष के बाहर पहरा देने लगे।
महर्षि दुर्वासा ने दिया श्राप
सब कुछ ठीक चल रहा था, लक्ष्मण जी किसी को भी प्रभु राम के कक्ष में जाने की आज्ञा नहीं दे रहे थे। लेकिन तभी वहां महर्षि दुर्वासा आ पहुंचे। वह श्री राम से मिलना चाहते थे, उन्होंने साफ कह दिया था कि वो आए हैं तो अब प्रभु श्री राम से मुलाकात करके ही जाएंगे।
जब बार-बार कहने के बाद भी लक्ष्मण जी ने उन्हें कक्ष में जाने की इजाजत नहीं दे रहे थे, तो महर्षि को क्रोध आ गया, उन्होंने गुस्से में कहा कि अगर मुझे श्री राम से मिलने नहीं दिया गया, तो मेरे क्रोध की अग्नि से तुम्हारी पूरी प्रजा का सर्वनाश हो जाएगा।
महर्षि की बातें सुनकर लक्ष्मण जी सोच में पड़ गए कि अगर इन्हें बड़े भईया से मिलने नहीं दिया गया तो वह उनकी पूरी प्रजा को श्राप दे देंगे। मेरी वजह से प्रजा का सर्वनाश क्यों हो, इसलिए मेरी ही मृत्यु हो वही ठीक है।
मन ही मन ये सोचकर लक्ष्मण जी ने उन्हे प्रभु राम से मिलने की इजाजत दे दी। (दिवाली के दिन यहां लगाएं लक्ष्मी जी के कदम)
लक्ष्मण ने महर्षि को श्री राम से मिलने की दी इजाजत
लेकिन लक्ष्मण जी ने पहले महर्षि को अंदर जाने देने कि बजे खुद ही अंदर चले गए। वहां जाकर उन्होंने प्रभु राम को महर्षि दुर्वासा के आने की सूचना तो दी। लेकिन लक्ष्मण को को कक्ष में आता देख प्रभु राम बेहद निराश हो गए।
क्योंकि उन्होंने लक्ष्मण जी को वचन दिया था कि अगर कोई भी उनके कक्ष में आया तो वो उसे मृत्युदंड दे देंगे। अब प्रभु राम अपने वचन में बंधे थे इसलिए उनके हाथ में कुछ नहीं था।
प्रभु राम को दुखी देखकर लक्षमण जी मुस्कुराते हुए बोसो, बड़े भैया, आप क्यों परेशान हो रहे हैं। आपने मुझे जो वचन दिया था उसे पूरा करते हुए आप मुझे मृत्युदंड दे दीजिए। आपके हाथों तो मृत्युदंड भी मेरे लिए अपार प्रेम के सामान ही होगा। लक्ष्मण की बात सुनकर प्रभु राम की आंखों में आंसू भर आए।
लेकिन उन्हे अपने वचन को पूरा करना ही था, तभी वहां महर्षि वशिस्ट आ पहुंचे। महर्षि वशिष्ठ ने प्रभु राम को सलाह दी कि आप लक्ष्मण को मृत्युदंड देने की बजाय उनका त्याग कर दीजिए।
किसी भी साधु पुरुष का त्याग और वध एक ही समान है। महर्षि वशिष्ठ की बात मानकर प्रभु राम ने अपने भ्राता का त्याग कर दिया।