Masik Shivratri Vrat Katha: मासिक शिवरात्रि के दिन पढ़ें ये व्रत कथा

Update: 2024-11-29 02:48 GMT
Masik Shivratri Vrat Katha: मासिक शिवरात्रि का व्रत हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रखा जाता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा और व्रत करने के साथ कथा का पाठ जरूर करना चाहिए. मान्यता है कि व्रत कथा का पाठ किए बिना यह व्रत पूरा नहीं माना जाता है. साथ ही इस पूरे विधि-विधान से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और सदैव भोलेनाथ का आशीर्वाद मिलता है|
मासिक शिवरात्रि व्रत कथा Masik Shivratri Vrat Katha
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था जो जानवरों को मारकर अपने परिवार का पालन-पोषण करता था. उस शिकारी पर एक साहूकार का कर्ज था. जिसे वह लंबे समय से चुका नहीं पा रहा था. इस बात से नाराज एक दिन होकर साहूकार ने शिकारी को शिव मठ में बंदी बना लिया. संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी. साहूकार के घर पूजा हो रही थी तो शिकारी ध्यानमग्न होकर भगवान शिव से जुड़ी धार्मिक बातें सुनता रहा. अगले दिन उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी. शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और कर्ज चुकाने के बारे में बात की. शिकारी अगले दिन सारा कर्ज चुकाने का वचन देकर कैद से छूटकर चला गया.
वह रोज की तरह ही जंगल में शिकार के लिए निकला. लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से परेशान था. शिकार ढूंढते हुए वह बहुत दूर निकल गया. जब अंधेरा हो गया तो उसने सोचा कि आज रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी. वह वन में एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा. बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढका हुआ था. शिकारी को उसका पता न चला. पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई. इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए|
एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची. शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली, मैं गर्भिणी हूँ और शीघ्र ही प्रसव करूंगी. तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है. मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना. शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई. प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए. इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर की पूजा भी पूरी हो गई|
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