क्या है इन देवी के चमत्कारिक रहस्य
मां विंध्यवासिनी का बाद में नाम एकानंशा रखा गया था। श्रीमद्भागवत
वर्ष में चार नवरात्रियां आती हैं। उनमें से चैत्र और शारदीय नवरात्रि का खास महत्व होता है। शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है। मां विध्यवासिनी कौन हैं? क्या वह भी माता दुर्गा का ही स्वरूप है? कहां है देवी का प्रसिद्ध मंदिर और क्या है इन देवी के चमत्कारिक रहस्य?
1. भारत में मां विंध्यवासिनी की पूजा और साधना का बहुत प्रचलन है। उनकी साधना तुरंत ही फलित होती है। नागवंशीय राजाओं की कुलदेवी हैं माता विंध्यवासिनी।
2. जिस समय श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था उसी समय माता यशोदा के यहां एक पुत्री का जन्म हुआ था। यही पुत्री मां विंध्यवासिनी हैं।
3. श्रीकृष्ण और यशोदा की पुत्री को आपस में एक ही रात में अदल बदल कर लिया गया था। यशोदा की पुत्री कारागार में चली गई थी और श्रीकृष्ण यशोदा के पालने में।
4. कारागार में जब कंस ने देखा कि देवकी को तो पुत्री हुई है जबकि भविष्यवाणी तो आठवें पुत्र की थी। तब उसने क्रोधवश उस बालिका को भूमि पर पटकर मारना चाहा लेकिन वह बालिका कंस के हाथ से छूटकर आकाश में स्थिति हो गई और उसने सारा सच बताया कि वे कौन हैं?
5. भगवान विष्णु की आज्ञा से माता योगमाया ने ही यशोदा मैया के यहां पुत्री रूप में जन्म लिया था। कंस से बालकृष्ण को बचाने के लिए ही योगमाया ने जन्म लिया था। कंस के हाथ से छूटकर मां ने अपना असली रूप प्रकट करके कंस के कहा कि तेरा वध करने वाला तो कभी का जन्म ले चुका है।
6. मां विंध्यवासिनी का बाद में नाम एकानंशा रखा गया था। श्रीमद्भागवत में उन्हें ही नंदजा देवी कहा गया है। इनके जन्म के समय यशोदा गहरी निद्रा में थीं और उन्होंने इस बालिका को देखा नहीं था। जब आंख खुली तो उन्होंने अपने पास पुत्र को पाया जो कि कृष्ण थे।
7. गर्गपुराण के अनुसार भगवान कृष्ण की मां देवकी के सातवें गर्भ को योगमाया ने ही बदलकर कर रोहिणी के गर्भ में पहुंचाया था, जिससे बलराम का जन्म हुआ। बाद में योगमाया ने यशोदा के गर्भ से जन्म लिया था।
8. मां विंध्यवासिनी को कृष्णानुजा भी कहते हैं। इसका अर्थ यह की वे भगवान श्रीकृष्ण की बहन थीं। इस बहन ने श्रीकृष्ण की जीवनभर रक्षा की थी। इन्हीं योगमाया ने कृष्ण के साथ योगविद्या और महाविद्या बनकर कंस, चाणूर और मुष्टिक आदि शक्तिशाली असुरों का संहार कराया, जो कंस के प्रमुख मल्ल माने जाते थे।
9. शिव पुराण अनुसार मां विंध्यवासिनी को सती माना गया है। सती होने के कारण उन्हें वनदुर्गा कहा जाता है। श्रीमद्भागवत पुरा में देवी योगमाया को ही विंध्यवासिनी कहा गया है जबकि शिवपुराण में उन्हें सती का अंश बताया गया है।
10. देवताओं ने योगमाया से कहा कि हे देवी आपका इस धरती पर कार्य पूर्ण हो चुका है तो अत: अब आप देवलोक चलकर हमें कृतघ्न करें। तब देवी ने कहा कि नहीं अब मैं धरती पर ही भिन्न भिन्न रूप में रहूंगी। जो भक्त मेरा जैसा ध्यान करेगा मैं उसे उस रूप में दर्शन दूंगा। अत: मेरी पहले स्थान की आप विंध्यांचल में स्थापना करें। तब देवताओं ने देवी का विंध्याचल में एक शक्तिपीठ बनाकर उनकी स्तुति की और देवी वहीं विराजमान हो गई। कहते हैं कि आदिशक्ति देवी कहीं भी पूर्णरूप में विराजमान नहीं हैं, लेकिन विंध्याचल ही ऐसा स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं। शास्त्रों के अनुसार, अन्य शक्तिपीठों में देवी के अलग-अलग अंगों की प्रतीक रूप में पूजा होती है।
कहां कहां हैं देवी के मंदिर :
1. विंध्यवासिनी, मिर्जापुर : देवी का खास मंदिर तो विंध्याचल में ही है। भारत में विंध्यवासिनी देवी का चमत्कारिक मंदिर विंध्याचल की पहाड़ी श्रृंखला के मध्य (मिर्जापुर, उत्तर) पतित पावनी गंगा के कंठ पर बसा हुआ है। प्रयाग एवं काशी के मध्य विंध्याचल नामक तीर्थ है जहां मां विंध्यवासिनी निवास करती हैं। यह तीर्थ भारत के उन 51 शक्तिपीठों में प्रथम और अंतिम शक्तिपीठ है जो गंगा तट पर स्थित है। यहां तीन किलोमीटर के दायरे में अन्य दो प्रमुख देवियां भी विराजमान हैं। निकट ही कालीखोह पहाड़ी पर महाकाली तथा अष्टभुजा पहाड़ी पर अष्टभुजी देवी विराजमान हैं। हालांकि कुछ विद्वान इस 51 शक्तिपीठों में शामिल नहीं करते हैं लेकिन 108 शक्तिपीठों में जरूर इनका नाम मिलता है।
2. राजस्थान के बांदा में भी है इनका मंदिर : इस मंदिर में विराजी मां विंध्यवासिनी की आलौकिक छटा से समूचा क्षेत्र ही नहीं दूर दराज के लोग भी खिचे चले आते है, सफेद पहाड़ में विराजी मां की छटा ही अलौकिक नहीं है बल्कि इनके यहां विराजमान होने की कथा भी दिव्य है। बांदा जनपद से 20 किलोमीटर की दूरी पर गिरवां क्षेत्र में एक मंदिर बना है जिसमें मां विंध्यवासिनी पहाड़ों पर विराजमान है।
3. सलकनपुर, सिहोर मध्यप्रदेश : यह मंदिर रेहटी तहसील मुख्यालय के पास सलकनपुर गांव में एक 800 फुट ऊंची पहाड़ी पर है, यह भोपाल से 70 किमी की दूर स्थित है। यहां करीब 1000 सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है। यहां रोपवे की सुविधा भी नागरिको के लिए उपलब्ध है।