Vastu Tips: इस कोण में भूलकर भी न बनवाएं शौचालय

Update: 2024-07-15 10:18 GMT
Vastu Tips: वास्तुशास्त्र भवन आदि निर्माण की एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें सभी सिद्धांतों के मूल का आधार समृद्धि पर टिका हुआ है। अक्सर देखा गया है, कि वास्तु के अनुसार घर के पवित्र स्थान, ईशान कोण में, शौचालय होने के कारण व्यक्ति के उपर धन का संकट बना रहता है। पूर्व-उत्तर की दिशा को ईशान कोण कहते हैं, ईशान कोण में toilet कभी भी नहीं होना चाहिए। घर का मध्य भाग ब्रह्म स्थान कहलाता है, मध्य भाग में भी शौचालय नहीं होना चाहिए। शौचलय निर्माण के लिए विश्वकर्मा के अनुसार,‘याम्य नैऋत्य मध्ये पुरीष त्याग मंदिरम्’ अर्थात् दक्षिण और नैऋत्य दक्षिण-पश्चिम दिशा के मध्य में पुरीष यानी मल त्याग का स्थान होना चाहिए।
कुछ architect  नैऋत्य कोण में शौचालय तथा स्नानाघर दोनों एक साथ बनवाने का निर्देश देते हैं, लेकिन अगर प्राचीन ग्रंथों की मानें तो स्नानघर और शौचालय एक साथ नहीं बनवाने चाहिए, परन्तु आजकल जगह की समस्या एवं फलैट आदि कल्चर में स्नानघर और शौचालय अलग-अलग बनना एक अत्यन्त ही कठिन कार्य है। विश्वकर्मा प्रकाश में स्नानघर के लिए स्पष्ट उल्लेख मिलता है, ‘पूर्वम् स्नानं मंदिरम्’ अर्थात् भवन के पूर्व में स्नानघर होना चाहिए। अधिकांश प्राचीन वास्तु ग्रंथों में स्नानघर और शौचालय दोनों के स्थान अलग-अलग दिए गए हैं और जो स्थान बताए गए हैं, वे उस स्थान के आधिपत्य देवताओं की रूचि एवं प्रकृति के अनुसार ही बताए गए हैं।
वास्तुशास्त्र के अनुसार स्नानघर में चन्द्रमा का वास है तथा शौचालय में राहु का वास है। यदि किसी घर में स्नानघर और शौचालय एक साथ है तो चन्द्रमा और राहु एक साथ होने के कारण चन्द्रमा को राहु से ग्रहण लग जाता है जो कि अनेक प्रकार की समस्याओं एवं मुसीबतों को न्यौता देता है। पहले जमाने के लोग आज भी शौचालय से जुड़े स्नानघर में स्नान करना कम पसन्द करते हैं क्योंकि उनका मानना है कि स्नान के पास शौचालय होने से पवित्रता दूषित हो जाती है। एक वास्तुशास्त्री को ज्योतिष का ज्ञान होना भी परम आवश्यक है, तभी वास्तुशास्त्र की उपयोगिता पूर्ण रूप से सिद्ध होती है। जिन लोगों की जन्मपत्री में ग्रहण दोष है, अथवा चन्द्रमा नीच राशि में अथवा पाप ग्रहों से युक्त एवं दृष्ट हो, उन्हें अक्सर सलाह दी जाती है कि वे शौचालय और स्नानघर का प्रयोग अलग-अलग करें।
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