कब हैं जया एकादशी, जानिए इसकी शुभ मुहूर्त और कथा

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जया एकादशी (Jaya Ekadashi) व्रत को बेहद पुण्यदायी माना गया है. मान्यता है

Update: 2021-02-18 02:27 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेसक | धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जया एकादशी (Jaya Ekadashi) व्रत को बेहद पुण्यदायी माना गया है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से मनुष्य के पाप दूर होते हैं, साथ ही इस व्रत को रखने वालों को नीच योनि यानी भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्ति मिलती है.

माना जाता है कि जया एकादशी का व्रत करने के बाद ही राजा हरिश्चंद्र को उनका खोया राज पाठ वापस मिल गया था और उनके सारे दुख दूर हो गए थे. इस बार जया एकादशी 2021 (Jaya Ekadashi 2021) 23 फरवरी को मनाई जाएगी. इसे अन्नदा (Annada Ekadashi) या कामिका एकादशी (Kamika Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है.
जानें व्रत के नियम
इस व्रत को रखने वालों को दशमी तिथि से ही व्रत के नियमों का पालन शुरू कर देना चाहिए. नियम के मुताबिक दशमी की रात व्रत रखने वालों को सात्विक भोजन करना चाहिए. प्याज, लहसुन से बने तामसिक भोजन नहीं करने चाहिए. साथ ही मसूर की दाल, चने और चने के आटे से बनी चीजें भी नहीं खानी चाहिए. शहद खाने से भी परहेज करें. व्रत खोलने तक ब्रह्मचर्य का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए.
ये है व्रत विधि
एकादशी के दिन स्नानादि के बाद पूजा के स्थान पर साफ-सफाई के बाद गंगा जल छिड़कें. फिर चौक बनाकर एक पाटा या चौकी पर पील वस्त्र बिछाकर नारायण की प्रतिमा को रखें. विष्णु भगवान का ध्यान करके व्रत का संकल्प करें और फिर उन्हें प्रेम पूर्वक धूप, दीप, चंदन, फल, तिल व पंचामृत अर्पित करें. कथा पढ़े और आरती करें. पूरे दिन निराहार व्रत रखें. रात में फलाहार कर सकते हैं. लेकिन मीठा ही खाएं. संभव हो तो रातभर भजन कीर्तन करके रात्रि जागरण करें. दूसरे दिन यानी द्वादशी को स्नान के बाद दान पुण्य करें फिर भोजन ग्रहण करें. व्रत के दिन किसी की निंदा और चुगली वगैरह न करें. न ही द्वेष भावना या क्रोध को मन में न लाएं.
शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि आरंभ : 22 फरवरी 2021 दिन सोमवार को शाम 05 बजकर 16 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त : 23 फरवरी 2021 दिन मंगलवार शाम 06 बजकर 05 मिनट पर
पारणा शुभ मुहूर्त : 24 फरवरी को सुबह 06 बजकर 51 मिनट से लेकर सुबह 09 बजकर 09 मिनट तक.
ये है व्रत कथा
कथा के अनुसार एक बार नंदन वन में उत्सव चल रहा था. इस उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरुष आए थे. गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं. इसी सभा में गायन कर रहे माल्यवान नाम के गंधर्व पर नृत्यांगना पुष्पवती मोहित हो गई. अपने प्रबल आकर्षण के चलते वो सभा की मर्यादा को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो जाए. नृत्य देखकर माल्यवान अपनी सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक कर सुर ताल भूल गया. इन दोनों की भूल पर इन्द्र क्रोधित हो गए और दोनों को श्राप दे दिया कि वे स्वर्ग से वंचित होकर पृथ्वी पर अति नीच पिशाच योनि को प्राप्त हों.
श्राप के प्रभाव से दोनों ने पिशाच योनि में जन्म लिया और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर अत्यंत कष्ट भोगते हुए रहने लगे. एक बार दोनों अत्यंत दुखी थे, इस कारण उन्होंने सिर्फ फलाहार किया और उसी रात्रि ठंड के कारण उन दोनों की मृत्यु हो गई. वो दिन जया एकादशी का दिन था. अनजाने में ही दोनों से जया एकादशी का व्रत हो जाने के कारण दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गई.
वे पहले से भी सुन्दर हो गए और पुनः स्वर्ग लोक में स्थान भी मिल गया. जब देवराज इंद्र ने दोनों को वहां देखा तो चकित होकर उनसे मुक्ति का कारण पूछा. तब उन्होंने बताया कि ये भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है. इन्द्र इससे प्रसन्न हुए और कहा कि वे जगदीश्वर के भक्त हैं इसलिए अब से उनके लिए आदरणीय हैं अतः स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें.


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