आज एक साथ है मां चंद्रघंटा और कूष्मांडा की पूजा का शुभ संयोग, जानिए मंत्र, पूजा-विधि

नवरात्रि के नौ दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग नौं स्वरुपों की पूजा करने का विधान है। इस समय शारदीय नवरात्रि आरंभ हो गए हैं

Update: 2021-10-09 02:43 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। नवरात्रि के नौ दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग नौं स्वरुपों की पूजा करने का विधान है। इस समय शारदीय नवरात्रि आरंभ हो गए हैं। नवरात्रि के तीसरे दिन मां भगवती की तृतीय शक्ति मां चंद्रघंटा की आराधना की जाती है लेकिन हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार तृतीया और चतुर्थी तिथि एक ही दिन पड़ रही है। जिसके कारण मां चंद्रघंटा और मां कूष्मांडा की पूजा का शुभ संयोग एक ही दिन बन रहा है। आज शारदीय नवरात्रि की तृतीया तिथि है और मां चंद्रघंटा के साथ कूष्मांडा माता का पूजन भी आज ही किया जाएगा। तृतीया और चतुर्थी एक ही दिन होने के कारण इस बार नवरात्रि का समापन भी आठ दिन में हो जाएगा। 07 अक्टूबर से नवरात्रि आरंभ हुई थी और नवरात्रि का समापन 14 अक्टूबर 2021 दिन गुरुवार को होगा। फिलहाल जानते हैं मां चंद्रघंटा और कूष्मांडा का आरधाना मंत्र पूजा-विधि और भोग व आरती।

पूजा विधि-

सर्वप्रथम प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि करने के पश्चात पूजा स्थान पर गंगाजल छिड़कें।

अब मां चंद्रघंटा और कूष्मांडा माता का ध्यान करें और उनके समक्ष दीपक प्रज्वलित करें।

अब माता रानी को अक्षत, सिंदूर, पुष्प आदि चीजें अर्पित करें।

इसके बाद मां को प्रसाद के रूप में फल और मिष्ठान अर्पित करें।

अब मां चंद्रघंटा व मां कूष्मांडा की आरती करें।

पूजा के पश्चात क्षमा याचना करें।

नवरात्रि 2021

जानिए मां चंद्रघंटा और कूष्मांडा की आरती, पूजा-विधि, मंत्र व प्रिय भोग

मां चंद्रघंटा

आज नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा की तृतीय शक्ति चंद्रघंटा देवी की आराधना का विधान है। इस बार इन्हीं के साथ मां कूष्मांडा का पूजन भी किया जाएगा। मां चंद्रघंटा राक्षसों के संहार के लिए अवतार लिया था। इनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवों की शक्तियां समाहित हैं। ये  अपने हाथों में तलवार, त्रिशूल, धनुष व गदा धारण करती हैं। इनके माथे पर घंटे के आकार में अर्द्ध चंद्र विराजमान है। इसलिए ये चंद्रघंटा कहलाती हैं। अपने भक्तों के लिए मां चंद्रघंटा का स्वरुप सौम्य व शांत है। ये दुष्टों का संहार करती हैं। 

मां चंद्रघंटा का भोग-

मां चंद्रघंटा को दूध या फिर दूध से बनी मिठाइयों का भोग लगाना चाहिए।

मां चंद्रघंटा की आरती

नवरात्रि के तीसरे दिन चंद्रघंटा का ध्यान।

मस्तक पर है अर्ध चंद्र, मंद मंद मुस्कान।।

दस हाथों में अस्त्र शस्त्र रखे खडग संग बांद।

घंटे के शब्द से हरती दुष्ट के प्राण।।

सिंह वाहिनी दुर्गा का चमके स्वर्ण शरीर।

करती विपदा शांति हरे भक्त की पीर।।

मधुर वाणी को बोल कर सबको देती ज्ञान।

भव सागर में फंसा हूं मैं, करो मेरा कल्याण।।

नवरात्रों की मां, कृपा कर दो मां।

जय मां चंद्रघंटा, जय मां चंद्रघंटा।।

मां चंद्रघंटा का आराधना मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

मां कूष्मांडा

नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरुप कूष्मांडा देवी की पूजा का विधान हैं लेकिन इस बार हिंदी तिथि के अनुसार एक ही दिन तिथि बदलने के कारण इनका पूजन तीसरे दिन ही किया जाएगा। इनकी आठ भुजाएं है इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है। इनके शरीर की कांति व प्रभा सूर्य के समान दैदीप्यमान है। ये अपनी अष्ट भुजाओं में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा धारण आदि सभी चीजें करती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब चारों ओर अंधकार था तो इन्हीं के द्वारा ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई थी। इन्हीं के प्रकाश व तेज से दसों दिशाएं प्रकाशित होती हैं। यही सृष्टि की आदिस्वरुपा मां आदिशक्ति हैं।

मां कूष्मांडा का भोग-

मां कूष्मांडा को भोग में मालपुआ अर्पित करना चाहिए।

मां कूष्मांडा आरती 

कूष्मांडा जय जग सुखदानी। 

मुझ पर दया करो महारानी॥ 

पिगंला ज्वालामुखी निराली।

शाकंबरी मां भोली भाली॥ 

लाखों नाम निराले तेरे ।

 भक्त कई मतवाले तेरे॥ 

भीमा पर्वत पर है डेरा। 

स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदंबे।

 सुख पहुंचती हो मां अंबे॥ 

तेरे दर्शन का मैं प्यासा। 

पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

मां के मन में ममता भारी। 

क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥ 

तेरे दर पर किया है डेरा। 

दूर करो मां संकट मेरा॥ 

मेरे कारज पूरे कर दो। 

मेरे तुम भंडारे भर दो॥ 

तेरा दास तुझे ही ध्याए। 

भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

मां कूष्मांडा आराधना मंत्र-

या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

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