कजरी तीज कब? जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजन विधि

सनातन धर्म में हर व्रत और तिथि का विशेष महत्व बताया गया है. हर नए माह में नए त्योहार और व्रत आते हैं.

Update: 2022-06-04 01:43 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सनातन धर्म में हर व्रत और तिथि का विशेष महत्व बताया गया है. हर नए माह में नए त्योहार और व्रत आते हैं. ऐसे ही भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि के दिन कजरी तीज का व्रत किया जाता है. इसे बूढ़ी तीज और सातूढ़ी तीज के नाम से भी जानते हैं. इस दिन सुहागिन महिलाओं के साथ कुंवारी कन्याएं भी व्रत रखती हैं. कजरी तीज के दिन विधि-विधान के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है.

इस दिन कजरी तीज के दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और वैवाहिक जीवन में सुख-शांति के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. वहीं, दूसरी ओर कुंवारी कन्याएं मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं. शाम के समय चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पारण किया जाता है. आइए जानते हैं कजरी तीज की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि के बारे में.
कजरी तीज तिथि और शुभ मुहू्र्त 2022
हिंदू पंचाग के अनुसार कजरी तीज भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाई जाती है. इस बार कजरी तीज 14 अगस्त, रविवार के दिन पड़ रही है. भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि का आरंभ 13 अगस्त, शनिवार रात 12 बजकर 53 मिनट पर शुरू होकर 14 अगस्त, रविवार रात 10 बजकर 35 मिनट तक है.
कजरी तीज का महत्व
इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए व्रत रखती हैं. वहीं, कुंवारी कन्याएं मनचाहे पति की कामना करते हुए व्रत रखती हैं. ऐसी मान्यता है कि शाम के समय कजरी तीज की कथा का पाठ करती हैं, तो जल्द ही भगवान शिव प्रसन्न होकर उनकी मनोकामना पूर्ण करती हैं.
कजरी तीज पूजन विधि
हिंदू मान्यता के अनुसार इस दिन नीमड़ी माता का पूजन किया जाता है. ये माता पार्वती का ही स्वरूप होती हैं. सुबह जल्दी उठ स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद मां को प्रणाम करते हैं निर्जला व्रत रखने का संकल्प लें. इस दिन भोग के लिए मालपुआ बनाएं. पूजन करने के लिए एक छोटा सा मिट्टी या गोबर का तालाब बना लें. इस के बाद इस तालाब में नीम के टहनी की स्थापना करें और उस पर चुनरी चढ़ाएं. इसके मात नीमड़ी माता को हल्दी, मेंदही, चूड़ियां, लाल चुनरी, सत्तू और मालपुआ चढ़ाएं. फिर धूप-दीप जलाएं और आरती करें. और शाम के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर आरती करें. और व्रत का पारण कर लें.
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