जब महाकाल ने भक्‍त के ल‍िए काल को किया भस्‍म, सावन में जरूर पढ़ें यह कथा म‍िलेगा अपार पुण्‍य

महाकाल श‍िव की मह‍िमा अपरंपार है।

Update: 2021-07-20 16:01 GMT

महाकाल श‍िव की मह‍िमा अपरंपार है। उन्‍हें प्रसन्‍न करने के ल‍िए क‍िसी खास प्रयास की या पूजा-पाठ की जरूरत नहीं होती। बल्कि सच्‍ची श्रद्धा और पूरे मन से क‍िया गया प्रयास आपको भोलेनाथ की कृपा का पात्र बना सकता है। शायद यही वजह है क‍ि अपने भक्‍तों के ल‍िए महाकाल काल तक को भस्‍म कर देते हैं। ऐसी ही एक कथा म‍िलती है हमारे धार्मिक ग्रंथों में ज‍िसे हम आपके साथ शेयर कर रहे हैं। मान्‍यता है क‍ि भक्‍तों का चर‍ित पढ़ने और सुनने से भोलेनाथ की असीम कृपा और पुण्‍य की प्राप्ति होती है। तो आइए जानते हैं…

स्‍वयं महाकाल के पुत्र कार्तिकेय ने सुनाई यह कथा

भक्‍त के प्रत‍ि महाकाल की अगाध आस्‍था की ज‍िस कहानी का हम ज‍िक्र कर रहे हैं वह स्‍वयं भगवान कार्तिकेय ने संतों को सुनाई थी। इसके अनुसार राजा श्वेतकेतु जो क‍ि भोलेनाथ के परम भक्‍त थे उन्‍होंने काल को भी जीत‍ ल‍िया था। राजा श्वेतकेतु सदाचारी, सत्यवादी, धर्म के मार्ग पर चलने वाले शूरवीर और प्रजा पालक थे। वह अत्‍यंत ही न‍िष्‍ठा और प्रेम भाव से प्रजा का पालन और अगाध आस्‍था और श्रद्धा भाव से शिव भक्ति करते थे। उनके इस भक्ति भाव से महाकाल अत्‍यंत प्रसन्‍न थे। उनकी कृपा से श्वेतकेतु के राज्य के लोग दुख, दरिद्रता, अकाल मृत्यु और महामारी से अछूते थे।
जब पूरी हो गई राजा श्वेतकेतु की आयु
एक द‍िन जब राजा श्वेतकेतु का जीवनकाल समाप्त होने को था और वह भोलेनाथ की आराधना में लीन थे। तब चित्रगुप्त ने यमराज से कहा कि राजा श्वेतकेतु की आयु अब पूरी हो चुकी है। अब उनके प्राण हरने का समय है। तब यमराज ने अपने दूतों को आज्ञा दी कि वे जाएं और श्वेतकेतु के प्राण हर लाएं। यमदूत राजा श्वेतकेतु के पास पहुंचे तो वह शिव मंदिर में थे। दूत बाहर ही खड़े हो गए। श्वेतुकेतु गहरे ध्यान में थे। बहुत देर हो गई, न श्वेतकेतु का ध्यान टूटा न यह दूत हिले। दूत बिना अपना काम किए खड़े रहे। जब वे वापस नहीं पहुंचे तो यमराज ने विलंब होते देखा तो कालदंड संभाला और खुद चल पड़े।
जब यमराज स्‍वयं पहुंचे राजा श्वेतकेतु के प्राण हरने
दूतों के आने में देरी होने के चलते यमराज स्‍वयं ही राजा श्वेतकेतु के प्राण हरने पहुंचे। लेक‍िन वहां उन्‍होंने देखा क‍ि वह तो महाकाल श‍िव की साधना में लीन है। अब तो वह सोच में पड़ गए क‍ि इसके प्राण कैसे हरें? उन्‍होंने सोचा क‍ि यह अभी पूरी तरह शिव पूजा में डूबा है। इस स्थिति में श‍िव पूजा का का उल्लंघन नहीं क‍िया जा सकता। तब वह भी बाहर ही खड़े हो गए। उधर जैसे ही काल को इसकी सूचना म‍िली तो उन्‍होंने तलवार निकाली और शिव मंदिर में जा घुसे। काल ने देखा कि राजा श्वेतुकेतु अभी भी भगवान शिव के लिंग स्वरूप के सामने बैठे ध्यान मग्न हैं। वह झपटकर आगे बढ़ा और जैसे ही उसने राजा श्वेतकेतु का सिर काटने के ल‍िए तलवार उठाई शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर काल की ओर देखा।
तब श‍िवजी के तीसरे नेत्र से ऐसे भस्‍म हुआ काल
भोलेनाथ का तीसरा नेत्र खुलते ही काल वहीं राजा श्वेतकेतु के सामने जलकर भस्म हो गया। थोड़ी देर बाद जब राजा श्वेतकेतु का ध्यान टूटा। उन्‍होंने अपनी आंखें खोलीं तो राख में बदल चुके काल को देखा। उन्हें चिंता हुई कि यह कौन है और क्या है? श्वेतकेतु ने भगवान शिव से पूछा हे भोलेनाथ ये क‍िसकी राख है, इसे क‍िसने और क्‍यों जलाया ? तब भोलेनाथ ने बताया क‍ि यह काल था जो क‍ि तुम्‍हारे प्राण हरने आया था।
तब राजा श्वेतकेतु को काल ने लगाया गले
राजा श्वेतकेतु ने कहा क‍ि हे महाकाल यह तो आपकी ही आज्ञा से तीनों लोक में विचरता है, लोक को नियंत्रण में रखता है। इसी के भय से तो लोग पुण्य कार्य करते हैं। आप इन्‍हें अत‍िशीघ्र जीवनदान दे दें। श‍िवजी की कृपा से काल जी उठा और उसने उठते ही श्वेतकेतु को अपने गले से लगाकर बोला राजा तुम जैसा तो तीनों लोकों में कोई नहीं है। तुमने तो अजेय काल को भी जीत ल‍िया।
तब काल ने कहा क‍ि इनकी नहीं होगी अकाल मृत्‍यु

जीवनदान पाकर काल और यमराज ने कहा क‍ि ऐसे जातक जो श‍िवजी के परम भक्‍त हैं। सच्‍चे मन और पूरी श्रद्धा से महाकाल की पूजा में लीन रहते हैं। सिर पर जटा और गले में रुद्राक्ष पहनते हैं। विभूति का त्रिपुंड ललाट पर लगाते और पंचाक्षर मंत्र का जप करते हैं उन्हें कभी भी अकाल मृत्‍यु का ग्रास नहीं बनना पड़ेगा। कथा के अनुसार इस आशीर्वाद के बाद श्वेतकेतु ने लंबे समय तक राज किया और फ‍िर महाकाल की कृपा पाकर उनमें ही व‍िलीन हो गए।


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