कब है परिवर्तनी एकादशी व्रत, जानें तिथि, व्रत विधि और कथा

हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को पद्मा एकादशी या परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है

Update: 2021-09-15 04:58 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को पद्मा एकादशी या परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि परिवर्तनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु निद्रासन में अपनी करवट बदलते हैं। दरअसल, भगवान विष्णु चार महीनों तक सोते हैं ये चार माह चतुर्मास कहलाते है। भाद्रपाद माह के शुक्लपक्ष के दिन भगवान विष्णु सोते हुए करवट लेते हैं इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन के स्वरूप की पूजा की जाती है। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की कथा सुनी जाती है। इस व्रत को करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा मिलती रहती है। शास्त्रों मे परिवर्तनी एकादशी को वामन एकादशी, जयझूलनी एकादशी, डोल ग्यारस एकादशी आदि कई नामों से जानी जाती है। इस साल परिवर्तनी एकादशी व्रत 17 सितंबर को रखा जाएगा।  

परिवर्तनी एकादशी मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारंभ - 16 सितंबर, गुरुवार को सुबह 09 बजकर 39 मिनट से

एकादशी तिथि समाप्त - 17 सितंबर की सुबह 08 बजकर 08 मिनट तक 

परिवर्तिनी एकादशी व्रत विधि

इस दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु के वामन अवतार को ध्यान करते हुए उन्हें पचांमृत (दही, दूध, घी, शक्कर, शहद) से स्नान करवाएं। इसके पश्चात गंगा जल से स्नान करवा कर भगवान विष्णु को कुमकुम-अक्षत लगायें। वामन भगवान् की कथा का श्रवण या वाचन करें और दीपक से आरती उतारें एवं प्रसाद सभी में वितरित करें और व्रत रखें। एक समय ही खायें और हो सके तो नमक नहीं खायें या एक बार सेंधा नमक खा सकते हैं। भगवान विष्णु के पंचाक्षर मंत्र ''ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय'' का यथा संभव तुलसी की माला से जाप करें। इसके बाद शाम के समय भगवान विष्णु के मंदिर अथवा उनकी मूर्ति के समक्ष भजन-कीर्तन का कार्यक्रम करें।

परिवर्तनी एकादशी व्रत कथा

पुराणों के अनुसार राजा बलि ने अपने प्रताप के बल पर तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया था। एक बार भगवान विष्णु ने राजा बलि की परीक्षा ली। राजा बलि किसी भी ब्राह्राण को कभी भी निराश नहीं करता था। वामन रूप में भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग जमीन देने का वचन मांग लिया। भगवान विष्णु ने दो पग में समस्त लोकों को नाप लिया। जब तीसरे पग के लिए कुछ नहीं बचा तो राजा बलि ने अपना वचन पूरा करने के लिए अपना सिर वामन ब्राह्राण के पैर के नीचे रख दिया। राजा बलि पाताल लोक में समाने लगे तब राजा बलि ने भगवान विष्णु को भी अपने साथ रहने के लिए आग्रह किया और भगवान विष्णु ने पाताल लोक चलाने का वचन दिया।

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