सबसे बड़ा धर्म क्या है, जानें सद्गुरु से

संपूर्ण मानवता को जिम्मेदा

Update: 2023-05-07 19:03 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | हम जब भी धर्म के बारे में सोचते या बात करते हैं, तो हमारे भीतर धार्मिक स्थान और ईश्वर का ही विचार सबसे पहले आता है। लेकिन धर्म इससे कहीं ज्यादा व्यापक है। अगर हम स्वयं को और संपूर्ण मानवता को जिम्मेदारीपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित करें तो यही धर्म है।

असल में जिम्मेदारीपूर्ण जीवन जीना ही सबसे बड़ा धर्म है, कहीं-न-कहीं, सभी धर्मों की शुरुआत आध्यात्मिक प्रक्रिया के रूप में हुई। पर, अपने को संगठित करने की उत्सुकता में उनकी मूल बातें खो गईं। धर्म क्या है— वे आध्यात्मिकता जो खराब हो चुकी है!

आइए, हम धर्म और आध्यात्मिकता के बीच के अंतर को समझें। जब आप अपने आपको किसी धर्म के साथ जोड़ते हैं, तो आप अपने आपको विश्वास करने वाला घोषित कर देते हैं। पर जब, ‘मैं आध्यात्मिक मार्ग पर हूं,’ आप ऐसा कहते हैं तो आप अपने आपको जानने की इच्छा रखने वाला, जिज्ञासु कहते हैं। तो विश्वास करने और जिज्ञासा करने, जानने-खोजने में क्या अंतर है?

आप सिर्फ उसी चीज को खोज सकते हैं, जिसे आप जानते नहीं हैं या दूसरे शब्दों में, खोजने-जानने की प्रक्रिया की मूल बात यह है कि आपने यह समझ लिया है कि आप अपने जीवन का मूल स्वभाव नहीं जानते हैं। आप नहीं जानते कि आप कौन हैं, क्या हैं, कहां से आए हैं और कहां जाएंगे?

आध्यात्मिक प्रक्रिया में सबसे पहली और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आप अपने ही साथ पूरी तरह से ईमानदार हों, और ये स्वीकार करने को तैयार हों कि मैं ‘जो जानता हूं’, वो जानता हूं और ‘जो नहीं जानता’, वो नहीं जानता। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसने क्या कहा, चाहे कृष्ण, जीसस, बुद्ध या और किसी ने भी कुछ भी कहा हो— हो सकता है कि वे सत्य ही कह रहे हों— और उनके लिए हमारे अंदर पूरा सम्मान है— पर, आप नहीं जानते, आपने इसका अनुभव नहीं किया है, आपने इसे देखा नहीं है!आप पूरी तरह से ईमानदार क्यों नहीं हो सकते कि आप नहीं जानते? ‘मैं नहीं जानता’, इसमें एक जबर्दस्त संभावना है। यही है जानने का आधार। जब आप स्वीकार करते हैं कि आप नहीं जानते, तभी जानने की संभावना खुलती है।

जैसे ही आप इस संभावना को अपने विश्वास से— जो आपके लिए सुविधाजनक है— तोड़ देते हैं, तो आप जानने की सारी संभावनाओं को खत्म कर देते हैं। आप ऊपर देखते हैं या नीचे देखते हैं या अपने चारों ओर देखते हैं, इससे आपके लिए कोई आध्यात्मिक प्रक्रिया शुरू नहीं होती।

आध्यात्मिक प्रक्रिया तभी शुरू होती है, जब आप अंदर की ओर देखते हैं। अंदर न तो उत्तर में है, न दक्षिण में। न पूर्व में, न पश्चिम में। जो अंदर है, उसका कोई आयाम नहीं है। बिना आयाम की चीज तक वही पहुंच सकता है, जो अपने अंदर एकदम ईमानदार हो। दूसरों के लिए ईमानदार होने को मैं आपसे नहीं कह रहा— इसमें बहुत-सी समस्याएं हो सकती हैं। मैं तो आपसे खुद के साथ ईमानदार होने के लिए कह रहा हूं।बहुत लंबे समय से हम सोचते रहे हैं कि अगर कुछ सही है तो वो हमारी वजह से है, और जो कुछ भी गलत है, वो ईश्वर की वजह से है।

अब इस सोच को बदलने का समय आ गया है। हमें यह समझना होगा कि हमारी सभी समस्याओं का स्रोत हमारे अंदर ही है और अगर, हमें समाधान चाहिए तो वो और कहीं नहीं है, हमारे अंदर ही उपलब्ध है। मूल रूप से इसका मतलब यही है कि मानवता अब धीरे-धीरे धर्म से जिम्मेदारी की तरफ बढ़ने लगी है।

नहीं तो, हर किसी के पास उसके द्वारा की जा रही सारी बकवास, उसके खुद के सारे गलत कामों के लिए बहाने भी हैं, और ईश्वर की मंजूरी भी है। मानवीय बुद्धिमत्ता का स्वभाव यह है कि अगर आज आप कोई बेवकूफी भरा काम करते हैं, तो रात में ही आप की बुद्धिमत्ता आपको परेशान करेगी —‘मैंने यह क्यों किया?’ पर, अगर ये आपके भगवान या शास्त्रों की सम्मति से है तो आप पूरे आत्मविश्वास के साथ बेवकूफी भरे काम कर सकते हैं। यह सब बंद होना जरूरी है। हमें मानवता को धर्म की ओर से ज्यादा जिम्मेदारी की ओर ले जाना होगा।

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