कल है रोहिणी व्रत, जानें पूजा विधि और महत्व
जैन पंचांग के अनुसार, 10 फरवरी को रोहिणी व्रत है। यह व्रत हर महीने मनाया जाता है। इस दिन जैन धर्म के अनुयायी वासुपूज्य स्वामी की पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत रखा जाता है।
जैन पंचांग के अनुसार, 10 फरवरी को रोहिणी व्रत है। यह व्रत हर महीने मनाया जाता है। इस दिन जैन धर्म के अनुयायी वासुपूज्य स्वामी की पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत रखा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से महिलाओं को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत को पुरुष और स्त्रियां दोनों कर सकते हैं। महिलाएं रोहिणी व्रत अखंड सुहाग और पति के दीर्घायु के लिए करती हैं। वहीं, पुरुष सुख, समृद्धि और शांति पाने के लिए करते हैं। जैन शास्त्रों में निहित है कि इस व्रत को कम से 5 महीने और अधिकतम 5 साल तक करना चाहिए। जैन धर्म में स्त्रियों के लिए यह व्रत अनिवार्य है। इस व्रत का पुण्य वट सावित्री व्रत के समतुल्य प्राप्त होता है। आइए, व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व जानते हैं-
व्रत महत्व
इस व्रत को करने से व्यक्ति को परमपूज्य भगवान वासुपूज्य स्वामी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। इस दिन जैन धर्म की स्त्रियां विशेष पूजा-अर्चना करती हैं, जिसके पुण्य-प्रताप से उनके सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। कालांतर से इस व्रत को करने का विधान है। वर्तमान समय में भी साधक रोहिणी व्रत करते हैं।
रोहिणी व्रत पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ सफाई करें। इसके बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान से निवृत होकर व्रत संकल्प लें। इसके बाद आमचन कर अपने आप को शुद्ध करें। अब सबसे पहले भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। तत्पश्चात, भगवान वासुपूज्य स्वामी की प्राण प्रतिष्ठा कर उनकी पूजा फल, फूल, दूर्वा आदि से करें। दिन भर उपवास रखें। सूर्योदय से पूर्व-पूजा और प्रार्थना कर फलाहार करें। जैन धर्म में रात्रि के समय भोजन करने की मनाही है। अतः इस व्रत को करने समय फलाहार सूर्यास्त से पूर्व कर लेना चाहिए। अगले दिन नित्य दिनों की तरह पूजा-पाठ संपन्न कर व्रत खोलें।