आज मौनी अमावस्या पर करें चंद्र कवच का पाठ, दूर होगा चंद्र दोष
हिंदू धर्म में अमावस्या और पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व होता है। ये दोनों ही तिथियां चंद्रमा की विशेष स्थितियों पर आधारित होती हैं। जहां पूर्णिमा तिथि पर चंद्रमा अपनी पूर्ण कला में होता
हिंदू धर्म में अमावस्या और पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व होता है। ये दोनों ही तिथियां चंद्रमा की विशेष स्थितियों पर आधारित होती हैं। जहां पूर्णिमा तिथि पर चंद्रमा अपनी पूर्ण कला में होता है तो वहीं अमावस्या के दिन वो अदृश्य स्थिति में होता है। इन दोनों ही तिथियों पर चंद्रमा का पूजन विशेष फलदायी होता है। सभी अमावस्या तिथि में मौनी अमावस्या तिथि का विशेष स्थान है। मौनी अमावस्या को पुराणों में बहुत ही पवित्र और मोक्षदायिनी माना गया है। मौनी अमावस्या माघ माह की अमावस्या तिथि को कहा जाता है। पंचांग गणना के अनुसार इस साल मौनी अमावस्या तिथि 01 फरवरी, दिन मंगलवार को पड़ रही है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान करना पापनाशक और मोक्षदायक माना जाता है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार चंद्रमा मन का कारक माना जाता है। जिन लोगों को मानसिक परेशानियां हो या फिर जिनकी कुण्डली में चद्रं दोष व्याप्त हो, उनके लिए मौनी अमावस्या की तिथि अति शुभ मुहूर्त है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस दिन ऐसे व्यक्तियों को प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त हो कर चंद्र कवच का पाठ करना चाहिए। दिन भर फलाहार का व्रत करके रात में चंद्रमा को दूध मिश्रित जल से अर्घ्य चढांए। ऐसा करने से कुण्डली में व्याप्त चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है।
चंद्रमा कवच -
श्रीचंद्रकवचस्तोत्रमंत्रस्य गौतम ऋषिः । अनुष्टुप् छंदः।
चंद्रो देवता । चन्द्रप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।
समं चतुर्भुजं वन्दे केयूरमुकुटोज्ज्वलम् ।
वासुदेवस्य नयनं शंकरस्य च भूषणम् ॥ १ ॥
एवं ध्यात्वा जपेन्नित्यं शशिनः कवचं शुभम् ।
शशी पातु शिरोदेशं भालं पातु कलानिधिः ॥ २ ॥
चक्षुषी चन्द्रमाः पातु श्रुती पातु निशापतिः ।
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प्राणं क्षपाकरः पातु मुखं कुमुदबांधवः ॥ ३ ॥
पातु कण्ठं च मे सोमः स्कंधौ जैवा तृकस्तथा ।
करौ सुधाकरः पातु वक्षः पातु निशाकरः ॥ ४ ॥
हृदयं पातु मे चंद्रो नाभिं शंकरभूषणः ।
मध्यं पातु सुरश्रेष्ठः कटिं पातु सुधाकरः ॥ ५ ॥
ऊरू तारापतिः पातु मृगांको जानुनी सदा ।
अब्धिजः पातु मे जंघे पातु पादौ विधुः सदा ॥ ६ ॥
सर्वाण्यन्यानि चांगानि पातु चन्द्रोSखिलं वपुः ।
एतद्धि कवचं दिव्यं भुक्ति मुक्ति प्रदायकम् ॥
यः पठेच्छरुणुयाद्वापि सर्वत्र विजयी भवेत् ॥ ७ ॥
॥ इति श्रीब्रह्मयामले चंद्रकवचं संपूर्णम् ॥