आज है स्वामीनारायण जयंती...जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

भगवान श्री स्वामीनारायण का जन्म चैत्र नवमी को विक्रम संवत 1837, 3 अप्रैल, 1781 ई. को रामनवमी के दिन हुआ था.

Update: 2021-04-21 00:45 GMT

भगवान श्री स्वामीनारायण का जन्म चैत्र नवमी को विक्रम संवत 1837, 3 अप्रैल, 1781 ई. को रामनवमी के दिन हुआ था. आज 21 अप्रैल (बुधवार) को भगवान स्वामीनारायण जयंती मनाई जा रही है. भगवान श्री स्वामीनारायण ने लाखों लोगों को धर्म से जुड़ी कई अमूल्य शिक्षाएं दीं और आज भी उनकी अमर विचारधारा दुनिया भर में कई लोगों को प्रेरित करती है.भगवान श्री स्वामीनारायण को सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए भी जाना जाता है.आइए जानते हैं भगवान श्री स्वामीनारायण का महत्व और इससे जुड़े रीति-रिवाज...

भगवान स्वामिनारायण के बारे में:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान स्वामिनारायण का जन्म अयोध्या के पास गोण्डा जिले के छपिया गांव में रामनवमी के दिन हुआ था. वो बचपन से ही काफी कुशाग्र थे. पांच साल की कम उम्र में ही उन्होंने अक्षरज्ञान सीख लिया था. छोटी अवस्था में ही उसने अनेक शास्त्रों का अध्ययन कर लिया. जब वह केवल 11 वर्ष के थे तभी उनके माता और पिताजी का देहांत हो गया था. इसके कुछ समय बाद उन्होंने घर छोड़ दिया और पूरे देश का भ्रमण किया.
भगवान श्री स्वामीनारायण का समय:
भगवान श्री स्वामीनारायण जयंती का शुभ मुहूर्त आज सुबह 12 बजकर 44 मिनट से लेकर 22 अप्रैल की सुबह 12 बजकर 35 मिनट तक है.
स्वामीनारायण जयंती 2021 का महत्व:
हर साल स्वामीनारायण के शिष्य बड़े ही उत्साह के साथ स्वामीनारायण जयंती मनाते हैं. पौराणिक श्रुतियों के अनुसार, भगवान स्वामीनारायण के पिता धर्मदेव और माता भक्तिमाता थीं.
स्वामीनारायण जयंती 2021 पूजा विधि:
स्वामीनारायण जयंती के दिन यानी कि आज भक्त सुबह जल्दी उठ जाएं , स्नान करने के बाद भगवान की पूजा -अर्चना करें. भगवान की मूर्ति को भली भांति सजाएं और पालने में रखें. भगवान को फूल, फल अर्पित करें और निर्जला उपवास रखें. निर्जला उपवास के दौरान दिन भर पानी नहीं पिया जाता है, हालांकि इस दौरान फल भी खा सकते हैं.

भगवान स्वामीनारायण का जन्म रात 10:10 बजे हुआ था,इसलिए इसी समय सभी मंदिरों में स्वामीनारायण के बाल रूप की एक आरती कीजाएगी. हालांकि इस बार कोरोना वायरस की दूसरी लहर के चलते मंदिर जाना संभव और सेफ नहीं है. भक्त जयंती के दिन पूरा समय भगवान स्वामीनारायण के जीवन में घटी घटनाओं को सुनकर और शास्त्र पढ़कर और भजन गाकर मनाते हैं.

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