कल है साल का आखिरी प्रदोष व्रत, जानें-कथा और महत्व
हिंदी पंचांग के अनुसार, हर महीने की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत मनाया जाता है। इस प्रकार पौष माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी 31 दिसंबर को है। इस दिन भगवान भोलेनाथ और माता-पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है।
हिंदी पंचांग के अनुसार, हर महीने की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत मनाया जाता है। इस प्रकार पौष माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी 31 दिसंबर को है। इस दिन भगवान भोलेनाथ और माता-पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी दोष दूर हो जाते हैं और व्यक्ति का जीवन निर्मल हो जाता है। इस व्रत कथा का पाठ और श्रवण करने से व्यक्ति के सभी पाप कट जाते हैं। इस बार शुक्रवार को प्रदोष व्रत पड़ रहा है। अतः यह शुक्र प्रदोष व्रत कहलाएगा। इस व्रत को करने से विवाहित स्त्रियों के सौभाग्य में वृद्धि होती है। ज्योतिष पति की लंबी आयु हेतु शुक्र प्रदोष व्रत करने की सलाह देते हैं। आइए, शुक्र प्रदोष व्रत की कथा जानते हैं-
प्रदोष व्रत की कथा
प्राचीन समय की बात है। एक ब्राम्हणी पति की मृत्यु के बाद अपना पालन-पोषण भिक्षा मांगकर करती थी। एक दिन जब वह भिक्षा मांग कर लौट रही थी, तो उसे रास्ते में दो बालक रोते मिले। उन बालकों को देखकर ब्राम्हणी को दया आ गई। वह उन बालकों के पास जाकर बोली-तुम दोनों कौन हो? और कहां से हो? तुम्हारे माता-पिता कौन हैं? लेकिन बालक ने कोई उत्तर नहीं दिया। यह देख ब्राम्हणी बालकों को अपने घर ले आई। जब दोनों बालक बड़े हुए, तो एक दिन ब्राह्मणी दोनों बालक को लेकर ऋषि शांडिल्य के आश्रम गई।
जहां ऋषि शांडिल्य ने कहा-हे देवी! ये दोनों बालक विदर्भ के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनके पिता का राज-पाट छीन गया है। उस समय से ये बालक बेघर हो गए हैं। तब ब्राह्मणी ने पूछा-हे ऋषिवर इनका राज-पाट वापस कैसे मिलेगा? आप कोई उपाय बताने का कष्ट करें। तब ऋषि शांडिल्य ने उन्हें प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि के कहे अनुसार, ब्राह्मणी और राजकुमारों ने विधिवत प्रदोष व्रत किया। कालांतर में एक दिन बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई, दोनों एक दूसरे को चाहने लगे।
उस समय अंशुमती के पिता ने राजकुमार की सहमति से दोनों की शादी करा दी। इसके बाद दोनों राजकुमार ने गंदर्भ सेना पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में अंशुमती के पिता ने राजुकमारों की मदद की थी। युद्ध में गंदर्भ नरेश की हार हुई। इस वजह से राजकुमारों को पुनः विदर्भ का राज मिल गया। तब राजकुमारों ने गरीब ब्राह्मणी को भी अपने दरबार में विशेष स्थान दिया। प्रदोष व्रत के पुण्य-प्रताप से ही राजुकमार को अपना राज पाट वापस मिला और ब्राम्हणी के दुःख दूर हो गए। अत: प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है।