जब नारद मुनि को हुआ था अहंकार, तब भगवान विष्णु ने रची ये लीला
आज नारद मुनि जी की जयंती है. वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्त और ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | आज नारद मुनि जी की जयंती (Narada Jayanti 2021) है. वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्त और ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं. मान्यता है कि इस दिन नारद (Narada Muni) जी की पूजा आराधना करने से भक्तों को बल, बुद्धि और सात्विक शक्ति प्राप्ति होती है.
दुनिया के पहले पत्रकार हैं नारद मुनि
पौराणिक मान्यता यह भी है कि नारद मुनि ना केवल देवताओं, बल्कि असुरों के बीच भी आदरणीय माने गए. वे दुनिया के पहले पत्रकार भी माने जाते हैं. कहा जाता है कि पौराणिक काल में वे ही तीनों लोकों के समाचार एक जगह से दूसरी जगह देने का काम करते थे. उनके बारे में कई किस्से प्रचलित हैं.
एक बार की बात है. नारद मुनि जी (Narada Muni) पृथ्वी का भ्रमण कर रहे थे. तभी उन्हें उनके एक खास भक्त जो नगर का सेठ था ने याद किया. अच्छी सत्कार के बाद सेठ ने नारद जी से प्रार्थना की- आप ऐसा कोई आशीर्वाद दें कि कम से कम एक बच्चा तो हो जाए.
सेठ को दिया सहायता का वचन
नारद ने कहा कि तुम लोग चिंता न करो, मैं अभी नारायण से मिलने जा रहा हूं. उन तक तुम्हारी प्रार्थना पहुंचा दूंगा और वे अवश्य कुछ करेंगे. नारद विष्णु धाम विष्णु से मिलने गए और सेठ की व्यथा बताई. भगवन् बोले कि उसके भाग्य में संतान सुख नहीं है, इसलिए कुछ नहीं हो सकता. उसके कुछ समय बाद नारद ने एक दीये में तेल ऊपर तक भरा और अपनी हथेली पर सजाया और पूरे विश्व की यात्रा की. अपनी इस यात्रा का समापन उन्होंने विष्णु धाम आकर ही संपन्न किया.
इस पूरी प्रक्रिया में नारद (Narada Muni) को बड़ा घमंड हो गया कि उनसे ज्यादा ध्यानी और विष्णु भक्त कोई ओर नहीं. अपने इसी घमंड में नारद पुनः पृथ्वी लोक पर आए और उसी सेठ के घर पहुंचे. इस दौरान सेठ के घर में छोटे-छोटे चार बच्चे घूम रहे थे. नारद ने जानना चाहा कि ये संतान किसकी हैं तो सेठ बोले- आपकी हैं. नारद इस बात से खुश नहीं थे. उन्होंने कहा- क्या बात है, साफ-साफ बताओ.
शिकायत करने पहुंचे विष्णुधाम
सेठ बोला- एक साधु एक दिन घर के सामने से गुजर रहा था और बोल रहा था कि एक रोटी दो तो एक बेटा और चार रोटी दो तो चार बेटे. मैंने उन्हें चार रोटी खिलाई. कुछ समय बाद मेरे चार पुत्र पैदा हुए. नारद (Narada Muni) गुस्से में अपनी शिकायत करने के लिए विष्णु धाम पहुंचे. नारद को देखते ही भगवान अत्यधिक पीड़ा से कराहने लगे. उन्होंने नारद को बोला- मेरे पेट में भयंकर रोग हो गया है और मुझे जो व्यक्ति अपने हृदय से लहू निकाल कर देगा उसी से मुझे आराम होगा.
नारद ने तीनों लोकों में प्रभु विष्णु की व्यथा सुनाकर मदद मांगी लेकिन कोई भी सहायता के लिए तैयार नहीं हुआ. जब नारद ने यही बात एक साधु को सुनाई तो वो बहुत खुश हुआ, उसने छुरा निकाला. जैसे ही साधु उस चाकू को अपने सीने में घोपने वाला था, तभी प्रभु विष्णु वहां प्रकट हुए और बोले- जो व्यक्ति मेरे लिए अपनी जान दे सकता है, वह किसी व्यक्ति को चार पुत्र भी दे सकता है.
उन्होंने नारद जी (Narada Muni) से कहा कि आप भी सर्वगुण संपन्न ऋषि हैं. अगर आप चाहते तो उस सेठ को भी पुत्र दे सकते थे. इस पर नारद मुनि को बहुत पश्चाताप हुआ.
ब्रहमचारी हैं नारद मुनि
देवर्षि नारद, एक ब्रह्मचारी हैं. वे भगवान ब्रह्मा (ब्रह्मांड के निर्माता) और ज्ञान की देवी देवी सरस्वती के पुत्र हैं. कहा जाता है कि उनका जन्म ज्येष्ठ, कृष्ण पक्ष (पूर्णिमंत कैलेंडर के अनुसार) के हिंदू महीने में प्रतिपदा तिथि (पहले दिन) में हुआ था. हालांकि, अमावसंत कैलेंडर का पालन करने वाले भक्त उनकी जयंती प्रतिपदा तिथि, कृष्ण पक्ष वैशाख को मनाते हैं. इस बीच त्योहार का दिन वही रहता है. केवल महीनों के नाम अलग-अलग होते हैं.