क्या है मकर संक्राति का इतिहास और महत्व, जानें सब कुछ एक क्लिक पर

हर वर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी को आती है। यह लोहड़ी से एक दिन बाद मनाई जाती है। इसे फेस्टिवल ऑफ काइट्स के रूप में भी जाना जाता है।

Update: 2021-01-12 02:58 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्कहर वर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी को आती है। यह लोहड़ी से एक दिन बाद मनाई जाती है। इसे फेस्टिवल ऑफ काइट्स के रूप में भी जाना जाता है। मकर संक्रांति का त्यौहार सूर्यदेव को समर्पित होता है। यह सूर्य के पारगमन के पहले दिन का संकेत होता है। इस दिन सूर्य उत्तरायण हो जाता है। साथ ही यह त्यौहार शिशिर ऋतु की समाप्ति और वसंत के आने का प्रतीक होता है। अगर आप इस दिन का इतिहास या महत्व नहीं जानते हैं तो हम आपको इसकी जानकारी दे रहे हैं।

मकर संक्रांति का इतिहास:
इस त्यौहार को लेकर कई अलग-अलग तरह की मान्यताएं हैं। ऐसा बताया गया है कि भीष्म पितामह को इच्छा-मृत्यु का वरदान प्राप्त था। ऐसे में उनका पुनर्जन्म न हो इसलिए उन्होंने सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर ही इच्छा-मृत्यु प्राप्त की। उत्तरायण अवधि के इंतजार में वो अर्जुन द्वारा बनाई गई बाणशैया पर ही पड़े थे। हालांकि, इसके अलावा भी कई कथाएं प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक अन्य कथा भी है। माता यशोदा ने इसी दिन संतान प्राप्ति के लिए व्रत किया था। ऐसे में इस दिन कई महिलाएं तिल, गुड़ आदि दूसरी महिलाओं को बांटती हैं। साथ ही कहा जाता है कि भगवान विष्णु से तिल की उत्पत्ति हुई थी। इसका इस्तेमाल पापों से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है।
मकर संक्रांति का महत्व:
इस दिन स्नान का बहुत अधिक महत्व है। इस दिन लोग गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, शिप्रा या नर्मदा नदियों में स्नान करते हैं। इस दिन कई तरह के अनुष्ठान किए जाते हैं। मान्यता है कि अगर इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करते हैं तो लोगों को जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के दुष्चक्र से मोक्ष प्राप्त होता है। इश दिन खिचड़ी बनाना भी शुभ माना जाता है।



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