आज है सावन का आखिरी सोमवार, श्रावण मास में शिव की महिमा

श्रावण नक्षत्र होने के आधार पर इस मास का नामकरण हुआ है। जन सामान्य की भाषा में इसे सावन कहा जाता है। मां पार्वती ने श्रावण मास में ही भगवान भोलेनाथ को प्राप्त किया था। इसी कारण शिव जी को यह मास अत्यंत ही प्रिय है।

Update: 2022-08-08 04:17 GMT

श्रावण नक्षत्र होने के आधार पर इस मास का नामकरण हुआ है। जन सामान्य की भाषा में इसे सावन कहा जाता है। मां पार्वती ने श्रावण मास में ही भगवान भोलेनाथ को प्राप्त किया था। इसी कारण शिव जी को यह मास अत्यंत ही प्रिय है। इसी मास में वसुंधरा धन, धान्य व हरियाली से ओत-प्रोत हो जाती है। भगवान शिव की अर्चना, जलाभिषेक, रुद्राभिषेक, शिवलिंग पूजन, शिव महिमा स्रोत, शिव तांडव एवं ओउम नम: शिवाय जप आदि के माध्यम से लोग आशुतोष को प्रसन्न करते हैं। गंगा जलाभिषेक करने की भी परंपरा है, क्योंकि उनके सिर में गंगा विराजमान हैं।

वास्तव में शिव एक दर्शन है, इसी कारण वह सबसे अलग रहते हैं। उन्हें आदियोगी भी कहा जाता है। प्रभु राम के भी वह गुरु हैं। प्रभु राम स्वयं कहते हैं:

शिव द्रोही मम दास कहावा, सो नर मोहि सपनेहुं नहि भावा।

भोलेनाथ समुद्र मंथन से निकले हुए विष को धारण करते हैं और यह सर्वजन हिताय के लिए उन्होंने किया। भगवान शिव में भारतीय संस्कृति का अद्भुत दर्शन मिलता है। शिव कोई व्यक्ति नहीं है। शिवलिंग की पूजा आकार से निराकार तक जाने का सशक्त माध्यम है। जिन भूतों, प्रेतों, पिशाचों को कोई अपने साथ नहीं रखता है, शिव उन्हें अपने साथ रखते हैं और यह उनकी सबको सम्मान देने की प्रवृत्ति का ज्वलंत उदाहरण है।

श्रावण मास में उनकी आराधना करने से सभी को विशेष फल प्राप्त होता है, इसीलिए इस मास में गंगा स्नान और गंगाजल चढ़ाने की महिमा है, इसीलिए गंगा की धार से जल लेकर शिवभक्त कांवडिय़े अपने गंतव्य को जाते हैं। भगवान भोलेनाथ अपने भक्तों को भयमुक्त भी बनाते हैं। शिव का साधक कभी भी शोक एवं मृत्यु से भयभीत नहीं होता है। शिव का अर्थ है- कल्याणकारी अथवा शुभकारी। यजुर्वेद में शिव को शांतिदाता भी कहा गया है, भगवान शिव का रूप जितना विचित्र है, उतना आकर्षक व मनमोहक भी है। तीन नेत्रों के कारण इन्हें त्रिलोचन भी कहा जाता है। ये आंखें सतो, रजो व तमो गुण या वर्तमान, भूत, भविष्य तीनों काल या तीनों लोकों- स्वर्ग, मृत्यु, पाताल का प्रतीक है।

इनका त्रिशूल भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक तापों को नष्ट करना है। शिव के गलेकी मुंडमाला मृत्यु को वश में करने का संदेश देती है। शरीर पर लगी भस्म बताती है कि यह विश्व नश्वर है। शिव का वाहन बैल धर्म का प्रतीक है। विपरीत परिस्थितियों में शिव तांडव भी करते हैं। वह अत्यंत ही शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता है। वह दानी भी हैं-आसुतोष तुम अवढर दानी, आरति हरहु दीन जन जानी।


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