छड़ीमार होली की शुरुआत कब हुई और इसे मनाने की परंपरा क्या है, जानिए

हिंदू धर्म में होली का त्योहार बेहद ही खास माना गया है। रंगों का ये त्योहार मन को उल्लास से भरने वाला है। पूरे भारत में होली धूमधाम से मनाई जाती है।

Update: 2022-03-07 04:38 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू धर्म में होली का त्योहार बेहद ही खास माना गया है। रंगों का ये त्योहार मन को उल्लास से भरने वाला है। पूरे भारत में होली धूमधाम से मनाई जाती है। लेकिन भारत में एक ऐसी भी जगह है जहां पर होली का अलग ही जश्न देखने को मिलता है। वो है ब्रज की होली। यहां की होली को देखने देश-विदेश से लोग आते हैं। होली के कुछ दिन पहले से ही मथुरा में विभिन्न प्रकार की होली का जश्न शुरू हो जाता है। हर साल की तरह इस साल भी ब्रज में होली की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। ब्रज के खास होली महोत्सव की शुरुआत इस साल 10 मार्च से ही हो जाएगी, जिसमें सबसे पहले 10 मार्च को लड्डू होली का आयोजन किया जाएगा। मथुरा में लड्डू होली के अलावा फूलों की होली, लट्ठमार होली, रंगवाली होली और छड़ीमार होली का खूब जश्न मनाया जाता है। इसी कड़ी में आइए जानते हैं छड़ीमार होली की शुरुआत कब हुई और इसे मनाने के पीछे की परंपरा क्या है...

क्यों मनाई जाती है छड़ीमार होली?
ब्रज में लट्ठमार होली के अलावा कई तरह की होली का आयोजन किया जाता है। वहीं गोकुल में छड़ीमार होली का आयोजन होता है। दरअसल, भगवान कृष्ण का बचपन गोकुल में ही बीता था। मान्यता है छड़ीमार होली के दिन बाल कृष्ण के साथ गोपियां छड़ी हाथ में लेकर होली खेलती हैं, क्योंकि भगवान बालस्वरूप थे। इस भावमयी परंपरा के अनुरूप कहीं उनको चोट न लग जाए, इसलिए गोकुल में छड़ीमार होली खेली जाती है।
जैसा कि सबलोग जानते होंगे कि बचपन में कान्हा बड़े चंचल हुआ करते थे। गोपियों को परेशान करने में उन्हें बड़ा आनंद मिलता था। इसलिए गोकुल में उनके बालस्वरूप को अधिक महत्व दिया जाता है। इसलिए नटखट कान्हा की याद में हर साल छड़ीमार होली का आयोजन किया जाता है। इस दिन कान्हा की पालकी और पीछे सजी-धजी गोपियां हाथों में छड़ी लेकर चलती हैं।
गोकुल में छड़ीमार होली का उत्सव सदियों से चला आ रहा है। गोकुल की छड़ी मार होली खुद में एक अनोखी विरासत समेटे हुए हैं। प्राचीन परंपराओं का निर्वहन करते हुए आज भी हर साल छड़ी मार होली का आयोजन होता है, जिसमें गोकुल की छड़ी मार होली की शुरुआत यमुना किनारे स्थित नंदकिले के नंदभवन में ठाकुरजी के समक्ष राजभोग का भोग लगाकर होती है।
कहा जाता है कि होली खेलने वाली गोपियां 10 दिन पहले से छड़ीमार होली की तैयारियां शुरू कर देती हैं। गोपियों को दूध, दही, मक्खन, लस्सी, काजू बादाम खिलाकर होली खेलने के लिए तैयार किया जाता है। छड़ीमार होली देखने के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु आते हैं। इस बार 16 मार्च को छड़ीमार होली मनाई जाएगी।
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