Vat Savitri Vrat 2022: 30 मई को सुहागिनें रखेंगी व्रत, इस दिन सावित्री ने यमराज के चंगुल से छुड़ाया था अपना पति, जानें ये रोचक कहानी

Update: 2022-05-23 18:36 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | Vat Savitri 2022: 30 मई सोमवार को वट सावित्री व्रत है, ये वही व्रत है जिसके प्रभाव से सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज के चंगुल से छुड़ा लिया था. वट यानी बरगद एक ऐसा वृक्ष है जिसके नीचे सूर्य का ताप नहीं पहुंचता है, जिसकी जड़ें बहुत ही मजबूत और विस्तृत होती हैं और तने से जो जड़ें नीचे पहुंचती हैं वह भी वृक्ष को और अडिग कर देती है. बरगद भारतीय संस्कृति में संयुक्त परिवार और संस्कार को मजबूती प्रदान करने का प्रतीक है. यह वृक्ष भारतीय नारी की जीवटता और उसके पति की आयु वृद्धि लिए संघर्ष का भी प्रतीक है. सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए यह व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. इस दिन सुहागिनें बरगद की छांव में बैठ कर पूजा पाठ करती हैं और अपने पति के दीर्घायु, परिवार में सुख समृद्धि की कामना करती हैं.

बरगद के पेड़ की संरचना को समझना है जरूरी
पाराशर ऋषि ने कहा था- "वट मूले तपोवासा", जबकि पुराणों में लिखा गया "मूले ब्रह्मा तना विष्णु शाखा शाखा महेश्वराय"। इससे स्पष्ट है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु व महेश यानी त्रिदेव का वास है. मूले ब्रह्मा अर्थात ब्रह्मा जी बरगद के पेड़ की मूल यानी जड़ में विराजमान हैं, अब सभी जानते हैं कि जड़ का दायित्व बहुत जिम्मेदारी भरा होता है. इतने बड़े वृक्ष को भूमि में कस के पकड़े रखने का काम जड़ ही करती है, यही कारण है कि बरगद की जड़ बहुत गहरी होती है और यह जड़ें ऊपर तक आ जाती हैं इसलिए ब्रह्मा जी का वास इनकी जड़ों में बताया गया है, क्योंकि ब्रह्मा जी सृष्टिकर्ता हैं, सृष्टि को बनाने वाले क्रिएटर हैं. तना विष्णु यानी जो पेड़ को एक स्वाभिमान के साथ खड़ा रखता है, जो वृक्ष के पुरुषत्व को दर्शाता है, पौरूष बढ़ाता है इसीलिए श्री हरि विष्णु तना में विराजित हैं.
शाखा शाखा महेश्वरा का अर्थ है महादेव बरगद की हर शाखा में विराजित हैं और इन्हीं शाखाओं से जड़ के स्वरूप में उनकी शाखाएं सुशोभित होती हैं और यह शाखाएं महादेव की भुजाओं की तरह बहुत विशाल हैं. महादेव की भुजाओं की छाया के नीचे समस्त ग्रहणियां सुरक्षित एवं सदा सुहागिन रहती हैं. इतने अधिक गुणों वाला दूसरा कोई वृक्ष नहीं है. इसीलिए बरगद के वृक्ष के नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से जीवनसाथी की आयु में वृद्धि होती है, यानी दीर्घायु होते हैं. वट वृक्ष अपनी विशालता के लिए भी प्रसिद्ध है. इसके गुणों को देखते हुए उसको भारत का राष्ट्रीय वृक्ष भी बनाया गया है.
ज्ञान और अमरत्व का प्रतीक है वट वृक्ष
वट वृक्ष दीर्घायु, अमरत्व-बोध और ज्ञान का प्रतीक है. भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था, वट वृक्ष को पति की दीर्घायु के लिए पूजना इस व्रत का मुख्य अंग बना, महिलाएं व्रत-पूजन कर, कथा पढ़ के, वट वृक्ष के चारो तरफ सूत के धागे को लपेटते हुए परिक्रमा करती हैं. धागा लपेटते हुए महिलाएं सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करती हैं कि जिस तरह सावित्री माता ने अपने पति के प्राणों की रक्षा की थी उसी तरह हे ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानी त्रिदेव मेरि परिवार की रक्षा करें.
पति-पत्नी के अखंड प्रेम को दर्शाता है बरगद
बरगद का पेड़ पुरुषत्व का भी प्रतीक है. बरगद के पत्ते का दूध पुरुषत्व की दिव्य औषधि होती है. पतिव्रता स्त्रियां अपने सुहाग अर्थात पति की दीर्घायु के लिए बरगद के वृक्ष से प्रार्थना करती हैं. एक तरह से वट पति-पत्नी के अखंड प्रेम का भी प्रतीक है. इस वृक्ष की आयु बहुत ज्यादा होती है, यही कारण है कि पति की दीर्घायु के लिए उसके समक्ष प्रार्थना की जाती है. बरगद के वृक्ष के गुणों को समझने की आवश्यकता है. यह ज्ञान और शक्ति से भरा हुआ है. यह जेष्ठ माह की भयंकर गर्मी यानी जीवन की विपरीत परिस्थितियां एवं संकट से बचाता है. जहां पर आसपास बरगद का पेड़ नहीं होता है, वहां स्त्रियां बरगद की एक डाल को घर के आंगन में चौक पूरने के बाद मिट्टी के बीच उसे रख देती हैं और फिर पूजन करती हैं.


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