कब है प्रदोष व्रत, जानें आषाढ़ मास के प्रदोष व्रत की तिथि और इसका महत्व !
एकादशी की तरह प्रदोष व्रत की भी विशेष मान्यता है
एकादशी की तरह प्रदोष व्रत की भी विशेष मान्यता है. ये व्रत महीने में त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है. आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि का व्रत 26 जून को है. त्रयोदशी का व्रत भगवान शिव (Lord Shiva) को समर्पित है. मान्यता है कि इस व्रत को रखने से व्यक्ति को मृत्युतुल्य कष्ट से मुक्ति मिल जाती है. इस बार प्रदोष व्रत रविवार के दिन पड़ेगा. दिन के हिसाब से प्रदोष व्रत का महत्व बदल जाता है. रविवार को पड़ने वाले प्रदोष को रवि प्रदोष कहा जाता है. कहा जाता है कि प्रदोष व्रत शिव जी को अत्यंत प्रिय है. इस व्रत में उनकी पूजा भी प्रदोष काल में ही की जाती है. जो भक्त प्रदोष के व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ रखता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है. आइए आपको बताते हैं कि आखिर क्यों महादेव को प्रिय है प्रदोष.
इसलिए महादेव को प्रिय है प्रदोष
पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला, तो उसके कारण सृष्टि में हाहाकार मच गया. तब महादेव ने सृष्टि को बचाने के लिए उस हलाहल को पी लिया और उसे अपने कंठ में रोक लिया. हलाहल पीने के बाद शिव जी का कंठ नीला पड़ गया. हलाहल के प्रभाव से उनके शरीर में तेज जलन होने लगी. शिव जी को व्याकुल देखकर देवी देवता भी परेशान हो गए. तब देवताओं ने जल, बेलपत्र वगैरह से महादेव की जलन को कम किया. जब महादेव की जलन शांत हुई, तब सभी देवी देवताओं ने उनकी पूजा की, क्योंकि उनके कारण ही ये सृष्टि बची थी. जिस दिन ये घटना घटी, उस दिन त्रयोदशी तिथि थी और प्रदोष काल था. उस दिन महादेव अत्यंत प्रसन्न थे. प्रसन्नता के कारण शिवजी ने तांडव भी किया था. तब से त्रयोदशी तिथि और प्रदोष काल भगवान को प्रिय हो गया. इस दिन महादेव की पूजा और व्रत का चलन शुरू हो गया और प्रदोष काल में पूजा किए जाने के कारण इस व्रत को प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाने लगा.
भाग्य जगाने वाला है प्रदोष व्रत
प्रदोष व्रत व्यक्ति की रूठी किस्मत को भी पलटने वाला माना गया है. दिन के हिसाब से इसका महत्व अलग हो जाता है. रविवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष व्रत रखने से अच्छी सेहत व उम्र लम्बी होती है. इसके अलावा इस दिन यदि पूरी श्रद्धा से प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा की जाए तो व्यक्ति की हर कामना पूरी होती है. उसकी कुंडली में चंद्र की स्थिति बेहतर होती है. मानसिक परेशानियां कम होती हैं और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है.
ये है शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 25 जून शनिवार की देर रात 1 बजकर 09 मिनट से होगी और तिथि का समापन 26 जून की देर रात 3 बजकर 25 मिनट पर होगा. उदया तिथि के हिसाब से प्रदोष का व्रत 26 जून को रविवार के दिन रखा जाएगा.
ये है व्रत विधि
सबसे पहले सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि के बाद भगवान के समक्ष व्रत का संकल्प लें. व्रत निराहार रहना है या फलाहार लेकर, ये आप क्षमतानुसार निर्धारित करें. शाम को प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के बाद और रात्रि से पहले के समय में भगवान शिव का पूजन करें. पूजन के लिए सबसे पहले स्थान को गंगाजल या जल से साफ करें. फिर गाय के गोबर से लीपकर उस पर पांच रंगों की मदद से चौक बनाएं. पूजा के दौरान कुश के आसन का प्रयोग करें. पूजन की तैयारी करके उतर-पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठें और शिव जी को याद करें. उसके बाद महादेव को जल, चंदन, पुष्प, प्रसाद, धूप आदि अर्पित करें. शिव मंत्रों का जाप करें और प्रदोष कथा का पाठ करें. आरती करें और क्षमा याचना करें. आखिर में भगवान को प्रसाद चढ़ाएं और पूजा के बाद प्रसाद वितरण करें.