कब है गणगौर, जानें क्यों सुहागिन महिलाएं पति से छिपा कर रखती हैं व्रत

महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए गणगौर व्रत करती हैं. खासकर ये त्योहार राजस्थान और मध्यप्रदेश में धूम धाम से मनाया जाता है

Update: 2021-04-09 07:42 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए गणगौर व्रत करती हैं. खासकर ये त्योहार राजस्थान और मध्यप्रदेश में धूम धाम से मनाया जाता है. गणगौर (Gangaur) व्रत के दिन महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं. ये त्योहार चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. इस बार गणगौर का त्योहार 15 अप्रैल को मनाया जाएगा. गणगौर का अर्थ है गण शिव और गौर माता पार्वती. दोनों की साथ में पूजा की जाती हैं. इस दिन महिलाएं माता पार्वती को सोलह- श्रृंगार की चीजें अर्पित करती हैं.

पति से छिपा कर किया जाता है व्रत
गणगौर का व्रत महिलाएं अपने पति से छिपाकर करती हैं. इतना ही नहीं पूजा में चढ़ाया जाने वाला प्रसाद भी उन्हें नहीं देती हैं. इस दिन महिलाएं माता पार्वती को गणगौर माता के रूप में पूजती हैं. कुंवारी लड़कियां भी अच्छे पति की कामना के लिए इस व्रत को रखती हैं.
चैत्र महीने की प्रतिपदा तिथि से शुरू होता है त्योहार
पौराणिक कथा के अनुसार, होली के अगले दिन माता पार्वती अपने मायके चली आती है और भगवान शिव 8 दिन बाद उन्हें वापस लेने आए थे. इसलिए होली के आठ दिन बाद यानी प्रतिपदा तिथि को इस त्योहार की शुरुआत होती है. इस दिन कुंवारी लड़कियां और सुहागिन महिलाएं शिव और पार्वती की मिट्टी की मूर्तियां बनाती हैं और उनकी पूजा- अर्चना करती है. ये त्योहार 17 दिनों तक मनाया जाता है. महिलाएं 17 दिन तक सुबह- सुबह दूब और फूल से पूजा करती हैं. चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर की विधि विधान से पूजा कर नदी या तालाब में विसर्जन कर देती हैं.
क्यों रखा जाता है पतियों से गुप्त
कथा के अनुसार भगवान शिव माता पार्वती और नारद जी एक गांव में जाते है. जैसे ही वहां के लोगों को ये बात पता चलती है. वहा के लोग महादेव और माता पार्वती के स्वागत में पकवान बनाना शुरू कर देते हैं. वहीं गरीब घर की महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती का स्वागत श्रद्धा सुमन अर्पित करके करती हैं.सच्ची आस्था देख माता पार्वती महिलाओं को सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद देती है. जब कुलीन घर की महिलाएं मिष्ठान लेकर आती हैं तो भगवान शिव कहते पार्वती अब आप इन्हें क्या आशीर्वाद देंगी. माता पार्वती ने कहा जिसने भी सचे दिल से मेरी आरधना की है उस पर सुहागिन रस की छिटे पड़ेगी. तब पार्वती ने अपने रक्त के छिंटे बिखेरे जो उचित्र पात्र पड़ें. वो सौभाग्यशाली हुईं. लोभ और लालच की मनसा से आई महिलाओं को वापस लौटना पड़ा.
इसके बाद माता पार्वती भगवान शिव से अनुमति लेकर नदी किनारे स्नान करने जाती है. माता पार्वती नदी के किनारे बालू की मिट्टी से भगवान शिव की प्रतिमा बनाकर पूजा की और प्रसाद में बालू से बनी चीजों का भोग लगाती है. जब माता पार्वती पहुंचती है तो शिव जी पूछते हैं कि आपको इतनी देर कहा हो गई. इस पर माता पार्वती कहती है कि रास्ते में मायके वाले मिल गए थे और भाभी ने दूध भात बनाया था. वही खाने लगी तो समय लग गया. भगवान शिव पहले से ही सब जानते थे. उन्होंने कहा चलो मैं भी चलता हूं. आप तो खाकर आ गई. मैं भी दूध भात का स्वाद ले लेता हूं.
अपनी बात को सच साबित करने के लिए अपनी माया से एक महल का निर्माण करती हैं और भगवान शिव का उसमें स्वागत स्तकार होता है. फिर वापस लौटते समय भगवान शिव कहते हैं मैं अपनी रूदाक्ष की माला भूल आया हूं. माता पार्वती ने कहा कि मैं ले आती हूं. भगवान शिव ने कहा नारदजी लेकर आ जाएंगे. जब वहां नारद जी पहुंचे तो देखा कोई महल नहीं है और उनकी माला एक पेड़ पर लटकी थी. नारद ने महादेव को सभी बात बताई. उन्होंने कहा ये देवी पार्वती की माया की रचना थी. उन्होंने अपनी पूजा को गुप्त रखने के लिए ये सब किया था. मैंने तुम्हें यही दिखाने के लिए वापस भेजा था.


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