आज है सूरदास जयंती...जाने इसके पीछे का इतिहास

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को सूरदास जयंती मनाई जाती है.

Update: 2021-05-17 03:50 GMT

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को सूरदास जयंती मनाई जाती है. इस दिन भगवान कृष्ण के परम भक्त संत सूरदास का जन्म हुआ था. सूरदास अपने साहित्यक कौशल के लिए जाने जाते हैं. वे अपने दोहों, कविताओं और रचानाओं के लिए प्रसिद्ध हुए. आज भी उनकी रचनाएं पढ़कर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं. आज सूरदास जयंती के मौके पर जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी मुख्य बातें.

सूरदास का जन्म 1478 ई में रुनकात गांव के ब्राहमण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम रामदास था. सूरदास के जन्मांध को लेकर अलग अलग धाराणाएं हैं. कुछ लोगों का मानना है कि वो जन्म से अंधे थे. वहीं कुछ लोगों का कहना है कि वो जन्म से अंधे नहीं थे.

सूरदास शुरुआत से ही साधु प्रवृति के व्यक्ति थे. उन्हें गाने की कला वरदान में मिली थी. वे बहुत जल्दी ही प्रसिद्ध साधु बन गए. वे आगरा के पास गऊघाट में रहते थे. इस दौरान उनकी मुलाकात वल्लभाचार्य जी से हुई. उन्होंने भगवान कृष्ण की लीलाओं का ज्ञान दिया और श्रीनाथ जी के मंदिर में लीलागायन का काम सौंप दिया. सूरदास ने जीवन भर इस काम को किया.
भगवान कृष्ण ने सूरदास को दिए दर्शन
सूरदास भगवाव कृष्ण के परम भक्त थे. जब उनकी मुलाकात वल्लभाचार्य से हुई तो वो उनके शिष्य बन गए और पुष्टिमार्ग की दीक्षा प्राप्त कर भगवान कृष्ण की भक्ति में लग गए. उनकी लीलाओं पर गीत गायन करते थे. सूरदास भगवान कृष्ण से जुड़े दोहों और कविताओं को लिखते थे. हर कोई उनके इस कला से प्रभावित था. उन्होंने ब्रज भाषा में बहुत काम किया है.
सूरदास से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं. कहते हैं कि एक बार सूरदास भगवान कृष्ण की भक्ति में इतना रम गए कि कुएं में गिर गए, जिसके बाद भगवान कृष्ण ने उनकी जान बचाई और आंखों की रोशनी वापस दे दी. जब भगवान कृष्ण ने सूरदास से कुछ मांगने को कहा तो उन्होंने कहा कि आप मुझे फिर से अंधा कर दें. मैं आपके सिवा इस दुनिया में किसी अन्य चीज को नहीं देखना चाहता हूं


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