कब से शुरू हो रहा है चैती छठ
हिंदू पंचांग के मुताबिक, छठ का पर्व साल में दो बार मनाया जाता है.
हिंदू पंचांग के मुताबिक, छठ का पर्व साल में दो बार मनाया जाता है. इसमें पहला चैत्र और दूसरा कार्तिक माह में मनाया जाता है. लोक आस्था का महा पर्व छठ मुख्यतौर पर बिहार व पूर्वांचल में धूमधाम से मनाया जाता है. आपको बता दें कि चैती छठ चार दिनों तक चलता है. चैती छठ (Chaiti Chhath 2023) में सूर्य की उपासना की जाती है, ये पर्व चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होता है और सप्तमी को उगते सूर्य को अर्ध्य देने के बाद समाप्त होता है. संतान के स्वास्थ, अच्छे भविष्य और उसकी रक्षा के लिए महिलाएं चैती छठ व्रत धारण करती हैं. आइए जानते हैं चैती छठ पूजा का पूरा शेड्यूल.
चैती छठ 2023 तिथि (Chaiti Chhath 2023 Calendar)
नहाय खाय – 25 मार्च 2023
खरना – 26 मार्च 2023
अस्तगामी सूर्य को अर्घ्य – 27 मार्च 2023
उदयीमान सूर्य को अर्घ्य – 28 मार्च 2023
1- नहाय खाय (Chaiti Chhath Puja Nahay Khay)
चैती छठ पूजा का प्रारंभ नहाय खाय परंपरा के साथ माना गया है. इस दिन घर की साफ सफाई करने के साथ ही शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण किया जाता है. महिलाएं इस दिन व्रत का संकल्प लेती हैं और सेंधा नमक यूक्त भोजन जिसमें चने की दाल, लौकी की सब्जी, भात का सेवन करती हैं.
2- खरना (Chaiti Chhath Puja Kharna)
चैती छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना के नाम से जानते हैं. खरना के दिन शाम को गाय के उपले या आम की लकड़ी पर गुड़ की खीर का प्रसाद तैयार किया जाता है और फिर व्रती और सभी घरवाले इसे ग्रहण करते हैं. इस दिन नमक का भोजन नहीं करते. इसके बाद से व्रती का 36 घंटे का व्रत प्रारंभ हो जाता है.
3- संध्या अर्घ्य (Chaiti Chhath Puja Sandhya Arghya)
चैत्र शुक्ल षष्ठी तिथि पर छठ पूजा यानी डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है. इसे संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है. इस दिन व्रती नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं. छठी मैय्या और सूरज की विधि विधान से पूजा की जाती है.
4- उषा अर्घ्य (Chaiti Chhath Puja Usha Arghya)
छठ पूजा का समापन उषा अर्घ्य यानी उगते सूरत को अर्घ्य देकर किया जाता है. सूर्य अर्घ्य के लिए बांस की टोकरी में ठेकुआ, चावल के लड्डू और फलों को रखा जाता है. सूर्य पूजा के लिए सूप को भी सजाया जाता है. सूर्य देव को दूध और जल का अर्घ्य देकर छठी मैया को प्रसाद चढ़ाया जाता है. इसके बाद व्रती व्रत का पारण करते हैं.