क्यों मनाते हैं अक्षय तृतीया, युधिष्ठिर को वनवास काल में भगवान ने इसी दिन अक्षय पात्र
अक्षय तृतीया प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ल की तृतीया को मनाई जाती है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | अक्षय तृतीया प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ल की तृतीया को मनाई जाती है। अक्षय तृतीया से बहुत सी पौराणिक एवं ऐतिहासिक घटनाएं इससे जुड़ी हुई हैं। त्रेता युग का आरंभ वैशाख शुक्ल तृतीया को ही हुआ था। भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम जी का जन्म भी इसी तिथि को हुआ था। भगवान परशुराम चिरंजीवी महापुरुष हैं इसलिए यह तिथि चिरंजीवी अथवा अक्षय तृतीया कहलाती है। महाभारत काल में युधिष्ठिर को वनवास काल में भगवान ने इसी दिन अक्षय पात्र दिया था।
इस दिन भगवान विष्णु के नरनारायण रूप का भी अनुष्ठान किया जाता है। नर या मनुष्यों में नारायण की कामना को ध्यान में रखते हुए गरीबों एवं दीन-दुखियों की सहायता करनी चाहिए। उन्हें इस दिन भोजन खिलाकर प्रसन्न करना चाहिए। ऐसा करने से उसको इसके अक्षय फल की प्राप्ति होती है। इस वर्ष अक्षय तृतीया 14 मई को है। यह प्रातः 5:38 बजे से अगले दिन प्रातः 8:00 बजे तक रहेगी और रोहिणी नक्षत्र भी उदयातिथि में है। इसलिए इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग एवं मानस योग बना रहा है। रोहिणी और मृगशिरा नक्षत्र भी इस तिथि में विचरण करेंगे जो बहुत शुभ हैं
प्रात:काल वृषभ लग्न में चार ग्रहों का गोचर हो रहा है। बुध, शुक्र, राहु और चंद्रमा इनके विशेष योग से और केतु की लग्न पर दृष्टि होने से इस तिथि का महत्व और बढ़ गया है। इस दिन स्वयं सिद्धि मुहूर्त होने से कोई भी विशेष कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, भूमि पूजन और नया व्यापार आरंभ करना बिना किसी विद्वान से पूछे भी सम्पन्न कर सकते हैं। यह अनसूझ विवाह मुहूर्त होता है।
ऐसा माना जाता है कि इस तिथि पर विष्णु और लक्ष्मी माता का प्रभुत्व होता है जिस कारण इस दिन नवीन वस्त्र,आभूषण एवं गृह उपयोग की सामग्री खरीदने से दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति होती है। 14 मई को स्थायी कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, गृह निर्माण एवं वास्तु पूजा आदि कार्य के लिए( स्थिर लग्न ) सिंह लग्न बहुत उपयोगी है। सिंह लग्न दोपहर 12:05 से 14:22 तक रहेगा। इसमें भूमि, भवन एवं विवाह संबंधी कार्य कर सकते हैं। चलायमान कार्य जैसे व्यापार, दुकान, वाहन खरीदना, नया व्यापार आरंभ करना यह सब चर लग्न में शुभ होते हैं। चर लग्न शाम 16:39 बजे से 18:58 तक रहेगा।