आज है गणगौर तीज की पूजा...जानें शुभ मुहूर्त और महत्व

गणगौर राजस्थान और सीमावर्ती मध्य प्रदेश का एक बड़ा पर्व है जो चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को आता है. आज गणगौर तीज की पूजा है.

Update: 2021-04-15 04:53 GMT

गणगौर राजस्थान और सीमावर्ती मध्य प्रदेश का एक बड़ा पर्व है जो चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को आता है. आज गणगौर तीज की पूजा है. इस दिन कुवांरी लड़कियां और विवाहित महिलाएं भगवान शिव (इसर जी) और माता पार्वती (गौरी) की पूजा करती हैं. इस दिन पूजन के समय रेणुका की गौर बनाकर उस पर महावर, सिंदूर और चूड़ी चढ़ाने का प्रावधान है. चंदन, अक्षत, धूपबत्ती, दीप, नैवेद्य से पूजा करके शिव जी और माता पार्वती को भोग लगाया जाता है. गणगौर तीज राजस्थान में आस्था, प्रेम और पारिवारिक सौहार्द का सबसे बड़ा उत्सव है. गण (शिव) तथा गौर(पार्वती) के इस पर्व में कुंवारी लड़कियां मनपसंद वर पाने की मनोकामना करते हुए पूजा करती हैं. वहीं विवाहित महिलाएं चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर पूजन तथा व्रत कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं.

गणगौर पूजा का शुभ मुहूर्त
गणगौर पूजा गुरुवार, 15 अप्रैल 2021
तृतीया तिथि प्रारम्भ- 14 अप्रैल 2021 को दोपहर 12:47 बजे से
तृतीया तिथि समाप्त- 15 अप्रैल 2021 को दोपहर 03:27 बजे तक
गणगौर व्रत पूजन विधि
शिव-गौरी को सुंदर वस्त्र अर्पित करें. सुहाग की वस्तुएं अर्पित करें. चन्दन, अक्षत, धूप, दीप, दूब व पुष्प से उनकी पूजा अर्चना करें. एक बड़ी थाली में चांदी का छल्ला और सुपारी रखकर उसमें जल, दूध-दही, हल्दी, कुमकुम घोलकर सुहागजल तैयार किया जाता है. दोनों हाथों में दूब लेकर इस जल से पहले गणगौर को छींटे लगाकर फिर महिलाएं अपने ऊपर सुहाग के प्रतीक के तौर पर इस जल को छिड़कती हैं. अंत में चूरमे का भोग लगाकर गणगौर माता की कथा सुनी जाती है. गणगौर महिलाओं का त्यौहार माना जाता है इसलिए गणगौर पर चढ़ाया हुआ प्रसाद पुरुषों को नहीं दिया जाता. वहीं जो सिन्दूर माता पार्वती को चढ़ाया जाता है, महिलाएं उसे अपनी मांग में भरती हैं.
गणगौर व्रत कथा
एक समय की बात है, भगवान शंकर, माता पार्वती एवं नारद जी के साथ भ्रमण हेतु चल दिए. वह चलते-चलते चैत्र शुक्ल तृतीया को एक गांव में पहुंचे. उनका आना सुनकर ग्राम कि निर्धन स्त्रियां उनके स्वागत के लिए थालियों में हल्दी व अक्षत लेकर पूजन हेतु तुरंत पहुंच गई . पार्वती जी ने उनके पूजा भाव को समझकर सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया. वे अटल सुहाग प्राप्त कर लौटी. थोड़ी देर बाद धनी वर्ग की स्त्रियां अनेक प्रकार के पकवान सोने चांदी के थालो में सजाकर सोलह श्रृंगार करके शिव और पार्वती के सामने पहुंची. इन स्त्रियों को देखकर भगवान शंकर ने पार्वती से कहा तुमने सारा सुहाग रस तो निर्धन वर्ग की स्त्रियों को ही दे दिया. अब इन्हें क्या दोगी? पार्वती जी बोली प्राणनाथ, उन स्त्रियों को ऊपरी पदार्थों से निर्मित रस दिया गया है .
इसलिए उनका सुहाग धोती से रहेगा. किंतु मैं इन धनी वर्ग की स्त्रियों को अपनी अंगुली चीरकर रक्त का सुहाग रख दूंगी, इससे वो मेरे सामान सौभाग्यवती हो जाएंगी. जब इन स्त्रियों ने शिव पार्वती पूजन समाप्त कर लिया तब पार्वती जी ने अपनी अंगुली चीर कर उसके रक्त को उनके ऊपर छिड़क दिया जिस पर जैसे छींटे पड़े उसने वैसा ही सुहाग पा लिया. पार्वती जी ने कहा तुम सब वस्त्र आभूषणों का परित्याग कर, माया मोह से रहित होओ और तन, मन, धन से पति की सेवा करो . तुम्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी. इसके बाद पार्वती जी भगवान शंकर से आज्ञा लेकर नदी में स्नान करने चली गई . स्नान करने के पश्चात बालू की शिव जी की मूर्ति बनाकर उन्होंने पूजन किया.
भोग लगाया तथा प्रदक्षिणा करके दो कणों का प्रसाद ग्रहण कर मस्तक पर टीका लगाया. उसी समय उस पार्थिव लिंग से शिवजी प्रकट हुए तथा पार्वती को वरदान दिया आज के दिन जो स्त्री मेरा पूजन और तुम्हारा व्रत करेगी उसका पति चिरंजीवी रहेगा तथा मोक्ष को प्राप्त होगा. भगवान शिव यह वरदान देकर अंतर्धान हो गए . इतना सब करते-करते पार्वती जी को काफी समय लग गया. पार्वती जी नदी के तट से चलकर उस स्थान पर आई जहां पर भगवान शंकर व नारद जी को छोड़कर गई थी. शिवजी ने विलंब से आने का कारण पूछा तो इस पर पार्वती जी बोली मेरे भाई भावज नदी किनारे मिल गए थे. उन्होंने मुझसे दूध भात खाने तथा ठहरने का आग्रह किया
Tags:    

Similar News

-->