कब और कैसे हुआ था शनिदेव का जन्म, जानें शनि देव की कथा

Update: 2022-05-24 17:56 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अच्छे का अच्छा और बुरे का बुरा करने वाले शनिदेव का ज्योतिष शास्त्र में प्रमुख महत्व है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि जयंती मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि शनिदेव का जन्म इसी दिन हुआ था। जिन लोगों की राशि शनिदेव के प्रकोप का साया है, वे इस दिन आराधना करके उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं। क्या आपको पता है कि शनिदेव का जन्म कैसे हुआ था और उनके माता-पिता कौन थे? यहां पढ़िए शनिदेव के जन्म की पौराणिक कथा।

वैसे तो शनिदेव के जन्म की कई पौराणिक कथा मौजूद हैं। कहा जाता है कि उनका जन्म सौराष्ट्र के शिंगणापुर में हुआ था। वह कश्यप ऋषि के कुल के थे। उनके पिता सूर्यदेव और माता का सुवर्णा है। स्कंदपुराण के अनुसार सूर्य का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ था। संज्ञा से उन्हें मनु और यम नाम के पुत्र हुए और यमुना नाम की एक पुत्री का जन्म हुआ।
संज्ञा सूर्यदेव के तेज से परेशान थीं। इससे बचने के लिए उन्हें एक युक्ति सूझी। उन्होंने अपनी परछाई यानी छाया सुवर्णा को अपने पति के पास छोड़ दिया और खुद अपने पिता के घर आ गईं। हालांकि संज्ञा के इस कदम से पिता नाराज हुए और उसे अपने पति के पास वापस जाने का आदेश दिया। इसके बाद संज्ञा ने घोड़ी का रूप धारण किया और वन में जाकर तपस्या करने लगीं।
दूसरी ओर संज्ञा की छाया सुवर्णा भी गर्भवती हुईं और मनु, शनि और भद्रा को जन्म दिया। जब शनिदेव गर्भ में थे तब सुवर्णा भगवान शिव की कठोर तपस्या कर रही थीं। कई दिनों तक उन्होंने अन्न और जल नहीं ग्रहण किया। तेज गर्मी में भूखी और प्यासी रहते हुए सुवर्णा शिव की आराधना कर रही थीं। इसका असर उनके गर्भ में पल रही संतान पड़ा और शनिदेव का रंग काला पड़ गया।
जब शनि का जन्म हुआ तो उनके पिता सूर्यदेव ने उन्हें अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया। इससे रूठकर शनिदेव भगवान शिव की तपस्या में लग गए। एक दिन शिवजी शनि की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया कि मनुष्य से लेकर देवता तक उनके नाम से थर-थर कापेंगे। इंसानों को अपने कर्मों का फल उनकी अनुमति से ही मिलेगा। इसी वरदान की बदौलत शनिदेव नवग्रह में से एक बन गए।


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