पितृपक्ष में कौन कर सकता है पितरों का श्राद्ध और तर्पण, जानिए
पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों का तर्पण और श्राद्ध किया जाता है। माना जाता है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो जब तक वो अगला जन्म नहीं ले लेते, तब तक वह सूक्ष्म लोक में रहते हैं।
पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों का तर्पण और श्राद्ध किया जाता है। माना जाता है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो जब तक वो अगला जन्म नहीं ले लेते, तब तक वह सूक्ष्म लोक में रहते हैं। जहां से वह अपने परिवार पर कृपा बनाए रखते हैं। वहीं पितृ पक्ष के दौरान पितर धरती पर आ जाते हैं और अपने परिवार के लोगों को आशीर्वाद देते हैं। इसी कारण पितृपक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध और तर्पण करना शुभ माना जाता है। जानिए कौन-कौन करता सकता है पितरों का श्राद्ध और तर्पण।
कौन कर सकता है पितरों का श्राद्ध या तर्पण
पितरों का श्राद्ध या तर्पण
हिंदू धर्म के अनुसार, घर के मुखिया या प्रथम पुरुष अपने पितरों का श्राद्ध कर सकता है। अगर मुखिया नहीं है, तो घर का कोई अन्य पुरुष अपने पितरों को जल चढ़ा सकता है। इसके अलावा पुत्र और नाती भी तर्पण कर सकता है।
पिता का श्राद्ध
शास्त्रों के अनुसार, पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। अगर पुत्र के न हो, तो पत्नी श्राद्ध कर सकती है। अगर पत्नी नहीं है, तो सगा भाई और उसके भी अभाव में संपिंडों को श्राद्ध करना चाहिए।
पत्नी का श्राद्ध
पत्नी का श्राद्ध पुत्र करता है। अगर पुत्र नहीं है तो पौत्र, पुत्री या फिर पुत्री का पुत्र कर सकता है। इसके अलावा भतीजा कर सकता है। अगर इनमें से कोई नहीं है, तो फिर पति कर सकता है। इसके अलावा गोद लिया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी माना गया है।