पूजा करते समय जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, मां लक्ष्मी की बनी रहेगी कृपा
यह कथा है शीला और उसके पति की। जहां शीला बेहद ही धार्मिक प्रवृत्ति और संतोषी स्वभाव की थी।
जनता से रिश्ता वेबडेसक | यह कथा है शीला और उसके पति की। जहां शीला बेहद ही धार्मिक प्रवृत्ति और संतोषी स्वभाव की थी। वहीं, उनका पति भी विवेकी और सुशील था। दोनों ही किसी की बुराई नहीं करते थे। हर कोई उनकी गृहस्थी की सराहना करता था। लेकिन यह समय कुछ ही दिन में बदल गया। शीला के पति की संगत खराब हो गई। जल्दी करोड़पति बनने के चक्कर में वह गलत रास्ते पर चल पड़ा। रास्ता भटकने के चलते उसकी हालत बदत्तर हो गई।
शीला का पति शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा वगैरह बुरी आदतों में फंस गया। दोस्तों के साथ-साथ उसे भी शराब की आदत हो गई। वह सब कुछ जुए में हार गया। शीला को उसके पति का बर्ताव बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा था। लेकिन वह भगवान पर भरोसा कर सब सह रही थी। वह अपना समय भगवान की अराधना में व्यतीत करने लगी।
एक दिन उसके घर के दरवाजे पर एक बूढ़ी औरत आई। उनके चेहरे पर अलग-सा ही अलौकिक तेज था। उनका भव्य चेहरा करुणा और प्यार से छलक रहा था। उन्हें देख शीला के मन में अपार शांति छा गई। शीला के रोम-रोम में आनंद छा गया। शीला उन्हें अपने घर के अंदर ले आई। लेकिन उसके पास उन्हें बिठाने के लिए कुछ नहीं था। तब शीला ने सकुचाकर एक फटी हुई चद्दर पर उन्हें बिठा दिया।
मांजी ने कहा क्या तूने मुझे पहचाना नहीं। हर शुक्रवार को लक्ष्मीजी के मंदिर में भजन-कीर्तन के समय मैं भी आती हूं। शीला को कुछ समझ नहीं आ रहा था। फिर उन्होंने कहा कि तुम बहुत दिनों से मंदिर नहीं आईं तो मैं तुम्हें देखने आ गई। यह सुन शीला का हृदय पिघल गया और वो रोने लगी। मांजी ने शीला को कहा कि सुख और दुःख तो धूप और छांव जैसे होते हैं। मुझे अपनी सभी परेशानी बता। तब शीला ने उन्हें अपनी कहानी सुनाई।
शीला की कहानी सुन मांजी ने कहा कि हर व्यक्ति को उसके कर्म भुगतने ही पड़ते हैं। तू चिंता न कर। तेरे हिस्से के कर्म अब तू भुगत ही चुकी है। सुख के दिन जरूर आएंगे। मांजी ने कहा कि माँ लक्ष्मीजी तो प्रेम और करुणा की अवतार हैं। तू उनकी भक्त है। उन्होंने शीला को मां लक्ष्मी का व्रत करने को कहा। उन्होंने शीला को पूरी व्रत विधि बताई।
मांजी ने कहा- बेटी! मां लक्ष्मीजी का व्रत बहुत सरल है। इस व्रत को वरदलक्ष्मी व्रत या वैभवलक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है। इनका व्रत करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। साथ ही व्यक्ति को सुख-संपत्ति की प्राप्ति भी होती है। यह सुन शीला काफी आनंदित हो गई।
शीला ने व्रत का संकल्प लिया। जब उसने आंखें खोलीं तो उसके सामने कोई भी नहीं था। वह हौरान रह गई कि आखिर वो मांजी कहां गईं। शीला समझ गई थी कि वह और कोई नहीं बल्कि साक्षात् लक्ष्मीजी ही थीं।
अगले ही दिन शुक्रवार था। उसने स्नानादि कर स्वच्छ कपड़े पहनें। फिर बताई गई पूरी विधि के अनुसार व्रत किया। फिर सभी को प्रसाद भी वितरित किया। अपने पति को भी प्रसाद खिलाया। इसके बाद से उसके पति के स्वभाव में फर्क पड़ने लगा। उसने शीला को मारना-पीटना भी बंद कर दिया। यह देख शीला का मन आनंद से भर गया। उसकी श्रद्धा वैभवलक्ष्मी व्रत के लिए और भी ज्यादा बढ़ गई।
शीला ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक वैभवलक्ष्मी का व्रत किया। फिर इक्कीसवें शुक्रवार को उद्यापन किया और 7 स्त्रियों को वैभवलक्ष्मी व्रत की 7 पुस्तकें भेंट दीं। उसने मन ही मन प्रार्थना की, 'हे मां धनलक्ष्मी! मैंने आपका वैभवलक्ष्मी व्रत करने की मन्नत मानी थी, वह व्रत आज पूर्ण किया है। मेरी हर विपत्ति दूर करो। सबका कल्याण हो। जिसके पास संतान न हो उसे संतान भी दो। सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रखें। फिर उसने मां लक्ष्मी की मूर्ति के समक्ष प्रणाम किया।
इस व्रत के प्रभाव से उसका पति अच्छा आदमी बन गया। वह मेहनत कर काम करने लगा और उसके घर में धन की कोई कमी नहीं रही।