वास्तु गुरु कुलदीप सलूजा: महत्वपूर्ण वास्तु दोष है
ई संसद और सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | नरेन्द्र मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना अपनी संकल्पना के वक्त से ही चर्चा में है। इस कवायद का मकसद 3.2 किलोमीटर में फैले लुटियंस दिल्ली के हृदय स्थल में स्थित इलाके को फिर से विकसित करना है। सत्ता का कॉरिडोर यानी सेंट्रल विस्टा को 1930 के दशक में ब्रिटिश सरकार ने बनाया था। इसमें कई सरकारी इमारतों को तोड़कर फिर से बनाने का काम शामिल है। इन इमारतों में कई प्रतिष्ठित इमारतें भी शामिल हैं। परियोजना में एक नया संसद भवन वर्तमान संसद के ठीक पास में बनाया जा रहा है। उम्मीद है कि यह 2022 के अन्त तक बनकर तैयार हो जाएगा। सेंट्रल विस्टा पश्चिम में राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक फैला हुआ है। सेंट्रल विस्टा में यमुना नदी के किनारे न्यू इंडिया’ गार्डन भी बनाए जाएंगे। इसमें देश की आजादी के 75 वर्षों की उपलब्धि को संरचनाओं में स्थापित किया जाएगा।
सेंट्रल विस्टा परियोजना के तहत बनने वाली संसद भवन की नई इमारत करीब 64,500 वर्ग मीटर में बनाई जा रही है, जो भव्य कलाकृतियों से युक्त होगी। नया संसद भवन त्रिकोणीय होगा। इसकी ऊंचाई पुरानी इमारत जितनी ही होगी। इसमें एक बड़ा संविधान हॉल, सांसदों के लिए एक लाउन्ज, एक लाइब्रेरी, कई कमेटियों के कमरे, डाइनिंग एरिया जैसे कई कम्पार्टमेंट होंगे। इसके लोकसभा चैंबर में 772 सदस्यों के बैठने की क्षमता होगी, जबकि वर्तमान में 552 सदस्यों के बैठने की क्षमता ही है। राज्यसभा में 384 सीट होंगी। सत्ता का कॉरिडोर यानी सेंट्रल विस्टा को पुनर्विकसित कर ‘‘लुटियन दिल्ली’’ आने वाले समय में नए लुक में नजर आएगी।
भूकंपीय क्षेत्र के मापदंडों के अनुसार डिजाइन इस योजना को तीन चरणों में पूरा किया जा रहा है। पहले चरण में राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक लगभग तीन किलोमीटर के दायरे में मौजूद सेंट्रल विस्टा क्षेत्र को 2022 तक नया रूप दिया जाना है, जबकि मौजूदा और भविष्य की जरूरतों के मुताबिक संसद भवन की नयी इमारत का निर्माण 2022 तक और तीसरे चरण में सभी केन्द्रीय मंत्रालयों को एक ही स्थान पर समेकित करने के लिये प्रस्तावित सभी केन्द्रीय सचिवालय का निर्माण 2024 तक पूरा करने का लक्ष्य है। जिसकी कुल लागत 20,000 करोड़ रूपए है।श्री नरेंद्र मोदी के पसंदीदा आर्किटेक्ट श्री बिमल पटेल ने सेंट्रल विस्टा के पहले भी गुजरात सरकार और केंद्र सरकार के लिए कई अहम प्रोजेक्ट्स पर काम किया है। श्री पटेल के द्वारा डिजाइन किये गये प्रोजेक्टों में अहमदाबाद का रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट, कांकरिया का री-डेवलपमेंट, राजकोट रेसकोर्स री-डेवलपमेंट, आर.बी.आई. अहमदाबाद, गुजरात हाईकोर्ट, आई.आई.एम. अहमदाबाद, आई.आई.टी. जोधपुर जैसी कई बिल्डिंग भी शामिल हैं। हाल ही में काशी विश्वनाथ धाम परियोजना में भी श्री पटेल का काम दिखता है, परंतु यहां भी वास्तु सिद्धांतों की अवहेलना की गई।
श्री पटेल के अनुसार नई संसद त्रिकोण आकार की (जो विभिन्न धर्मों में एक पवित्र ज्यामितीय आकृति होती है) सबसे आधुनिक सुविधाओं वाला एक भवन होगा जो हमारी संस्कृति और परंपरा को भी प्रदर्शित करेगा।
श्री पटेल का कहना है कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट सत्ता की छवि को बदल देगा। उनकी दलील है कि मौजूदा संसद भवन की कल्पना अंग्रेजों ने काउंसिल हाउस के तौर पर की थी। भारत को अपनी पहली ‘सच्ची’ संसद तो अब मिल रही है। प्रस्तावित भवनों में से किसी की भी ऊंचाई इण्डिया गेट से अधिक नहीं होगी। सभी भवनों को अंडरग्राउंड रास्तों से जोड़ा जाएगा। सभी भवन केंद्रीय सचिवालय मेट्रो स्टेशन से सीधे जुड़े होंगे।
श्री बिमल पटेल के यू ट्युब पर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के लगभग पौने दो घंटे का प्रजेंटेशन मैंने देखा है, जिसमें उन्होनें प्रोजेक्ट के बारे में बहुत ही विस्तार से जानकारी दी है। प्रजेंटेशन से एक बात साफ हो जाती है कि, न तो पुराने संसद भवन का डिजाइन मध्य प्रदेश के मुरैना में चौंसठ योगिनी मंदिर से प्रेरित है और न ही नए संसद भवन का डिजाइन खजुराहो के पास विदिशा-अशोक नगर रोड़ पर स्थित बिजा मण्डल (जिसे विजया मंदिर भी कहा जाता है) से प्रेरित है। प्रजेंटेशन देखकर लगता है कि, यह पूरा प्रोजेक्ट मॉर्डन टेक्नालॉजी को समाहित किए हुए बहुत ही सुंदर, बहुत ही भव्य और वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अत्याधिक सुविधाजनक होगा।
दोस्तों ! एक अच्छा आर्किटेक्ट भव्य, सुन्दर, आकर्षक और सुविधाजनक भवन का निर्माण तो कर सकता है परन्तु इस बात की गारंटी नहीं देता है कि, उस भवन में रहने वालों को सुख, समृद्धि, प्रसिद्धि और सफलता मिलेगी। जबकि वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों का पालन करके निर्मित किए गए भवन में रहने वालों को सुख, समृद्धि, प्रसिद्धि और सफलता मिलेगी इस बात की पूरी गारंटी होती है। यही प्राचीन भारतीय वास्तु शास्त्र की विशेषता है। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का प्रेजेंटेशन देखने से लगता है कि बिमल पटेल ने वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों की अवहेलना की है। ऐसा होना स्वाभाविक भी था क्योंकि, एक अच्छा आर्किटेक्ट एक अच्छा वास्तुविद हो ही नहीं सकता।सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में प्रशासन को चलाने वाले कई मंत्रियों की नई बिल्डिंग भी आकार लेंगी। साथ ही साथ प्रधानमंत्री और उपराष्ट्रपति का निवास स्थान भी नया बनेगा। इस प्रोजेक्ट में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि, पुराने संसद भवन के ठीक सामने एक नया संसद भवन भी आकार ले रहा है। जहां से पूरे भारत के लिए नीति-निर्धारण होते हैं, नए कानून बनाए जाते हैं। यहां लिए गए निर्णयों पर ही देश का भविष्य तय होता है लेकिन नये संसद भवन का जिस प्रकार से निर्माण हो रहा है, उसमें भी कई महत्वपूर्ण वास्तुदोष हैं। सेन्ट्रल विस्टा के प्रेजेंटेशन को देखने के बाद मुझे इस प्रोजेक्ट में कई महत्वपूर्ण वास्तुदोष दिखाई दिए हैं, वह इस प्रकार हैं -
सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पश्चिम दिशा में रायसीना हिल्स पर स्थित राष्ट्रपति भवन से इण्डिया गेट होते हुए पूर्व दिशा में स्थित यमुना नदी वाले भाग तक जमीन की नीचाई पूर्व दिशा की ओर है। (इसी भौगोलिक स्थिति पर ‘‘वाल्मीकि रामायण में भगवान श्रीराम के मुख से वास्तु सम्बन्धी एक महत्वपूर्ण सूत्र कहलवाया गया है।’’ किष्किंधाकाण्ड में जब श्रीराम व लक्ष्मण बाली वध के उपरांत प्रस्रवण पर्वत पर निवास के लिए अनुकूल स्थान की तलाश कर रहे थे, तब पर्वत की सुंदरता का वर्णन करते हुए एक स्थान पर रुककर राम अपने अनुज से कहते हैं- ‘‘लक्ष्मण ! यह स्थान देखो इस स्थान का पूर्व नीचा व पश्चिम ऊंचा है, यहां पर पर्णकुटी बनाना श्रेष्ठ रहेगा। यह स्थान सिद्धिदायक एवं विजय दिलाने वाला है।’’