सच्ची खुशी देने से मिलती है छीनने से नहीं, पढ़े ये कहानी
राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न चारों भाइयों के जीवन का ये प्रसंग भाईचारे की सीख देने वाला है.
जनता से रिश्ता बेवङेस्क | राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न चारों भाइयों के जीवन का ये प्रसंग भाईचारे की सीख देने वाला है. जब ये चारों लोग खेलते थे तो लक्ष्मण राम की तरफ उनके पीछे होते थे और सामने वाले पाले में भरत और शत्रुघ्न होते थे. तब लक्ष्मण हमेशा भरत को बोलते कि राम भैया सबसे ज्यादा मुझे प्रेम करते हैं, तभी वो हर बार अपने पाले में अपने साथ मुझे रखते हैं.
लेकिन भरत कहते नहीं कि राम भैया सबसे ज्यादा मुझे प्रेम करते हैं तभी वो 'मुझे सामने वाले पाले में रखते हैं ताकि हर पल उनकी दृष्टि मेरे ऊपर रहे, वो मुझे हर पल देख पाएं क्योंकि साथ वाले को देखने के लिए तो उनको मुड़ना पड़ेगा.
दोनों की बातें सुनकर राम सिर्फ मुस्कुरा देते थे. फिर जब भरत गेंद को राम की तरफ उछालते तो प्रभु श्रीराम जानबूझ कर गेंद को छोड़ देते और हार जाते. फिर नगर में उपहार और मिठाइयां बांट कर उत्सव मनाते.
सभी राम से पूछते आप तो हार गए फिर आप इतने प्रसन्न क्यों हैं, राम बोलते मेरा भरत जीत गया. लोग जब भरत के पास जाते तो भरत रो रहे होते हैं. लोगों ने पूछा , भरत जी आप तो जीत गए हैं, फिर आप क्यों रो रहे हैं? भरत बोले, देखिए मेरी कैसी विडंबना है ! मैं जब भी अपने प्रभु के सामने होता हूं तभी जीत जाता हूं. मैं उनसे जीतना नहीं, मैं उन पर अपना सब कुछ हारना चाहता हूं. मैं खुद को हार कर उनको जीतना चाहता हूं.
राम और भरत का ये प्रसंग आज के युग में सच्चे भाईचारे का प्रमाण है. एक भाई दूसरे की जीत से प्रसन्न है तो दूसरा जीतकर भी रो रहा है. दोनों बस एक दूसरे को प्रसन्नता देना चाहते हैं. वास्तव में भाई विपत्ति बांटने के लिए होता है, संपत्ति छीनने के लिए नहीं.
जिस घर में भाई-भाई मिल कर रहते हैं, उस घर में राम का वास होता है. जब एक भाई ने दूसरे भाई के लिए अधिकार छोड़ा तो रामायण लिखी गई और जब एक भाई ने दूसरे भाई का अधिकार छीना तो महाभारत हुई. असली प्रसन्नता देने में है, छीनने में नहीं.