आज मार्गर्शीर्ष मास की विनायक चतुर्थी है, जाने पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

आज मार्गर्शीर्ष मास की विनायक चतुर्थी है। आज सुबह 07 बजकर 08 मिनट से शाम 07 बजकर 04 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग है।

Update: 2020-12-18 02:38 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्कआज मार्गर्शीर्ष मास की विनायक चतुर्थी है। आज सुबह 07 बजकर 08 मिनट से शाम 07 बजकर 04 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग है। आज सर्वार्थ सिद्धि योग में ही भगवान गणेश की पूजा विधि विधान से की जाएगी। आज विनायक चतुर्थी की पूजा का मुहूर्त दिन में 11 बजकर 16 मिनट से दोपहर 01 बजकर 20 मिनट तक है। आपको 02 घंटे 04 मिनट के मध्य विनायक चतुर्थी की पूजा कर लेनी चाहिए। विधि विधान से गणेश जी की पूजा करने के बाद आपको विनायक चतुर्थी की व्रत कथा पढ़नी चाहिए, यह समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने में सक्षम माना जाता है।

विनायक चतुर्थी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती और भगवान शिव नर्मदा नदी के तट पर बैठे थे। तब माता पार्वती को चौपड़ खेलने का मन हुआ। भगवान शिव भी तैयार हो गए। अब सवाल यह था कि उनमें विजयी कौन हुआ? इसका फैसला कौन करेगा? तब भगवान शिव ने तिनकों से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण प्रतिष्ठा कर दी। उन्होंने उससे कहा कि बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, तुम हार और जीत का फैसला करना।
फिर माता पार्वत और भगवान शिव चौपड़ खेलने लगे। तीन बार चौपड़ का खेल हुआ और माता पार्वती तीनों बार जीत गईं। खेल के अंत में उस बालक से विजेता की घोषणा करने को कहा गया। उस बालक ने भगवान शिव को विजेता घोषित कर दिया। इससे माता पार्वती क्रोधित होकर उसे श्राप दे​ दिया। उन्होंने उसे लंगड़ा होने तथा कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया।

तब उस बालक ने क्षमा मांगते हुए कहा कि उसने ऐसी घोषणा भूलवश की है। क्षमा मांगने पर माता शक्ति ने कहा कि इस स्थान पर नागकन्याएं गणेश पूजा के लिए आएंगी। उनके बताए अनुसार तुम भी गणेश व्रत करना, उसके प्रभाव से फिर तुम मुझे प्राप्त करने में सफल होगे। इसके बाद माता पार्वती और भगवान शिव अपने धाम चले गए।
लगभग एक वर्ष बीतने पर वहां नागकन्याएं आईं। उनसे बालक ने गणेश व्रत की विधि पता करके 21 दिन तक गणेश जी का व्रत किया। गणपति प्रसन्न हो गए और उन्होंने दर्शन देकर उस बालक से मनोवांछित फल मांगने को कहा। उसने कहा कि वह पैरों से स्वस्थ होना चाहता है और कैलाश पर अपने माता—पिता के पास पहुंचना चाहता है, ताकि वे उसे देखकर प्रसन्न हो जाएं।
गणेश जी ने उसे वरदान दे दिया। वह बालक कैलाश पर पहुंच गया और भोलेनाथ को अपनी कथा सुनाई। तब भगवान शिव ने भी 21 दिनों तक गणेश जी का व्रत किया। इसके प्रभाव से माता पार्वती की शिव जी से नाराजगी दूर हो गई। उसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती को गणेश व्रत की विधि बताई।
तब माता पार्वती के मन में अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा हुई। उन्होंने भी 21 दिनों तक गणेश जी का व्रत किया। उनको मोदक और दूर्वा नियमित रूप से अर्पित किया। 21वें दिन कार्तिकेय माता पार्वती से स्वयं आकर मिल गए। उसके बाद से ही गणेश चतुर्थी का यह व्रत किया जाने लगा, जो सभी की मनोकामनाओं की पूर्ति करता है।



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