अंतिम समय में पांडवों को महात्मा भीष्म ने क्या मार्ग दिखाये
महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार पितामह भीष्म जब बाणों की शय्या पर लेटे थे, तब उनसे मिलने सभी पांडव पहुंचे थे।
जनता से रिश्ता बेवङेस्क | महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार पितामह भीष्म जब बाणों की शय्या पर लेटे थे, तब उनसे मिलने सभी पांडव पहुंचे थे। इस समय धर्मराज युधिष्ठिर ने बाणों की शैया पर लेटे हुए भीष्म पितामह से धर्म के विषय में कईं सवाल पूछे। तब भीष्म पितामाह ने पांडवों को दानधर्म, राजधर्म, मोक्षधर्म, स्त्रीधर्म और अन्य जीवन के रहस्यों के बारे में विस्तार से चर्चा की। भीष्म जयंती (6 फरवरी, शनिवार) के मौके पर हम आपको बता रहे हैं महात्मा भीष्म के नितियों के बारे में.
1. परिवर्तन संसार का नियम है और सभी को इसे स्वीकार कर लेना चाहिए, तभी जीवन में सुख-शांति मिल सकती है।
2. जो व्यक्ति अपने माता-पिता की सेवा करते हैं, उसे लोक-परलोक में मान-सम्मान मिलता है। 3. एक राजा को अपने पुत्र और अपनी प्रजा में भेदभाव नहीं करना चाहिए।
4. अपने गुरु के लिए मान-सम्मान और प्रेम व्यक्ति को श्रेष्ठ इंसान बना सकता है।
5. धर्म के कई द्वार हैं, संतजन उन मार्गों या रास्तों की बात करते हैं जो उन्हें मालूम होता है, लेकिन सभी मार्गों का आधार आत्म संयम है।
6. मुश्किल हालात इस जीवन चक्र का नियम है। बिना परेशान हुए इनका सामना करने पर ही सफलता मिलती है।
7. सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वाली छोटी सी चींटी भी एक हाथी से ज्यादा शक्तिशाली हो जाती है।
8. अगर कोई महान व्यक्ति अधर्म और अन्याय का साथ देता है तो धर्म के आगे उसे झुकना ही पड़ता है।
9. सत्ता सुख भोगने के लिए नहीं है, बल्कि कठिन परिश्रम करके समाज का कल्याण करने के लिए होता है।
10. समय अत्यधिक बलवान है, एक क्षण में समस्त परिस्थितियां बदल जाती हैं।