कब है धन दायक शरद पूर्णिमा, जानें तिथि, महत्व और मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने की पूजा विधि

प्रत्येक माह शुक्ल पक्ष की आखिरी तिथि को जब चंद्रमा पूर्ण रुप से आसमान में दिखाई देता है तो उस दिन पूर्णिमा तिथि आती है।

Update: 2021-09-30 02:27 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क।  प्रत्येक माह शुक्ल पक्ष की आखिरी तिथि को जब चंद्रमा पूर्ण रुप से आसमान में दिखाई देता है तो उस दिन पूर्णिमा तिथि आती है। हिंदू धर्म में हर पूर्णिमा तिथि का महत्व माना जाता है लेकिन अश्विन मास में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व माना गया है।  अश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के पर्व के रुप में मनाया जाता है। इस वर्ष शरद पूर्णिमा 19 अक्टूबर 2021 मंगलवार को पड़ रही है। धार्मिक मान्यता के अनुसार माना जाता है कि इस दिन आकाश से अमृत वर्षा होती है, इसी दिन से सर्दियों का आगमन भी माना जाता है। यह दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए बहुत विशेष माना जाता है। इस दिन चंद्रमा की पूजा के साथ रात्रि जागरण कर मां लक्ष्मी की पूजा का भी विधान है। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा करने से धन वृद्धि होती है। तो चलिए जानते हैं शरद पूर्णिमा का महत्व, तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।

शरद पूर्णिमा महत्व-

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां लक्ष्मी की समुद्र मंथन से उत्पत्ति शरद पूर्णिमा के दिन ही हुई थी। इसलिए इस तिथि को धन-दायक भी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं और जो लोग रात्रि में जागकर मां लक्ष्मी का पूजन करते हैं, वे उस पर अपनी कृपा बरसाती हैं और धन-वैभव प्रदान करती हैं। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ होता और पृथ्वी पर चारों चंद्रमा की उजियारी फैली होती है। धरती जैसे दूधिया रोशनी में नहा जाती है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत की बरसात होती है, इसलिए रात्रि में चांद की रोशनी में खीर रखने की परंपरा भी है।

शरद पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त-

इस बार शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा 19 अक्टूबर 2021 दिन मंगलवार के दिन पड़ रही है। 

पूर्णिमा तिथि आरंभ-19 अक्टूबर 2021 को शाम 07 बजे से 

पूर्णिमा तिथि समाप्त- 20 अक्टूबर 2021 को रात्रि 08 बजकर 20 मिनट पर 

शरद पूर्णिमा पूजा विधि-

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें। 

यदि नदी में स्नान नहीं कर सकते तो घर पर ही पानी में गंगाजल डालकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

अब एक लकड़ी की चौकी या पाटे पर लाल कपड़ा बिछाएं और गंगाजल से शुद्ध करें।

चौकी के ऊपर मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें और लाल चुनरी पहनाएं।

अब लाल फूल, इत्र, नैवेद्य, धूप-दीप, सुपारी आदि से मां लक्ष्मी का विधिवत पूजन करें।

इसके बाद मां लक्ष्मी के समक्ष लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें।

पूजन संपन्न होने के बाद आरती करें।

शाम के समय पुनः मां और भगवान विष्णु का पूजन करें और चंद्रमा को अर्घ्य दें।

चावल और गाय के दूध की खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखें।

मध्य रात्रि में मां लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं और प्रसाद के रुप में परिवार के सभी सदस्यों को खिलाएं।

 

 



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